कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै। निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै। जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै। मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज में बाँसुरी रहिहै।