"सूरदास" के अवतरणों में अंतर
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− | |पूरा नाम= | + | |पूरा नाम=महाकवि सूरदास |
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− | |जन्म=संवत 1535 | + | |जन्म=[[संवत्]] 1540 विक्रमी (सन् 1483 ई.) अथवा संवत 1535 विक्रमी (सन् 1478 ई.) |
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− | |मृत्यु= | + | |मृत्यु=संवत् 1642 विक्रमी (सन् 1585 ई.) अथवा संवत् 1620 विक्रमी (सन् 1563 ई.) |
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− | |मुख्य रचनाएँ=[[सूरसागर]], [[सूरसारावली]], [[साहित्य-लहरी]], | + | |मुख्य रचनाएँ=[[सूरसागर]], [[सूरसारावली]], [[साहित्य-लहरी]], नल-दमयन्ती, ब्याहलो आदि |
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− | |अन्य जानकारी= | + | |अन्य जानकारी= सूरदास जी [[वात्सल्य रस]] के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और [[शान्त रस|शान्त रसों]] का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। |
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− | + | '''सूरदास''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Surdas'') [[हिन्दी साहित्य]] में [[भक्तिकाल]] में [[कृष्ण]] भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म [[मथुरा]]-[[आगरा]] मार्ग पर स्थित [[रुनकता]] नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। आचार्य [[रामचन्द्र शुक्ल]] जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 विक्रमी के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 विक्रमी के आसपास मानी जाती है।<ref name="bhds">{{cite web |url=http://www.bharatdarshan.co.nz/hindi/index.php?page=surdas |title=सूरदास |accessmonthday=[[4 नवंबर]] |accessyear=[[2010]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारत दर्शन |language=[[हिन्दी]]}}</ref>सूरदास जी के [[पिता]] रामदास गायक थे। सूरदास जी के [[जन्मांध]] होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको [[वल्लभ-सम्प्रदाय|पुष्टिमार्ग]] में [[दीक्षा]] दे कर [[कृष्णलीला]] के [[पद (काव्य)|पद]] गाने का आदेश दिया। सूरदास जी [[अष्टछाप]] कवियों में एक थे। सूरदास जी की मृत्यु [[गोवर्धन]] के पास [[पारसौली]] ग्राम में 1563 ईस्वी में हुई। | |
+ | ==ऐतिहासिक उल्लेख== | ||
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+ | सूरदास के बारे में '[[भक्तमाल]]' और '[[वैष्णवन की वार्ता|चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]' में थोड़ी-बहुत जानकारी मिल जाती है। '[[आईना-ए-अकबरी]]' और 'मुंशियात अब्बुल फ़ज़ल' में भी किसी [[संत]] सूरदास का उल्लेख है, किन्तु वे [[काशी]] (वर्तमान [[बनारस]]) के कोई और सूरदास प्रतीत होते हैं। जनुश्रुति यह अवश्य है कि [[अकबर]] बादशाह सूरदास का [[यश]] सुनकर उनसे मिलने आए थे। 'भक्तमाल' में सूरदास की [[भक्ति]], [[कविता]] एवं गुणों की प्रशंसा है तथा उनकी [[अंधता]] का उल्लेख है। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के अनुसार [[सूरदास]] [[आगरा]] और [[मथुरा]] के बीच [[साधु]] के रूप में रहते थे। वे [[वल्लभाचार्य]] के दर्शन को गए और उनसे लीला गान का उपदेश पाकर [[कृष्ण]] के चरित विषयक पदों की रचना करने लगे। कालांतर में श्रीनाथ जी के मंदिर का निर्माण होने पर महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उन्हें यहाँ कीर्तन का कार्य सौंपा। | ||
==जन्म== | ==जन्म== | ||
− | + | {{main|सूरदास का जन्म}} | |
− | + | [[सूरदास]] का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, '[[साहित्य लहरी]]' और '[[सूरसारावली]]' के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म [[संवत]] 1540 विक्रमी (सन 1483 ई.) में हुआ था, परन्तु विद्वानों ने इस अनुमान के आधार को पूर्ण रूप में अप्रमाणिक सिद्ध कर दिया तथा [[पुष्टिमार्ग]] में प्रचलित इस अनुश्रुति के आधार पर कि सूरदास श्री मद्वल्लभाचार्य से 10 दिन छोटे थे, यह निश्चित किया कि सूरदास का जन्म [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष]] [[पंचमी]], संवत 1535 वि. (सन 1478 ई.) को हुआ था। इस साम्प्रदायिक जनुश्रुति को प्रकाश में लाने तथा उसे अन्य प्रमाणों में पुष्ट करने का श्रेय डॉ. दीनदयाल गुप्त को है। जब तक इस विषय में कोई अन्यथा प्रमाण न मिले, हम सूरदास की जन्म-तिथि को यही मान सकते हैं। | |
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==जाति== | ==जाति== | ||
− | सूरदास की [[ | + | {{main|सूरदास की जाति}} |
− | [[ | + | [[सूरदास]] की जाति के सम्बन्ध में भी बहुत वाद-विवाद हुआ है। '[[साहित्य लहरी]]' के उपर्युक्त पद के अनुसार कुछ समय तक सूरदास को 'भट्ट' या 'ब्रह्मभट्ट' माना जाता रहा। [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र|भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र]] ने इस विषय में प्रसन्नता प्रकट की थी कि सूरदास [[चन्दबरदाई|महाकवि चन्दबरदाई]] के वंशज थे; किन्तु बाद में अधिकतर [[पुष्टिमार्ग|पुष्टिमार्गीय]] स्रोतों के आधार पर यह प्रसिद्ध हुआ कि वे [[सारस्वत|सारस्वत ब्राह्मण]] थे। बहुत कुछ इसी आधार पर 'साहित्य लहरी' का वंशावली वाला पद अप्रामाणिक माना गया। '[[वैष्णवन की वार्ता|चौरासी वैष्णवन की वार्ता]]' में मूलत: सूरदास की जाति के विषय में कोई उल्लेख नहीं था, परन्तु गोसाई हरिराय द्वारा बढ़ाये गये 'वार्ता' के अंश में उन्हें सारस्वत ब्राह्मण कहा गया है। उनके सारस्वत ब्राह्मण होने के प्रमाण पुष्टिमार्ग के अन्य वार्ता साहित्य से भी दिये गये है। |
+ | ==काल-निर्णय== | ||
+ | {{main|सूरदास का काल-निर्णय}} | ||
+ | सूरदास के [[पिता]] रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको [[पुष्टिमार्ग]] में दीक्षा देकर [[कृष्णलीला]] के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास '[[अष्टछाप]]' के कवियों में से एक थे। सूरदास की मृत्यु [[गोवर्धन]] के पास पारसौली ग्राम में 1563 ईस्वी में हुई। उनकी जन्म-तिथि तथा उनके जीवन की कुछ अन्य मुख्य घटनाओं के काल-निर्णय का भी प्रयत्न किया गया है। इस आधार पर कि गऊघाट पर भेंट होने के समय वल्लभाचार्य गद्दी पर विराजमान थे, यह अनुमान किया गया है कि उनका [[विवाह]] हो चुका था, क्योंकि ब्रह्मचारी का गद्दी पर बैठना वर्जित है। वल्लभाचार्य का विवाह संवत 1560-61 (सन 1503-1504 ई.) में हुआ था, अत: यह घटना इसके बाद की है। 'वल्लभ दिग्विजय' के अनुसार यह घटना संवत 1567 विक्रमी के (सन 1510 ई.) आसपास की है। इस प्रकार सूरदास 30-32 वर्ष की अवस्था में पुष्टिमार्ग में दीक्षित हुए होंगे। | ||
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− | = | + | <div align="center">'''[[सूरदास का ऐतिहासिक उल्लेख |आगे जाएँ »]]'''</div> |
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− | चित्र:Surkuti Sur Sarovar-Agra-3.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] | + | चित्र:Surkuti Sur Sarovar-Agra-3.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] |
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− | चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-13.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] | + | चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-13.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] |
− | चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-14.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] | + | चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-14.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] |
− | चित्र:Sur Kuti Sur Sarovar Agra-15.jpg|प्रवेश द्वार, सूर सरोवर, [[आगरा]] | + | चित्र:Sur Kuti Sur Sarovar Agra-15.jpg|प्रवेश द्वार, सूर सरोवर, [[आगरा]] |
− | चित्र:Surdas Well Sur Sarovar Agra-16.jpg|सूरदास जी का कुंआ, सूर सरोवर, आगरा | + | चित्र:Surdas Well Sur Sarovar Agra-16.jpg|सूरदास जी का कुंआ, सूर सरोवर, आगरा |
− | चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-18.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] | + | चित्र:Sur Shyam Temple Sur Kuti Sur Sarovar Agra-18.jpg|सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] |
− | चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-11.jpg|सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] | + | चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-11.jpg|सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, [[आगरा]] |
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सूरदास (अंग्रेज़ी:Surdas) हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में अग्रणी है। महाकवि सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। उनका जन्म मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। कुछ लोगों का कहना है कि सूरदास जी का जन्म सीही नामक ग्राम में एक निर्धन सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में वह आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत् 1540 विक्रमी के सन्निकट और मृत्यु संवत् 1620 विक्रमी के आसपास मानी जाती है।[1]सूरदास जी के पिता रामदास गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा दे कर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे। सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के पास पारसौली ग्राम में 1563 ईस्वी में हुई।
ऐतिहासिक उल्लेख
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सूरदास के बारे में 'भक्तमाल' और 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में थोड़ी-बहुत जानकारी मिल जाती है। 'आईना-ए-अकबरी' और 'मुंशियात अब्बुल फ़ज़ल' में भी किसी संत सूरदास का उल्लेख है, किन्तु वे काशी (वर्तमान बनारस) के कोई और सूरदास प्रतीत होते हैं। जनुश्रुति यह अवश्य है कि अकबर बादशाह सूरदास का यश सुनकर उनसे मिलने आए थे। 'भक्तमाल' में सूरदास की भक्ति, कविता एवं गुणों की प्रशंसा है तथा उनकी अंधता का उल्लेख है। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' के अनुसार सूरदास आगरा और मथुरा के बीच साधु के रूप में रहते थे। वे वल्लभाचार्य के दर्शन को गए और उनसे लीला गान का उपदेश पाकर कृष्ण के चरित विषयक पदों की रचना करने लगे। कालांतर में श्रीनाथ जी के मंदिर का निर्माण होने पर महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उन्हें यहाँ कीर्तन का कार्य सौंपा।
जन्म
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सूरदास का जन्म कब हुआ, इस विषय में पहले उनकी तथाकथित रचनाओं, 'साहित्य लहरी' और 'सूरसारावली' के आधार पर अनुमान लगाया गया था और अनेक वर्षों तक यह दोहराया जाता रहा कि उनका जन्म संवत 1540 विक्रमी (सन 1483 ई.) में हुआ था, परन्तु विद्वानों ने इस अनुमान के आधार को पूर्ण रूप में अप्रमाणिक सिद्ध कर दिया तथा पुष्टिमार्ग में प्रचलित इस अनुश्रुति के आधार पर कि सूरदास श्री मद्वल्लभाचार्य से 10 दिन छोटे थे, यह निश्चित किया कि सूरदास का जन्म वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी, संवत 1535 वि. (सन 1478 ई.) को हुआ था। इस साम्प्रदायिक जनुश्रुति को प्रकाश में लाने तथा उसे अन्य प्रमाणों में पुष्ट करने का श्रेय डॉ. दीनदयाल गुप्त को है। जब तक इस विषय में कोई अन्यथा प्रमाण न मिले, हम सूरदास की जन्म-तिथि को यही मान सकते हैं।
जाति
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सूरदास की जाति के सम्बन्ध में भी बहुत वाद-विवाद हुआ है। 'साहित्य लहरी' के उपर्युक्त पद के अनुसार कुछ समय तक सूरदास को 'भट्ट' या 'ब्रह्मभट्ट' माना जाता रहा। भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र ने इस विषय में प्रसन्नता प्रकट की थी कि सूरदास महाकवि चन्दबरदाई के वंशज थे; किन्तु बाद में अधिकतर पुष्टिमार्गीय स्रोतों के आधार पर यह प्रसिद्ध हुआ कि वे सारस्वत ब्राह्मण थे। बहुत कुछ इसी आधार पर 'साहित्य लहरी' का वंशावली वाला पद अप्रामाणिक माना गया। 'चौरासी वैष्णवन की वार्ता' में मूलत: सूरदास की जाति के विषय में कोई उल्लेख नहीं था, परन्तु गोसाई हरिराय द्वारा बढ़ाये गये 'वार्ता' के अंश में उन्हें सारस्वत ब्राह्मण कहा गया है। उनके सारस्वत ब्राह्मण होने के प्रमाण पुष्टिमार्ग के अन्य वार्ता साहित्य से भी दिये गये है।
काल-निर्णय
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सूरदास के पिता रामदास गायक थे। सूरदास के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए। वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग में दीक्षा देकर कृष्णलीला के पद गाने का आदेश दिया। सूरदास 'अष्टछाप' के कवियों में से एक थे। सूरदास की मृत्यु गोवर्धन के पास पारसौली ग्राम में 1563 ईस्वी में हुई। उनकी जन्म-तिथि तथा उनके जीवन की कुछ अन्य मुख्य घटनाओं के काल-निर्णय का भी प्रयत्न किया गया है। इस आधार पर कि गऊघाट पर भेंट होने के समय वल्लभाचार्य गद्दी पर विराजमान थे, यह अनुमान किया गया है कि उनका विवाह हो चुका था, क्योंकि ब्रह्मचारी का गद्दी पर बैठना वर्जित है। वल्लभाचार्य का विवाह संवत 1560-61 (सन 1503-1504 ई.) में हुआ था, अत: यह घटना इसके बाद की है। 'वल्लभ दिग्विजय' के अनुसार यह घटना संवत 1567 विक्रमी के (सन 1510 ई.) आसपास की है। इस प्रकार सूरदास 30-32 वर्ष की अवस्था में पुष्टिमार्ग में दीक्षित हुए होंगे।
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वीथिका
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
प्रवेश द्वार, सूर सरोवर, आगरा
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूर श्याम मंदिर, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास नेत्रहीन विद्यालय, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
सूरदास, सूर कुटी, सूर सरोवर, आगरा
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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