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*शास्त्रों में आता है कि ये बाल्खिल्य नाम के बेटे भगवान [[सूर्य देवता|सूर्य]] के उपासक थे। सूर्य के रथ के आगे अपना मुख सूर्य की ओर किये हुए बालखिल्य चलते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। इन ब्रह्मर्षियों की तपस्या शक्ति सूर्यदेव को प्राप्त होती रहती है। | *शास्त्रों में आता है कि ये बाल्खिल्य नाम के बेटे भगवान [[सूर्य देवता|सूर्य]] के उपासक थे। सूर्य के रथ के आगे अपना मुख सूर्य की ओर किये हुए बालखिल्य चलते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। इन ब्रह्मर्षियों की तपस्या शक्ति सूर्यदेव को प्राप्त होती रहती है। | ||
*क्रतु ऋषि ही बाद में व्यास ऋषि हुए, जिनका वर्णन वाराहकल्प में आता है। | *क्रतु ऋषि ही बाद में व्यास ऋषि हुए, जिनका वर्णन वाराहकल्प में आता है। | ||
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05:14, 19 अप्रैल 2016 के समय का अवतरण
क्रतु | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- क्रतु (बहुविकल्पी) |
क्रतु ऋषि
- क्रतु ऋषि सोलह प्रजापतियों में से एक तथा ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक हैं।
- दक्ष प्रजापति तथा क्रिया से उत्पन्न पुत्री सन्नति से क्रतु ऋषि ने विवाह रचाया। ब्रह्मा जी से आज्ञा लेकर क्रतु ऋषि ने विवाह किया।
- इस दंपत्ति से साठ हज़ार 'बालखिल्य' नाम के पुत्र भी हुए, इन बालखिल्यों का आकार अंगूठे के बराबर माना जाता है।
- शास्त्रों में आता है कि ये बाल्खिल्य नाम के बेटे भगवान सूर्य के उपासक थे। सूर्य के रथ के आगे अपना मुख सूर्य की ओर किये हुए बालखिल्य चलते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। इन ब्रह्मर्षियों की तपस्या शक्ति सूर्यदेव को प्राप्त होती रहती है।
- क्रतु ऋषि ही बाद में व्यास ऋषि हुए, जिनका वर्णन वाराहकल्प में आता है।
- इनका काम है वेदों का विभाजन करना, पुराणों का प्रदर्शन करना और ज्ञान का उपदेश देना।
- माना जाता है कि ध्रुव की प्रदक्षिणा करने में क्रतु ऋषि आज भी तत्पर रहते हैं, लीन रहते हैं। इनका वर्णन पुराणों तथा अन्य धार्मिक ग्रन्थों में मिलता है।