गीता 18:21

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गीता अध्याय-18 श्लोक-21 / Gita Chapter-18 Verse-21

प्रसंग-


अब राजस ज्ञान के लक्षण बतलाते हैं-


पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृग्विधान् ।
वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम् ।।21।।



किन्तु जो ज्ञान अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान ।।21।।

That, however, by which man cognize many existences of various kinds as apart from one another in all beings, know that knowledge to be passion (Rajasika).(21)


तु = और ; यत् = जो ; ज्ञानम् = ज्ञान अर्थात् जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य ; सर्वेषु = संपूर्ण ; भूतेषु = भूतों में ; पृथग्विधान् = भिन्न भिन्न प्रकार के ; नानाभावान् = अनेक भावों को ; पृथक्त्वेन = न्यारा न्यारा करके ; वेत्ति = जानता है ; तत् = उस ; ज्ञानम् = ज्ञान को (तूं) ; राजसम् = राजस ; विद्धि = जान ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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