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||[[महाभारत]] के युद्ध में [[कर्ण]] ने विशिष्ट शौर्य का प्रदर्शन किया था। कर्ण को उसकी वीरता और शालीनता के साथ ही साथ एक दानवीर के रूप में भी ख्यातिप्राप्त थी। [[दुर्वासा ऋषि]] के वरदान से [[कुन्ती]] ने [[सूर्य देव|सूर्य]] का आहवान करके [[विवाह]] से पूर्व से ही कौमार्य अवस्था में कर्ण को पुत्र रूप में प्राप्त किया था, किन्तु लोक लाज के भय से उसने शिशु अवस्था में ही कर्ण को नदी में बहा दिया। [[हस्तिनापुर]] के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने कर्ण को पाला। इसलिए कर्ण को 'राधेय' भी कहा गयाहै।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण]] | ||[[महाभारत]] के युद्ध में [[कर्ण]] ने विशिष्ट शौर्य का प्रदर्शन किया था। कर्ण को उसकी वीरता और शालीनता के साथ ही साथ एक दानवीर के रूप में भी ख्यातिप्राप्त थी। [[दुर्वासा ऋषि]] के वरदान से [[कुन्ती]] ने [[सूर्य देव|सूर्य]] का आहवान करके [[विवाह]] से पूर्व से ही कौमार्य अवस्था में कर्ण को पुत्र रूप में प्राप्त किया था, किन्तु लोक लाज के भय से उसने शिशु अवस्था में ही कर्ण को नदी में बहा दिया। [[हस्तिनापुर]] के सारथी अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने कर्ण को पाला। इसलिए कर्ण को 'राधेय' भी कहा गयाहै।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कर्ण]] | ||
− | {[[दुर्योधन]] | + | {[[दुर्योधन]] के मामा [[शकुनि]] के राज्य का नाम क्या था? |
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− | ||18 दिनों तक चले [[महाभारत]] के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके [[भीष्म]] ने [[पाण्डव]] पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में [[शिखण्डी]] के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। शास्त्र और शस्त्र के इस सूर्य को अस्त होते हुए देखकर भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने इनके माध्यम से [[युधिष्ठिर]] को [[धर्म]] के समस्त अंगों का उपदेश दिलवाया। [[सूर्य देव|सूर्य]] के उत्तरायण होने पर पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण की छवि को अपनी [[आँख|आँखों]] में बसाकर महात्मा भीष्म ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म]] | + | ||[[चित्र:Bhishma2.jpg|right|100px|शर शैया पर पितामह भीष्म]]18 दिनों तक चले [[महाभारत]] के युद्ध में दस दिनों तक अकेले घमासान युद्ध करके [[भीष्म]] ने [[पाण्डव]] पक्ष को व्याकुल कर दिया और अन्त में [[शिखण्डी]] के माध्यम से अपनी मृत्यु का उपाय स्वयं बताकर महाभारत के इस अद्भुत योद्धा ने शरशय्या पर शयन किया। शास्त्र और शस्त्र के इस सूर्य को अस्त होते हुए देखकर भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने इनके माध्यम से [[युधिष्ठिर]] को [[धर्म]] के समस्त अंगों का उपदेश दिलवाया। [[सूर्य देव|सूर्य]] के उत्तरायण होने पर पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण की छवि को अपनी [[आँख|आँखों]] में बसाकर महात्मा भीष्म ने अपने नश्वर शरीर का त्याग किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भीष्म]] |
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09:40, 7 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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