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'''अग्रसेन की बावली''' (उग्रसेन की बावली) [[भारत]] की राजधानी [[दिल्ली]] में [[जंतर मंतर दिल्ली|जंतर मंतर]] के निकट स्थित है, जो भारत सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत संरक्षित है। इस बावली का निर्माण [[महाभारत]] के पौराणिक पात्र एवं सूर्यवंशी सम्राट [[महाराजा अग्रसेन]] ने करवाया था,  इसलिए इसे अग्रसेन की बावली कहते हैं। करीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का कन्जर्वेशन कराया। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अच्छी स्थिति में हैं। जंतर मंतर से वॉकिंग डिस्टेंस पर हेली रोड पर यह बावली मौजूद है। यहाँ पर [[नई दिल्ली]] और [[दिल्ली|पुरानी दिल्ली]] के लोग जहां कभी [[तैराकी]] सीखने के लिए आते थे।   
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'''अग्रसेन की बावली''' (उग्रसेन की बावली) [[भारत]] की राजधानी [[दिल्ली]] में [[जंतर मंतर दिल्ली|जंतर मंतर]] के निकट स्थित है, जो भारत सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत संरक्षित है। इस बावली का निर्माण [[महाभारत]] के पौराणिक पात्र एवं सूर्यवंशी सम्राट [[महाराजा अग्रसेन]] ने करवाया था,  इसलिए इसे अग्रसेन की बावली कहते हैं। क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का कन्जर्वेशन कराया। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अच्छी स्थिति में हैं। जंतर मंतर से वॉकिंग डिस्टेंस पर हेली रोड पर यह बावली मौजूद है। यहाँ पर [[नई दिल्ली]] और [[दिल्ली|पुरानी दिल्ली]] के लोग जहां कभी [[तैराकी]] सीखने के लिए आते थे।   
  
 
==स्थापत्य विशेषताएँ==
 
==स्थापत्य विशेषताएँ==

14:15, 24 नवम्बर 2012 का अवतरण

अग्रसेन की बावली

अग्रसेन की बावली (उग्रसेन की बावली) भारत की राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर के निकट स्थित है, जो भारत सरकार द्वारा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अवशेष अधिनियम 1958 के तहत संरक्षित है। इस बावली का निर्माण महाभारत के पौराणिक पात्र एवं सूर्यवंशी सम्राट महाराजा अग्रसेन ने करवाया था, इसलिए इसे अग्रसेन की बावली कहते हैं। क़रीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर ऊंची इस बावली के बारे में विश्वास है कि महाभारत काल में इसका निर्माण कराया गया था। बाद में अग्रवाल समाज ने इस बावली का कन्जर्वेशन कराया। यह दिल्ली की उन गिनी चुनी बावलियों में से एक है, जो अच्छी स्थिति में हैं। जंतर मंतर से वॉकिंग डिस्टेंस पर हेली रोड पर यह बावली मौजूद है। यहाँ पर नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली के लोग जहां कभी तैराकी सीखने के लिए आते थे।

स्थापत्य विशेषताएँ

  • 14 वीं शताब्दी में यह बावली का निर्माण हुआ था। इसकी एक विशेषता यह भी है कि दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस के समीप हेली रोड के हेली लेन स्थित यह बावली चारो तरफ से मकानों से घिरी है जिससे किसी बाहरी व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि यहां कोई बावली है।
  • अग्रसेन की बावली में 60 मीटर लम्बी, 15 मीटर चौड़ी और 103 सीढ़ियाँ है।इसकी स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुगलक तथा लोधी काल ( 13वी-16वी ईस्वी) से मेल खाती है।
  • लाल बलुए पत्थर से बनी बावली की वास्तु संबंधी विशेषताएं तुगलक और लोदी काल की तरफ संकेत कर रहे हैं लेकिन परंपरा के अनुसार इसे अग्रहरि एवं अग्रवाल समाज के पूर्वज अग्रसेन ने बनवाया था।
  • इस इमारत की मुख्य विशेषता उत्तर से दक्षिण दिशा में 60 मीटर लम्बी तथा भूतल पर 15 मीटर चौड़ी है।अनगढ़ तथा गढ़े हुए पत्थर से निर्मित यह दिल्ली में बेहतरीन बावलियों में से एक है।इसकी स्थापत्य शैली उत्तरकालीन तुगलक तथा लोधी काल ( 13वी-16वी ईस्वी) से मेल खाती है।
  • पश्चिम की ओर तीन प्रवेश द्वार युक्त एक मस्जिद है।यह एक ठोस ऊँचे चबूतरे पर किनारों की भूमिगत दालानों से युक्त है. इसकी स्थापत्य में ‘व्हेल मछली की पीठ के समान’ छत, ‘चैत्य आकृति’ की नक्काशीयुक्त चार खम्बों का संयुक्त स्तम्भ, चाप स्कन्ध में प्रयुक्त पदक अलंकरण इसको विशिष्टता प्रदान करता है।

चित्र वीथिका

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