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# एक ब्रिटिश क्षेत्र और
 
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# दूसरा देसी रियासतें।  
 
# दूसरा देसी रियासतें।  
राज्य के पूर्वी हिस्से में माही और साबरमती नदी घाटियों में [[पाषाण काल]] की मानव बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं। ऐतिहासिक काल तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. की [[हड़प्पा]] (सिंधु घाटी) सभ्यता से जुड़ा हुआ है। इस सभ्यता के केंद्र [[लोथल]], रंगपुर, आमरी, लखबवाल और रोद्ज़ी (अधिकांश काठियावाड़ प्रायद्वीप में) में मिले हैं।  
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* राज्य के पूर्वी हिस्से में माही और साबरमती नदी घाटियों में [[पाषाण काल]] की मानव बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं। ऐतिहासिक काल तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. की [[हड़प्पा]] (सिंधु घाटी) सभ्यता से जुड़ा हुआ है। इस सभ्यता के केंद्र [[लोथल]], रंगपुर, आमरी, लखबवाल और रोद्ज़ी (अधिकांश काठियावाड़ प्रायद्वीप में) में मिले हैं।  
==मौर्य साम्राज्य==
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* गुजरात का ज्ञात इतिहास इस क्षेत्र में [[मौर्य वंश]] के विस्तार से प्रारंभ होता है, जो [[काठियावाड़]] की गिरनार पहाड़ियों की चट्टानों पर उत्कीर्ण सम्राट [[अशोक]] (लगभग 250 ई.पू.) के अभिलेखों से प्रमाणित है। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद गुजरात शक (सीथियन) या पश्चिमी क्षत्रपो (130-390 ई.) के शासन के अंतर्गत आ गया। इनमें से महानतम महाक्षत्रप रुद्रदमन ने मालवा, [[सौराष्ट्र]], [[कच्छ]] और [[राजस्थान]] में एकछत्र राज्य क़ायम किया।  
गुजरात का ज्ञात इतिहास इस क्षेत्र में [[मौर्य वंश]] के विस्तार से प्रारंभ होता है, जो [[काठियावाड़]] की गिरनार पहाड़ियों की चट्टानों पर उत्कीर्ण सम्राट [[अशोक]] (लगभग 250 ई.पू.) के अभिलेखों से प्रमाणित है। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद गुजरात शक (सीथियन) या पश्चिमी क्षत्रपो (130-390 ई.) के शासन के अंतर्गत आ गया। इनमें से महानतम महाक्षत्रप रुद्रदमन ने मालवा, [[सौराष्ट्र]], [[कच्छ]] और [[राजस्थान]] में एकछत्र राज्य क़ायम किया।  
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* चौथी और पाँचवीं सदी के दौरान वल्लभी राज्य के मैत्रक वंश के सत्ता में आने से पहले गुजरात गुप्त साम्राज्य का एक हिस्सा था, जिन्होंने तीन शताब्दियों से भी अधिक समय तक मालवा और गुजरात पर राज्य की राजधानी वल्लभीपुरा (काठियावाड़ प्रायद्वीप के पूर्वी तट के निकट) बौद्ध वैदिक और जैन शिक्षा का एक बड़ा केंद्र थी। मैत्रक वंश के बाद [[गुर्जर]]-प्रतिहार (कन्नौज के साम्राज्यवादी गुर्जर) सत्ता में आए, जिन्होंने आठवीं और नौवीं शताब्दी के दौरान शासन किया।  
==गुप्त साम्राज्य==
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* गुप्त साम्राज्य के कुछ ही बाद [[सोलंकी वंश]] का शासन हो गया। इसी वंश के दौरान गुजरात की सीमाओं में अधिकतम विस्तार हुआ और आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। सिद्धराजा जयसिम्हा और कुमारपाल सबसे प्रसिद्ध सोलंकी राजा थे। प्रख्यात लेखक हेमचंद्र इसी काल (12वीं सदी) में हुए।
चौथी और पाँचवीं सदी के दौरान वल्लभी राज्य के मैत्रक वंश के सत्ता में आने से पहले गुजरात गुप्त साम्राज्य का एक हिस्सा था, जिन्होंने तीन शताब्दियों से भी अधिक समय तक मालवा और गुजरात पर राज्य की राजधानी वल्लभीपुरा (काठियावाड़ प्रायद्वीप के पूर्वी तट के निकट) बौद्ध वैदिक और जैन शिक्षा का एक बड़ा केंद्र थी। मैत्रक वंश के बाद [[गुर्जर]]-प्रतिहार (कन्नौज के साम्राज्यवादी गुर्जर) सत्ता में आए, जिन्होंने आठवीं और नौवीं शताब्दी के दौरान शासन किया।  
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* इसके बाद के सत्तासीन वघेल वंश के कर्णदेव वघेल लगभग 1299 में दिल्ली के सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] से हार गए और गुजरात मुस्लिम के अंतर्गत आ गया।  गुजरात के पहले स्वतंत्र सुल्तान अहमद शाह थे, जिन्होंने [[अहमदाबाद]] (1411) की स्थापना की।  
==सोलंकी वंश==
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* 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में गुजरात पर मुग़लों का शासन हो गया, जो मध्य 18वीं सदी तक रहा। इसके बाद राज्य पर मराठों का शासन हो गया।  
गुप्त साम्राज्य के कुछ ही बाद [[सोलंकी वंश]] का शासन हो गया। इसी वंश के दौरान गुजरात की सीमाओं में अधिकतम विस्तार हुआ और आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। सिद्धराजा जयसिम्हा और कुमारपाल सबसे प्रसिद्ध सोलंकी राजा थे। प्रख्यात लेखक हेमचंद्र इसी काल (12वीं सदी) में हुए। इसके बाद के सत्तासीन वघेल वंश के कर्णदेव वघेल लगभग 1299 में दिल्ली के सुल्तान [[अलाउद्दीन ख़िलज़ी]] से हार गए और गुजरात मुस्लिम के अंतर्गत आ गया।  गुजरात के पहले स्वतंत्र सुल्तान अहमद शाह थे, जिन्होंने [[अहमदाबाद]] (1411) की स्थापना की।  
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* 1818 में गुजरात ब्रिटिश [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के प्रशासन के अधीन हो गया। 1857-1858 के भारतीय ग़दर के बाद यह राज्य ब्रिटिश ताज के अंतर्गत 25,900 वर्ग किमी. क्षेत्रफल वाले गुजरात प्रांत और अनेक स्थानीय राज्यों में बांट दिया गया। [[1947]] में भारत के स्वतंत्र होने पर [[कच्छ]] और सौराष्ट्र राज्यों को छोड़कर समूचे [[गुजरात]] को बंबई राज्य में शामिल कर लिया गया। 1956 में बचे दो राज्यों को समाहित कर प्रांत का विस्तार किया गया। 1 मई 1960 को बंबई राज्य को वर्तमान गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में बाँट दिया गया।  
==मुग़ल साम्राज्य==
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* [[अप्रॅल]] [[1965]] को भारत और [[पाकिस्तान]] के बीच [[कच्छ के रण]] में, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से एक विवादित स्थल था, युद्ध हुआ। [[1 जुलाई]] को दोनों देशों के बीच युद्ध विराम लागू हुआ और विवाद को एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के समक्ष मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत किया गया। इस न्यायाधिकरण के फैसले में 1968 में प्रकाशित, 9/10 हिस्सा भारत को और शेष 1/10 हिस्से का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया। गुजरात [[1985]] में एक बार फिर हिंसा की गिरफ़्त में आ गया, जो अनुसूचित जाति को प्रस्तावित आरक्षण  के मुद्दे पर भड़का और अपना स्वरूप बदलकर [[हिंदू]]-मुस्लिम दंगा बन गया। यह दौर पाँच महीनों तक चला।  
16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में गुजरात पर मुग़लों का शासन हो गया, जो मध्य 18वीं सदी तक रहा। इसके बाद राज्य पर मराठों का शासन हो गया।  
 
1818 में गुजरात ब्रिटिश [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के प्रशासन के अधीन हो गया। 1857-1858 के भारतीय ग़दर के बाद यह राज्य ब्रिटिश ताज के अंतर्गत 25,900 वर्ग किमी. क्षेत्रफल वाले गुजरात प्रांत और अनेक स्थानीय राज्यों में बांट दिया गया। [[1947]] में भारत के स्वतंत्र होने पर [[कच्छ]] और सौराष्ट्र राज्यों को छोड़कर समूचे [[गुजरात]] को बंबई राज्य में शामिल कर लिया गया। 1956 में बचे दो राज्यों को समाहित कर प्रांत का विस्तार किया गया। 1 मई 1960 को बंबई राज्य को वर्तमान गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में बाँट दिया गया।  
 
 
 
[[अप्रॅल]] [[1965]] को भारत और [[पाकिस्तान]] के बीच [[कच्छ के रण]] में, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से एक विवादित स्थल था, युद्ध हुआ। [[1 जुलाई]] को दोनों देशों के बीच युद्ध विराम लागू हुआ और विवाद को एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के समक्ष मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत किया गया। इस न्यायाधिकरण के फैसले में 1968 में प्रकाशित, 9/10 हिस्सा भारत को और शेष 1/10 हिस्से का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया। गुजरात [[1985]] में एक बार फिर हिंसा की गिरफ़्त में आ गया, जो अनुसूचित जाति को प्रस्तावित आरक्षण  के मुद्दे पर भड़का और अपना स्वरूप बदलकर [[हिंदू]]-मुस्लिम दंगा बन गया। यह दौर पाँच महीनों तक चला।  
 
  
 
==गुजरात का युद्ध (21 फ़रवरी 1849)==  
 
==गुजरात का युद्ध (21 फ़रवरी 1849)==  
 
शेर सिंह की सिक्ख सेना तथा ब्रिटिश-भारतीय सेना, जिसका नेतृत्व ह्यू गफ़, प्रथम बैरन  (बाद में प्रथम वाइकाउंट) के बीच गुजरात (जो अब पाकिस्तान में है) में लड़ी गई। द्वितीय सिक्ख युद्ध (1848-49) की यह अंतिम तथा निर्णायक जंग थी, जिसके ज़रिये [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने [[पंजाब]] को जीत कर अपने राज्य में शामिल कर लिया था। अंग्रेज़ सेना ने सिक्खों की तोपों को खामोश करने के लिए तोपख़ाने का प्रयोग किया, फिर सिक्ख रक्षा पंक्तियों को ध्वस्त किया और फिर पीछा कर 50,000 की फ़ौज को तितर-बितर कर दिया। शेर सिंह द्वारा [[12 मार्च]] को हथियार डालने के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ। पंजाब को डलहौज़ी के 10 वें अर्ल (बाद में प्रथम मार्क्यूज़) जेम्स रैमसे ने ब्रिटिश राज में शामिल किया। इस जंग ने गफ़ की सैन्य ख्याति को पुनः स्थापित किया, क्योंकि इससे पहले सामने से हमला बोलने और तोपख़ाने के इस्तेमाल में विफल रहने के लिए उनकी आलोचना होती थी।  
 
शेर सिंह की सिक्ख सेना तथा ब्रिटिश-भारतीय सेना, जिसका नेतृत्व ह्यू गफ़, प्रथम बैरन  (बाद में प्रथम वाइकाउंट) के बीच गुजरात (जो अब पाकिस्तान में है) में लड़ी गई। द्वितीय सिक्ख युद्ध (1848-49) की यह अंतिम तथा निर्णायक जंग थी, जिसके ज़रिये [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने [[पंजाब]] को जीत कर अपने राज्य में शामिल कर लिया था। अंग्रेज़ सेना ने सिक्खों की तोपों को खामोश करने के लिए तोपख़ाने का प्रयोग किया, फिर सिक्ख रक्षा पंक्तियों को ध्वस्त किया और फिर पीछा कर 50,000 की फ़ौज को तितर-बितर कर दिया। शेर सिंह द्वारा [[12 मार्च]] को हथियार डालने के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ। पंजाब को डलहौज़ी के 10 वें अर्ल (बाद में प्रथम मार्क्यूज़) जेम्स रैमसे ने ब्रिटिश राज में शामिल किया। इस जंग ने गफ़ की सैन्य ख्याति को पुनः स्थापित किया, क्योंकि इससे पहले सामने से हमला बोलने और तोपख़ाने के इस्तेमाल में विफल रहने के लिए उनकी आलोचना होती थी।  
 
 
 
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14:40, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण

प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता की दृष्टि से गुजरात भारत के अग्रणी राज्यों में एक है। गुजरात का इतिहास ईस्वी पूर्व लगभग 2,000 साल पुराना है। यह भी मान्यता है कि भगवान कृष्ण मथुरा छोड़कर सौराष्ट्र के पश्चिमी तट पर जा बसे थे, जो द्वारिका अर्थात 'प्रवेशद्वार' कहलाया। बाद के वर्षों में मौर्य, गुप्त, प्रतिहार तथा अन्य अनेक राजवंशों ने इस प्रदेश पर शासन किया। चालुक्य, सोलंकी राजाओं का शासन काल गुजरात के लिए प्रगति और समृद्धि का युग था। महमूद ग़ज़नवी की लूटपाट के बाद भी चालुक्य राजाओं ने यहाँ के लोगों की समृद्धि और भलाई का पूरा ध्यान रखा। इस गौरवपूर्ण काल के पश्चात गुजरात को मुसलमानों, मराठों और ब्रिटिश शासन के दौरान बुरे दिनों का सामना करना पड़ा। आज़ादी से पहले आज का गुजरात मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित था-

  1. एक ब्रिटिश क्षेत्र और
  2. दूसरा देसी रियासतें।
  • राज्य के पूर्वी हिस्से में माही और साबरमती नदी घाटियों में पाषाण काल की मानव बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं। ऐतिहासिक काल तीसरी से दूसरी सहस्राब्दी ई.पू. की हड़प्पा (सिंधु घाटी) सभ्यता से जुड़ा हुआ है। इस सभ्यता के केंद्र लोथल, रंगपुर, आमरी, लखबवाल और रोद्ज़ी (अधिकांश काठियावाड़ प्रायद्वीप में) में मिले हैं।
  • गुजरात का ज्ञात इतिहास इस क्षेत्र में मौर्य वंश के विस्तार से प्रारंभ होता है, जो काठियावाड़ की गिरनार पहाड़ियों की चट्टानों पर उत्कीर्ण सम्राट अशोक (लगभग 250 ई.पू.) के अभिलेखों से प्रमाणित है। मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद गुजरात शक (सीथियन) या पश्चिमी क्षत्रपो (130-390 ई.) के शासन के अंतर्गत आ गया। इनमें से महानतम महाक्षत्रप रुद्रदमन ने मालवा, सौराष्ट्र, कच्छ और राजस्थान में एकछत्र राज्य क़ायम किया।
  • चौथी और पाँचवीं सदी के दौरान वल्लभी राज्य के मैत्रक वंश के सत्ता में आने से पहले गुजरात गुप्त साम्राज्य का एक हिस्सा था, जिन्होंने तीन शताब्दियों से भी अधिक समय तक मालवा और गुजरात पर राज्य की राजधानी वल्लभीपुरा (काठियावाड़ प्रायद्वीप के पूर्वी तट के निकट) बौद्ध वैदिक और जैन शिक्षा का एक बड़ा केंद्र थी। मैत्रक वंश के बाद गुर्जर-प्रतिहार (कन्नौज के साम्राज्यवादी गुर्जर) सत्ता में आए, जिन्होंने आठवीं और नौवीं शताब्दी के दौरान शासन किया।
  • गुप्त साम्राज्य के कुछ ही बाद सोलंकी वंश का शासन हो गया। इसी वंश के दौरान गुजरात की सीमाओं में अधिकतम विस्तार हुआ और आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास हुआ। सिद्धराजा जयसिम्हा और कुमारपाल सबसे प्रसिद्ध सोलंकी राजा थे। प्रख्यात लेखक हेमचंद्र इसी काल (12वीं सदी) में हुए।
  • इसके बाद के सत्तासीन वघेल वंश के कर्णदेव वघेल लगभग 1299 में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलज़ी से हार गए और गुजरात मुस्लिम के अंतर्गत आ गया। गुजरात के पहले स्वतंत्र सुल्तान अहमद शाह थे, जिन्होंने अहमदाबाद (1411) की स्थापना की।
  • 16वीं सदी के उत्तरार्द्ध में गुजरात पर मुग़लों का शासन हो गया, जो मध्य 18वीं सदी तक रहा। इसके बाद राज्य पर मराठों का शासन हो गया।
  • 1818 में गुजरात ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन के अधीन हो गया। 1857-1858 के भारतीय ग़दर के बाद यह राज्य ब्रिटिश ताज के अंतर्गत 25,900 वर्ग किमी. क्षेत्रफल वाले गुजरात प्रांत और अनेक स्थानीय राज्यों में बांट दिया गया। 1947 में भारत के स्वतंत्र होने पर कच्छ और सौराष्ट्र राज्यों को छोड़कर समूचे गुजरात को बंबई राज्य में शामिल कर लिया गया। 1956 में बचे दो राज्यों को समाहित कर प्रांत का विस्तार किया गया। 1 मई 1960 को बंबई राज्य को वर्तमान गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में बाँट दिया गया।
  • अप्रॅल 1965 को भारत और पाकिस्तान के बीच कच्छ के रण में, जो दोनों देशों के बीच लंबे समय से एक विवादित स्थल था, युद्ध हुआ। 1 जुलाई को दोनों देशों के बीच युद्ध विराम लागू हुआ और विवाद को एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के समक्ष मध्यस्थता के लिए प्रस्तुत किया गया। इस न्यायाधिकरण के फैसले में 1968 में प्रकाशित, 9/10 हिस्सा भारत को और शेष 1/10 हिस्से का अधिकार पाकिस्तान को दिया गया। गुजरात 1985 में एक बार फिर हिंसा की गिरफ़्त में आ गया, जो अनुसूचित जाति को प्रस्तावित आरक्षण के मुद्दे पर भड़का और अपना स्वरूप बदलकर हिंदू-मुस्लिम दंगा बन गया। यह दौर पाँच महीनों तक चला।

गुजरात का युद्ध (21 फ़रवरी 1849)

शेर सिंह की सिक्ख सेना तथा ब्रिटिश-भारतीय सेना, जिसका नेतृत्व ह्यू गफ़, प्रथम बैरन (बाद में प्रथम वाइकाउंट) के बीच गुजरात (जो अब पाकिस्तान में है) में लड़ी गई। द्वितीय सिक्ख युद्ध (1848-49) की यह अंतिम तथा निर्णायक जंग थी, जिसके ज़रिये अंग्रेज़ों ने पंजाब को जीत कर अपने राज्य में शामिल कर लिया था। अंग्रेज़ सेना ने सिक्खों की तोपों को खामोश करने के लिए तोपख़ाने का प्रयोग किया, फिर सिक्ख रक्षा पंक्तियों को ध्वस्त किया और फिर पीछा कर 50,000 की फ़ौज को तितर-बितर कर दिया। शेर सिंह द्वारा 12 मार्च को हथियार डालने के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ। पंजाब को डलहौज़ी के 10 वें अर्ल (बाद में प्रथम मार्क्यूज़) जेम्स रैमसे ने ब्रिटिश राज में शामिल किया। इस जंग ने गफ़ की सैन्य ख्याति को पुनः स्थापित किया, क्योंकि इससे पहले सामने से हमला बोलने और तोपख़ाने के इस्तेमाल में विफल रहने के लिए उनकी आलोचना होती थी।


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