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सिंहासन बत्तीसी सोलह

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सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

सिंहासन बत्तीसी सोलह

उज्जैन नगरी में छत्तीस और चार जात बसती थीं। वहां एक बड़ा सेठ था। वह सबकी सहायता करता था। जो भी उसके पास जाता, ख़ाली हाथ न लौटता। उस सेठ के एक बड़ा सुन्दर पुत्र था। सेठ ने सोचा कि अच्छी लड़की मिल जाय तो उसका ब्याह कर दूं। उसने ब्राह्मणों को बुलाकर लड़की की तलाश में इधर-उधर भेजा। एक ब्राह्मण ने सेठ को खबर दी कि समुद्र पार एक सेठ है, जिसकी लड़की बड़ी रुपवती और गुणवती है। सेठ ने उसे वहां जाने को कहा। ब्राह्मण जहाज़ में बैठकर वहां पहुंचा। सेठ से मिला। सेठ ने सब बातें पूछीं और अपनी मंजूरी देकर आगे की रस्म करने के लिए अपना ब्राह्मण उसके साथ भेज दिया। दोनों ब्राह्मण कई दिन की मंज़िल तय करके उज्जैन पहुंचे।
सेठ को समाचार मिला तो वह बहुत प्रसन्न हुआ। दोनों ओर से ब्याह की तैयारी होने लगी। दावतें हुईं। ब्याह का दिन पास आ गया तो चिंता हुई कि इतने दूर देश इतने कम समय में कैसे पहुंचा जा सकता है। सब हैरान हुए। तब किसी ने कहा कि एक बढ़ई ने एक उड़न-खटोला बनाकर राजा विक्रमादित्य को दिया था। वह उसे दे दे तो समय पर पहुंचा जा सकता है और लग्न में विवाह हो सकता है।
सेठ राजा के पास गया। उसने फौरन उड़न-खटोला दे दिया और कहा, "तुम्हें और कुछ चाहिए तो ले जाओ।"
सेठ ने कहा; महाराज की दया से सब कुछ है।
उड़न-खटोला लेकर बारात समय पर पहुंच गई और बड़ी धूम-धाम से विवाह हो गया। बारात लौटी तो सेठ राजा का उड़न-खटोला वापस करने गया।
राजा ने कहा: मैं दी हुई चीज़ वापस नहीं लेता।
इतना कहकर उन्होंने बहुत-सा धन उस सेठ को दिया और कहा, "यह मेरी ओर से अपने बेटे को दे देना।"
पुतली बोली: विक्रमादित्य की बराबरी तो इंद्र भी नहीं कर सकता। तुम किस गिनती में हो
वह दिन भी गुजर गया।
अगले दिन राजा फिर सिंहासन पर बैठने को गया तो सत्यवती नाम की सत्रहवीं पुतली ने उसे रोककर यह कहानी सुनायी।

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