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भोजपुर मध्य प्रदेश

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शिव मन्दिर, भोजपुर

भोजपुर, भोपाल से 15 मील दक्षिण की ओर इस मध्यकालीन नगर के खण्डहर हैं। अब यह छोटा सा ग्राम है। नगर वेत्रवती या बेतवा नदी के तट पर स्थित था। भोजपुर का क्षेत्र पठार है और यह निर्जन और शुष्क दिखाई देता है।

इतिहास

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भोजपुर, बेतवा नदी के ठीक पूर्व में ऐतिहासिक महत्त्व का गाँव, मध्य प्रदेश, मध्य भारत में स्थित है। उत्कृष्ट नक़्क़ाशी वाले शिव मन्दिरों के भग्नावशेषों के लिए प्रसिद्ध इस ऐतिहासिक गाँव का निर्माण पारम्परिक मान्यता के अनुसार, एक परमार राजपूत राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में किया था। अधिक सम्भावना इसके 12वीं या 13वीं सदी के होने की है। कहा जाता है कि इस नगर का नाम मालवा के प्रसिद्ध राजा भोज के नाम पर पड़ा होगा। अपनी आयोजना में यह आयताकार है, जिसके चार विशाल स्तम्भ बेहतरीन नक़्क़ाशी एवं कलाकारी से सुसज्जित एक अधूरे गुम्बद को सहारा देते खड़े हैं। यहाँ पर 2.3 मीटर ऊँचा शिवलिंग है। समीप ही 6 मीटर ऊँचे जैन तीर्थकर आदिनाथ की मूर्तियुक्त तत्कालीन अर्द्ध निर्मित जैन मन्दिर है। इसके पश्चिम में 15वीं सदी में निर्मित दो प्राचीन बाँधों के भग्नावशेष भी देखने को मिलते हैं, जिनसे पता चलता है कि वहाँ पर कभी एक बड़ा जलाशय था।

शिव मन्दिर

भोजपुर का मुख्य ऐतिहासिक स्मारक यहाँ का भव्य शिव मन्दिर है। जिसका ऊपरी भाग दूर-दूर तक दिखाई देता है। इसका निर्माण राजा भोज के ही समय में ही हुआ था और इस प्रकार यह आज से प्रायः एक सहस्र वर्ष प्राचीन है। मन्दिर अपनी मूलावस्था में बहुत ही भव्य था तथा विशाल रहा होगा—यह अनुमान उसकी वर्तमान दशा से भली-भाँति किया जा सकता है। इसकी वर्तमान ऊँचाई 50 फुट है, किन्तु ऊँचाई के अनुपात में उसकी चौड़ाई अधिक है, जिससे जान पड़ता है कि प्राचीन समय में इसकी ऊँचाई अब से बहुत अधिक रही होगी। मन्दिर की रचना विशाल प्रस्तर खण्डों से की गई, जिसमें से कई आज भी आसपास खड़े हैं। ये पत्थर मसाले से जुड़े थे, जो अब पत्थरों के बीच-बीच में से निकल गया है। मन्दिर का प्रवेशद्वार भूमि से प्रायः 7फुट ऊँचा है। सीढ़ियाँ पत्थर की बनी हैं। द्वार के दोनों ओर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं, जो सम्भवतः उत्तर गुप्तकालीन हैं।

एक छोटा मन्दिर सीढ़ियों से ऊपर है, जो मुख्य मन्दिर की दीवार में ही कटा हुआ है। इसमें एक विष्णु मूर्ति प्रतिष्ठापित है। यह विष्णु मन्दिर दो स्तम्भों पर आधारित है। स्तम्भों की वास्तुकला उच्चकोटि की है। विष्णु की प्रतिमा के भिन्न अंगों का अनुपात, भावभंगिमा और खड़े होने की मुद्रा—ये सभी शिल्पशास्त्र की दृष्टि से सुन्दर एवं सुतथ्य हैं। मूर्ति पर जिन आभूषणों का अंकन है वे सभी गुप्तकाल में प्रचलित थे। प्रवेशद्वार से नीचे उतरने के लिए अनेक सीढ़ियाँ हैं, जो भूमितल तक बनी हुई हैं। मन्दिर अन्दर से चतुष्कोण है, यद्यपि बाहर से ऐसा नहीं जान पड़ता। इसका फ़र्श पत्थर का बना है। इसके केन्द्र स्थान में उस आधार स्तम्भ की रचना की गई है, जिस पर शिवलिंग स्थापित है। इस आधार स्तम्भ में तीन चक्र पहनाए गए हैं। नीचे से तीसरे के बीच में शिवलिंग स्थापित है। यह आधार स्तम्भ भूमि से लगभग दस फुट ऊँचा है। काले पत्थर के बने हुए शिवलिंग की ऊँचाई आठ फुट है और परिधि भी काफ़ी चौड़ी है। कहा जाता है कि इतना विशाल शिवलिंग भारत में अन्यत्र नहीं है। शिवलिंग और उसकी आधार शिलाएँ इस प्रकार जुड़ी हैं कि वे एक ही पत्थर में से कटी प्रतीत होती हैं। मन्दिर के बाह्य भाग का शिल्प भी सराहनीय है। इसकी चौकोर छत पर, जो अब नष्ट हो गई है, अदभुत कारीगरी है। कुछ विद्वानों का विचार है कि देवगढ़ के गुप्तकालीन मन्दिर की तुलना में भोजपुर का मन्दिर श्रेष्ठ जान पड़ता है। यद्यपि इसकी ख्याति देवगढ़ के मन्दिर की भाँति न हो सकी। छत की नक़्क़ाशी के लिए भोजपुर के शिल्पियों ने उसे कई वृत्तों में विभाजित किया है और इसमें से प्रत्येक के अन्दर कलात्मक अलंकरणों के जाल पिरोए हुए हैं। यह छत चार विशाल प्रस्तर स्तम्भों पर टिकी है। जिनकी मोटाई और ऊँचाई पर्याप्त अधिक है। इनकी तुलना साँची तथा तिगाँव के स्तम्भों से की जा सकती है। इनका निम्न भाग अपेक्षाकृत साधारण है, किन्तु जैसे-जैसे दृष्टि ऊपर जाती है इनकी कला का सौंदर्य बढ़ता जाता है और सर्वोच्च भाग पर पहुँचते-पहुँचते कला की पराकाष्ठा दिखाई पड़ती है। मन्दिर की बाह्य भित्तियाँ सादी हैं। इसमें प्रदक्षिणापथ भी नहीं है। इस शिव मन्दिर से थोड़ी ही दूर पर एक छोटा सा जैन मन्दिर है जो प्राचीन होते हुए भी ऐसा नहीं दीखता, क्योंकि परवर्ती काल में इसका कई बार पुनर्निर्माण हुआ था। यह मन्दिर चौकोर है और इसकी छत भी गुप्तकालीन मन्दिरों की छतों की भाँति सपाट हैं। मन्दिर किसी जैन तीर्थकर का है। इसकी मूर्ति विवस्त्र है और प्रायः बीस फुट ऊँची है। मूर्ति के दोनों ओर यक्ष-यक्षिणियों की प्रतिमाएँ हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 680-682 | विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  • भारत ज्ञानकोश से पेज नं.240

 

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