आंध्र प्रदेश का इतिहास

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आंध्र प्रदेश के विषय में प्रारंभिक विवरण ऐतरेय ब्राह्मण (लगभग2000 ईसा पूर्व) में मिलता है। इसमें उल्लेख हैं कि आंध्र प्रदेश के निवासी मूल रूप से आर्य जाति के थे और उत्तर भारत में रहते थे, जहां से वे विंध्य पर्वतों के दक्षिण तक चले गए और कालान्तर में अनार्यो के साथ घुल मिल गए।

  • तेलुगु शब्द का मूल रूप संस्कृत में "त्रिलिंग" है। इसका तात्पर्य आंध्र प्रदेश के श्रीशैल के मल्लिकार्जुन लिंग, कालेश्वर और द्राक्षाराम के शिवलिंग से है। इन तीनों सीमाओं से घिरा देश त्रिलिंग देश और यहाँ की भाषा त्रिलिंग (तेलुगु) कहलाई। इस शब्द का प्रयोग तेलुगु के आदि-कवि "नन्नय भट्ट" के महाभारत में मिलता है। यह शब्द त्रिनग शब्द से भी उत्पन्न हुआ माना जाता है। इसका आशय तीन बड़े बड़े पर्वतों की मध्य सीमा में व्याप्त इस प्रदेश से है। आंध्र जनता उत्तर दिशा से दक्षिण की ओर जब हटाई गई तो दक्षिणवासी होने के कारण इस प्रदेश और भाषा को "तेनुगु" नाम दिया गया।
  • तमिल भाषा में दक्षिण का नाम तेन है। तेनुगु नाम होने का एक और कारण भी है। तेनुगु में तेने (तेने उ शहद, अगु उ जाहो) शब्द का अर्थ है शहद। यह भाषा मधुमधुर होने के कारण तेनुगु नाम से प्रसिद्ध है। यह प्रदेश "वेगिनाम" से भी ज्ञात है। "वेगि" का अर्थ है कृष्णा, गोदावरी नदियों का मध्यदेश जो एक बार जल गया था। यह नाम भाषा के लिये व्यवहृत नहीं है।
  • आंध्र एक जाति का नाम है। ऋग्वेद की कथा के अनुसार ऋषि विश्वामित्र के शाप से उनके 50 पुत्र आंध्र, पुलिंद और शबर हो गए। संभवत: आंध्र जाति के लोग आर्य क्षत्रिय थे।
  • इतिहासकारों के अनुसार आंध्र प्रदेश का नियमित इतिहास 236 ईसा पूर्व से मिलना शुरू होता है। 236 ईसा पूर्व में ही सम्राट अशोक का निधन हुआ था और उसके बाद के समय में सातवाहन, शक, इक्ष्वाकु, पूर्वी चालुक्य और काकतीय ने इस तेलुगु भाषी देश पर राज्य किया। इनके बाद में विजय नगर और कुतुबशाही शासकों का शासन रहा और उनके बाद मीर कमरूद्दीन के शासन में 17 वीं शताब्दी से अंग्रेज़ों ने देश के कई भागों को अपने नियंत्रण में ले लिया और मद्रास प्रांत की स्थापना कर दी।
  • स्वतंत्रता के पश्चात् तेलुगु भाषी क्षेत्र को मद्रास प्रांत से अलग करके 1 अक्तूबर 1953 को नए प्रदेश का निर्माण किया गया जिसका नाम आंध्र प्रदेश रखा गया। राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 बनने के बाद हैदराबाद राज्य को आंध्र प्रदेश में मिला कर 1 नवंबर, 1956 में 'आंध्र प्रदेश' राज्य का निर्माण हुआ।
  • आंध्र प्रदेश के उत्तर में उड़ीसा राज्य और छत्तीसगढ़, पश्चिम में महाराष्ट्र और कर्नाटक, दक्षिण में तमिलनाडु और पूर्व में लगभग 975 किलोमीटर की तट रेखा बंगाल की खाड़ी है।
  • आन्ध्र प्रदेश में उत्नूर नामक स्थान पर उत्खनन के परिणामस्वरूप वहां हड़प्पा युगोत्तर संस्कृति का अभिज्ञान हुआ है।

ऐतिहासिक-पौराणिक संदर्भ

तिरुमला, चित्तूर ज़िला
  • ऐतरेय ब्राह्मण, 7,18 में आंध्र, शबर पुलिंद आदि दक्षिणात्य जातियों का उल्लेख है जो मूलत: विंध्यपर्वत की उपत्यकाओं में रहती थीं। महाभारत सभापर्व 31, 71 में आंध्रों का उल्लेख् है-

पांड्यांश्च द्रविडांश्चैव सहितांश्चोण्ड्रकेरलै: आंध्रस्तालवनांश्चैव कलिंगानुष्ट्रकर्णिकान्' ।

  • वन पर्व 51,22 में आंध्रों का चोलों और द्रविड़ों के साथ उल्लेख है- 'सवंगांगान् सपौंड्रौड्रान् सचोलद्राविडान्ध्रकान्' अशोक के शिलालेख 13 में भी आंध्रों को मगध-साम्राज्य के अन्तर्गत बताया गया है।
  • विष्णुपुराण 4,24,64 में आंध्र देश का इस प्रकार उल्लेख है।- 'कोसलान्ध्रपुंड्रताम्रलिप्त समुद्रतट पुरीं च देवरक्षितो रक्षित:'।
  • 240 ई. पू. के लगभग आंध्रों ने दक्षिण में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था जो धीरे-धीरे भारत-प्रायद्वीप भर में विस्तृत हो गया। इन्होंने विजातीय क्षत्रपों को हरा कर गोदावरी, बरार, मालवा, काठियावाड़ और गुजरात तक आंध्र सत्ता का विकास किया।
  • आंध्र-नरेशों में गौतमीपुत्र शातकर्णी बहुत प्रसिद्ध हुआ जो 119 ई0 के लगभग राज करता था। आंध्र-राज्य की प्रभुसत्ता 225 ई0 के लगभग तक रही। इस समय दक्षिण भारत के समुद्रतट पर कई बड़े बंदरगाह थे जिनके द्वारा रोम-साम्राज्य से भारत का व्यापार चलता था।
  • आंध्र-देश का आंतरिक शासन-प्रबंध भी बहुत सुव्यवस्थित और लोकतंत्रीय सिद्धांतों पर आधारित था जिसका प्रमाण इस प्रदेश के अनेक अभिलेखों से मिलता है। [1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली से पेज संख्या 58| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार

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