अधिकार (सूक्तियाँ)

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क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता
(1) ईश्वर द्वारा निर्मित जल और वायु की तरह सभी चीजों पर सबका सामान अधिकार होना चाहिए। महात्मा गाँधी
(2) अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता। टैगोर
(3) संसार में सबसे बड़ा अधिकार सेवा और त्याग से प्राप्त होता है। प्रेमचंद
(4) कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन्। (कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी भी नहीं) गीता
(5) लोग अपने कर्तव्य भूल जाते हैं लेकिन अपने अधिकार उन्हें याद रहते हैं। इंदिरा गांधी
(6) स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! लोकमान्य तिलक
(7) कर्तव्य एक चुम्बक है, जिसकी ओर आकर्षित हुआ अधिकार दौड़ा आता है। अज्ञात
(8) अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता।
(9) कर्म करने मे ही अधिकार है, फल मे नही।
(10) अधिकारों का उपयोग नहीं करना, खुद के शोषण को आमंत्रण देना है। विलियम पिट
(11) नैतिक बल के द्वारा ही मनुष्य दूसरों पर अधिकार कर सकता है। स्वामी रामदास
(12) आप को अच्छा करने का अधिकार बुरा करने के अधिकार के बिना नहीं मिल सकता, माता का दूध शूरवीरों का ही नहीं, वधिकों का भी पोषण करता है। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
(13) कमाए बगैर धन का उपभोग करने की तरह ही खुशी दिए बगैर खुश रहने का अधिकार हमें नहीं है। जार्ज बरनार्ड शा
(14) उस व्यक्ति को आलोचना करने का अधिकार है जो सहायता करने की भावना रखता है। अब्राहम लिंकन
(15) हो सकता है कि मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊँ, परन्तु विचार प्रकट करने के आपके अधिकार की रक्षा करूँगा। वाल्तेयर
(16) किसी काम को करने का अधिकार आप को है, पर इस बात का मतलब यह नहीं होता कि वह करना सही भी है। विलियम सेफ़ायर
(17) दिल में प्यार रखने वाले लोगों को दु:ख ही झेलने पड़ते हैं। दिल में प्यार पनपने पर बहुत सुख महसूस होता है, मगर इस सुख के साथ एक डर भी अंदर ही अंदर पनपने लगता है, खोने का डर, अधिकार कम होने का डर आदि-आदि। मगर दिल में प्यार पनपे नहीं, ऐसा तो हो नहीं सकता। तो प्यार पनपे मगर कुछ समझदारी के साथ। संक्षेप में कहें तो प्रीति में चालाकी रखने वाले ही अंतत: सुखी रहते हैं।
(18) मरना तो है ही, अपने मनुष्यत्व और अधिकार के लिए मरो। यशपाल
(19) जिस प्रकार दूसरों के अधिकार की प्रतिष्ठा करना मनुष्य का कर्त्तव्य है, उसी प्रकार अपने आत्मसम्मान की हिफाजत करना भी उसका फर्ज है। स्पेंसर
(20) कृतज्ञता एक कर्त्तव्य है जिसे लौटाना चाहिए किंतु जिसे पाने का किसी को अधिकार नहीं है। रूसो
(21) मनुष्य देह का गौरव केवल ब्रह्मा को प्रत्यक्ष जानने में नहीं है, केवल ब्रह्मानंद का स्वयं भोग करने में नहीं है, बल्कि निर्विशेष रूप ब्रह्मानंद को सबमें वितरण करने का अधिकार प्राप्त करने में है। गोपीनाथ कविराज
(22) सेनापति वही है जो सिपाही की सेवा को अधिकार न समझ कर श्रद्धा की वस्तु समझता है। रामकुमार वर्मा
(23) जो कुछ तुम्हें मिल गया है, उस पर संतोष करो और सदैव प्रसन्न रहने की चेष्टा करो। यहां पर 'मेरी' और 'तेरी' का अधिकार किसी को भी नहीं दिया गया है। हाफिज
(24) क्षमा पर मनुष्य का अधिकार है, वह पशु के पास नहीं मिलती। प्रतिहिंसा पाशव धर्म है। जयशंकर प्रसाद
(25) आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
(26) कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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