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'''सलिल चौधरी''' ([[अंग्रेज़ी]]: Salil Chowdhury; जन्म- [[19 नवम्बर]], [[1923]], [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु- [[5 सितम्बर]], [[1995]]) भारतीय फ़िल्म जगत को अपनी मधुर [[संगीत]] लहरियों से सजाने-संवारने वाले महान संगीतकार थे। उनके संगीतबद्घ गीत आज भी फिजां के कण-कण में गूँजते-से महसूस होते हैं। उन्होंने प्रमुख रूप से [[बंगाली भाषा|बंगाली]], [[हिन्दी]] और [[मलयालम भाषा|मलयालम]] फ़िल्मों के लिए संगीत दिया था। फ़िल्म जगत में 'सलिल दा' के नाम से मशहूर सलिल चौधरी को सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के तौर पर जाना जाता है। 'मधुमती', 'दो बीघा जमीन', 'आनंद', 'मेरे अपने' जैसी फ़िल्मों के मधुर संगीत के जरिए सलिल चौधरी आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाए हुए हैं। वे पूरब और पश्चिम के संगीत मिश्रण से एक ऐसा संगीत तैयार करते थे, जो परंपरागत संगीत से काफ़ी अलग होता था। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण उन्होंने श्रोताओं के दिलों में अपनी अलग ही पहचान बनाई थी।
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'''सलिल चौधरी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Salil Chowdhury''; जन्म- [[19 नवम्बर]], [[1923]], [[पश्चिम बंगाल]]; मृत्यु- [[5 सितम्बर]], [[1995]]) भारतीय फ़िल्म जगत को अपनी मधुर [[संगीत]] लहरियों से सजाने-संवारने वाले महान् संगीतकार थे। उनके संगीतबद्घ गीत आज भी फिजां के कण-कण में गूँजते-से महसूस होते हैं। उन्होंने प्रमुख रूप से [[बंगाली भाषा|बंगाली]], [[हिन्दी]] और [[मलयालम भाषा|मलयालम]] फ़िल्मों के लिए संगीत दिया था। फ़िल्म जगत में 'सलिल दा' के नाम से मशहूर सलिल चौधरी को सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के तौर पर जाना जाता है। 'मधुमती', 'दो बीघा जमीन', 'आनंद', 'मेरे अपने' जैसी फ़िल्मों के मधुर संगीत के जरिए सलिल चौधरी आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाए हुए हैं। वे पूरब और पश्चिम के संगीत मिश्रण से एक ऐसा संगीत तैयार करते थे, जो परंपरागत संगीत से काफ़ी अलग होता था। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण उन्होंने श्रोताओं के दिलों में अपनी अलग ही पहचान बनाई थी।
 
==जन्म तथा शिक्षा==
 
==जन्म तथा शिक्षा==
सलिल चौधरी का जन्म 19 नवम्बर, 1923 ई. को सोनारपुर शहर, [[पश्चिम बंगाल]] में हुआ था। उनके [[पिता]] ज्ञानेन्द्र चंद्र चौधरी [[असम]] में डॉक्टर थे। सलिल चौधरी का अधिकतर बचपन असम में ही बीता था। बचपन के दिनों से ही उनका रूझान संगीत की ओर था और वह संगीतकार बनना चाहते थे। हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की पारंपरिक शिक्षा नहीं ली थी। सलिल चौधरी के बडे़ भाई एक ऑर्केस्ट्रा मे काम किया करते थे। उनके साथ के कारण ही सलिल जी हर तरह के [[वाद्य यंत्र|वाद्य यंत्रों]] से भली-भांति परिचत हो गए थे। 'सलिल दा' को बचपन के दिनों से ही [[बाँसुरी]] बजाने का काफ़ी शौक था। इसके अलावा उन्होंने पियानो और [[वायलिन]] बजाना भी सीखा। कुछ समय के बाद वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए बंगाल आ गए। सलिल चौधरी ने अपनी स्नातक की शिक्षा [[कोलकाता]] (भूतपूर्व कलकत्ता) के मशहूर 'बंगावासी कॉलेज' से पूरी की थी।
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सलिल चौधरी का जन्म 19 नवम्बर, 1923 ई. को सोनारपुर शहर, [[पश्चिम बंगाल]] में हुआ था। उनके [[पिता]] ज्ञानेन्द्र चंद्र चौधरी [[असम]] में डॉक्टर थे। सलिल चौधरी का अधिकतर बचपन असम में ही बीता था। बचपन के दिनों से ही उनका रुझान [[संगीत]] की ओर था और वह संगीतकार बनना चाहते थे। हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की पारंपरिक शिक्षा नहीं ली थी। सलिल चौधरी के बडे़ भाई एक ऑर्केस्ट्रा मे काम किया करते थे। उनके साथ के कारण ही सलिल जी हर तरह के [[वाद्य यंत्र|वाद्य यंत्रों]] से भली-भांति परिचत हो गए थे। 'सलिल दा' को बचपन के दिनों से ही [[बाँसुरी]] बजाने का काफ़ी शौक़ था। इसके अलावा उन्होंने पियानो और [[वायलिन]] बजाना भी सीखा। कुछ समय के बाद वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए बंगाल आ गए। सलिल चौधरी ने अपनी स्नातक की शिक्षा [[कोलकाता]] (भूतपूर्व कलकत्ता) के मशहूर 'बंगावासी कॉलेज' से पूरी की थी। उनका [[विवाह]] सविता चौधरी के साथ हुआ था। वे दो पुत्रियों तथा दो पुत्रों के पिता बने थे।
 
====स्वतंत्रता संग्राम में योगदान====
 
====स्वतंत्रता संग्राम में योगदान====
इस बीच वह 'भारतीय जन नाट्य संघ' से जुड़ गए। वर्ष [[1940]] में '[[भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन|भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में सलिल चौधरी भी शामिल हो गए और इसके लिए उन्होनें अपने गीतों का सहारा लिया। अपने संगीतबद्घ गीतों के माध्यम से वह देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। इन गीतों को सलिल ने गुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया। उनके गीतों ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के विरुद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नई दिशा दी। [[1943]] मे सलिल जी के संगीतबद्घ गीत 'विचारपति तोमार विचार..' और 'धेउ उतचे तारा टूटचे..' ने आज़ादी के दीवानों में नया जोश भरने का काम किया, किंतु बाद में इस गीत को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।
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इस बीच वह '[[भारतीय जन नाट्य संघ]]' से जुड़ गए। वर्ष [[1940]] में '[[भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन|भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में सलिल चौधरी भी शामिल हो गए और इसके लिए उन्होंने अपने गीतों का सहारा लिया। अपने संगीतबद्घ गीतों के माध्यम से वह देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। इन गीतों को सलिल ने ग़ुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया। उनके गीतों ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के विरुद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नई दिशा दी। [[1943]] मे सलिल जी के संगीतबद्घ गीत 'विचारपति तोमार विचार..' और 'धेउ उतचे तारा टूटचे..' ने आज़ादी के दीवानों में नया जोश भरने का काम किया, किंतु बाद में इस गीत को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।
 
==सफलता की प्राप्ति==
 
==सफलता की प्राप्ति==
पचास के दशक में सलिल चौधरी कोलकाता में बतौर संगीतकार और गीतकार के रूप में अपनी ख़ास पहचान बनाने में सफल हो गए थे। सन [[1950]] में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वह [[मुंबई]] आ गए। इसी समय [[विमल राय]] अपनी फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वह सलिल चौधरी के संगीत बनाने के अंदाज से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सलिल जी से अपनी फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' में [[संगीत]] देने की पेशकश कर दी। सलिल चौधरी ने एक संगीतकार के रूप में अपना पहला संगीत [[1952]] में प्रदर्शित 'दो बीघा जमीन' के गीत 'आ री आ निंदिया..' के लिए दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद सलिल चौधरी ने बतौर संगीतकार बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की।
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पचास के दशक में सलिल चौधरी कोलकाता में बतौर संगीतकार और गीतकार के रूप में अपनी ख़ास पहचान बनाने में सफल हो गए थे। सन [[1950]] में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वह [[मुंबई]] आ गए। इसी समय [[विमल राय]] अपनी फ़िल्म '[[दो बीघा ज़मीन]]' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वह सलिल चौधरी के संगीत बनाने के अंदाज़ से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सलिल जी से अपनी फ़िल्म '[[दो बीघा ज़मीन]]' में [[संगीत]] देने की पेशकश कर दी। सलिल चौधरी ने एक संगीतकार के रूप में अपना पहला संगीत [[1953]] में प्रदर्शित 'दो बीघा ज़मीन' के गीत 'आ री आ निंदिया..' के लिए दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद सलिल चौधरी ने बतौर संगीतकार बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की।
 
====विमल राय के चहेते====
 
====विमल राय के चहेते====
फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' की सफलता के बाद इसका बंगला संस्करण 'रिक्शा वाला' बनाया गया। [[1955]] में प्रदर्शित इस फ़िल्म की कहानी और संगीत निर्देशन सलिल चौधरी ने ही किया था। फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' की सफलता के बाद सलिल चौधरी विमल राय के चहेते संगीतकार बन गए थे। इसके बाद विमल राय की फ़िल्मों के लिए सलिल चौधरी ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सलिल जी के सदाबहार संगीत के कारण ही विमल राय की अधिकांश फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं।
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फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' की सफलता के बाद इसका बंगला संस्करण 'रिक्शा वाला' बनाया गया। [[1955]] में प्रदर्शित इस फ़िल्म की कहानी और संगीत निर्देशन सलिल चौधरी ने ही किया था। फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' की सफलता के बाद सलिल चौधरी विमल राय के चहेते संगीतकार बन गए थे। इसके बाद विमल राय की फ़िल्मों के लिए सलिल चौधरी ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सलिल जी के सदाबहार संगीत के कारण ही विमल राय की अधिकांश फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं।
 
==प्रमुख फ़िल्में==
 
==प्रमुख फ़िल्में==
#दो बीघा जमीन (1953)
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#दो बीघा ज़मीन (1953)
 
#नौकरी (1955)
 
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#परिवार (1956)
 
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#परख (1960)
 
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#उसने कहा था (1960)
 
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#प्रेम पत्र (1962)
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#आनन्द (1971)
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#छोटी बात (1975)
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#मौसम (1975)
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#जीवन ज्योति (1976)
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====शैलेन्द्र के साथ जोड़ी====
 
====शैलेन्द्र के साथ जोड़ी====
 
सलिल चौधरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार [[शैलेन्द्र]] के साथ खूब जमी और सराही गई। शैलेन्द्र-सलिल की जोड़ी वाली फ़िल्मों के गीतों में प्रमुख हैं-
 
सलिल चौधरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार [[शैलेन्द्र]] के साथ खूब जमी और सराही गई। शैलेन्द्र-सलिल की जोड़ी वाली फ़िल्मों के गीतों में प्रमुख हैं-
 
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#अजब तेरी दुनिया हो मोरे रामा.. (दो बीघा ज़मीन, [[1953]])
#अजब तेरी दुनिया हो मोरे रामा.. (दो बीघा जमीन, [[1953]])
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#जागो मोहन प्यारे.. ([[जागते रहो]], [[1956]])
#जागो मोहन प्यारे.. (जागते रहो, [[1956]])
 
 
#आजा रे मैं तो कब से खड़ी उस पार, टूटे हुए ख्वाबों ने.. (मधुमति, [[1958]])
 
#आजा रे मैं तो कब से खड़ी उस पार, टूटे हुए ख्वाबों ने.. (मधुमति, [[1958]])
 
#अहा रिमझिम के प्यारे-प्यारे गीत लिए आई रात सुहानी.. (उसने कहा था, [[1960]])
 
#अहा रिमझिम के प्यारे-प्यारे गीत लिए आई रात सुहानी.. (उसने कहा था, [[1960]])
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#ऐ मतवाले दिल जरा झूम ले.. (पिंजरे के पंछी, [[1966]])
 
#ऐ मतवाले दिल जरा झूम ले.. (पिंजरे के पंछी, [[1966]])
  
सलिल चौधरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार गुलजार के साथ भी काफी पसंद की गई। सबसे पहले इन दोनों फनकारों का गीत-संगीत वर्ष 1960 में प्रदर्शित फ़िल्म काबुली वाला..में पसंद किया गया। इसके बाद सलिल-गुलजार ने कई फ़िल्मों में अपने गीत-संगीत के जरिए श्रोताओं का मन मोहे रखा। इन फ़िल्मों में मेरे अपने और आंनद जैसी सुपरहिट फ़िल्में शामिल है।
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'सलिल दा' के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार '[[गुलज़ार]]' के साथ भी काफ़ी पसंद की गई। सबसे पहले इन दोनों फनकारों का गीत-[[संगीत]] [[1960]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'काबुली वाला' में पसंद किया गया। इसके बाद सलिल और [[गुलज़ार]] ने कई फ़िल्मों में अपने गीत-संगीत के जरिए श्रोताओं का मनोरंजन किया। इन फ़िल्मों में 'मेरे अपने' और 'आंनद' जैसी सुपरहिट फ़िल्में भी शामिल थीं।
 
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====पसंदीदा गायिका====
सलिल चौधरी की पसंदीदा पा‌र्श्वगयिका के तौर पर लता मंगेश्कर का नाम सबसे पहले आता है। लता की सुरमयी आवाज के जादू से सलिल चौधरी कासंगीत सज उठता था। उस दौर की किसी फ़िल्म के गाने की गायिक ा लता और संगीतकार सलिल हो तो गानों के हिट होने में कोई संशय नहीं होता था। अपनी आवाज के जादू से सलिल के जिन संगीत को लता ने कर्णप्रिय बनाया, उनमें आजा रे निंदिया तू आ.. (दो बीघा जमीन, 1953), आजा रे परदेसी मैं तो कब से खड़ी उस पार.. (जागो मोहन प्यारे, 1956), दिल तड़प-तड़प के कह रहा है.. (मधुमति, 1958), अहा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे आई रात सुहानी.. (उसने कहा था, 1961), इतना ना तू मुझसे प्यार बढ़ा.. (छाया, 1961), ना जाने क्यूं होता है कोई जिंदगी के साथ.. (छोटी सी बात, 1975) जैसे सुपरहिट नगमें शामिल है। वर्ष 1958 में विमल राय की फ़िल्म मधुमति के लिए सलिल चौधरी सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। वर्ष 1998 में संगीत के क्षेत्र मे उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए वह संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। वर्ष 1960 में प्रदर्शित फ़िल्म काबुलीवाला में पा‌र्श्व गायक मन्ना डे की आवाज में सजा यह गीत ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछडे़ चमन तुझपे दिल कुर्बान..आज भी श्रोताओं की आंखो को नम कर देता है।
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पा‌र्श्वगयिका [[लता मंगेशकर]] सलिल जी की पसंदीदा गायिका रहीं। लताजी की सुरमयी आवाज़ के जादू से सलिल चौधरी का संगीत सज उठता था। उस दौर की किसी फ़िल्म के गाने की गायिका लताजी और संगीतकार सलिल जी हों तो गानों के हिट होने में कोई संशय नहीं रहता था। अपनी आवाज़ के जादू से सलिल चौधरी के जिन संगीत को लता मंगेशकर ने कर्णप्रिय बनाया, उनमें 'आजा रे निंदिया तू आ..', 'दिल तड़प-तड़प के कह रहा है..', 'इतना ना तू मुझसे प्यार बढ़ा..' आदि सुपरहिट गीत शामिल हैं।
 
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==पुरस्कार व सम्मान==
70 के दशक में सलिल चौधरी को मुंबई की चकाचौंध कुछ अजीब सी लगने लगी और वह कोलकाता वापस आ गए। इस बीच उन्होंने कई बंगला गानें लिखे। इनमें सुरेर झरना और तेलेर शीशी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। सलिल चौधरी ने अपने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 75 हिंदी फ़िल्मों में संगीत दिया। हिंदी फ़िल्मों के अलावे उन्होने मलयालम, तमिल, तेलगू, कन्नड, गुजराती, असमिया, उडिया, मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया। लगभग चार दशक तक अपने संगीत के जादू से श्रोताओं को भाव विभोर करने वाले महान संगीतकार सलिल चौधरी 5 सिंतबर 1995 को इस दुनिया से अलविदा ले गए।
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वर्ष [[1958]] में [[विमल राय]] की फ़िल्म 'मधुमति' के लिए सलिल चौधरी सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के 'फ़िल्मफेयर पुरस्कार' से सम्मानित किए गए। [[1988]] में संगीत के क्षेत्र मे उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए वह 'संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार' से भी सम्मानित किए गए। वर्ष [[1960]] में प्रदर्शित फ़िल्म 'काबुली वाला' में पा‌र्श्वगायक '[[मन्ना डे]]' की आवाज़ में सजा यह गीत "[[ऐ मेरे प्यारे वतन|ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछडे़ चमन, तुझपे दिल कुर्बान]].." आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है।
 
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====अन्य भाषाओं के लिए संगीत====
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70 के दशक में सलिल चौधरी को [[मुंबई]] की चकाचौंध कुछ अजीब-सी लगने लगी। अब वह [[कोलकाता]] वापस आ गए। इस बीच उन्होंने कई [[बंगला भाषा|बंगला]] गाने भी लिखे। इनमें 'सुरेर झरना' और 'तेलेर शीशी' श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। सलिल जी ने अपने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 75 [[हिन्दी]] फ़िल्मों में [[संगीत]] दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने [[मलयालम भाषा|मलयालम]], [[तमिल भाषा|तमिल]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगू]], [[कन्नड़ भाषा|कन्नड]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[असमिया भाषा|असमिया]], [[उड़िया भाषा|उड़िया]] और [[मराठी भाषा|मराठी]] फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया।
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==निधन==
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लगभग चार दशक तक अपने संगीत के जादू से श्रोताओं को भाव विभोर करने वाले महान् संगीतकार सलिल चौधरी का [[5 सितम्बर]], [[1995]] को निधन हुआ।
  
 
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05:26, 19 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

सलिल चौधरी
सलिल चौधरी
पूरा नाम सलिल चौधरी
अन्य नाम 'सलिल दा'
जन्म 19 नवम्बर, 1923
जन्म भूमि पश्चिम बंगाल
मृत्यु मृत्यु-5 सितम्बर, 1995
पति/पत्नी सविता चौधरी
संतान दो पुत्रियाँ और दो पुत्र
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र संगीत
मुख्य फ़िल्में 'दो बीघा जमीन', 'प्रेमपत्र', 'आनन्द', 'मेरे अपने', 'रजनीगन्धा', 'मौसम', 'जीवन ज्योति', 'नौकरी', 'मधुमती', 'हाफ़ टिकट, 'उसने कहा था' आदि।
शिक्षा स्नातक
विद्यालय 'बंगावासी कॉलेज', कोलकाता
पुरस्कार-उपाधि 'फ़िल्म फेयर पुरस्कार' (1958), 'संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार' (1988)
प्रसिद्धि संगीतकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सलिल जी ने संगीतकार के रूप में अपना पहला संगीत 1953 में फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' के गीत के लिए दिया था।

सलिल चौधरी (अंग्रेज़ी: Salil Chowdhury; जन्म- 19 नवम्बर, 1923, पश्चिम बंगाल; मृत्यु- 5 सितम्बर, 1995) भारतीय फ़िल्म जगत को अपनी मधुर संगीत लहरियों से सजाने-संवारने वाले महान् संगीतकार थे। उनके संगीतबद्घ गीत आज भी फिजां के कण-कण में गूँजते-से महसूस होते हैं। उन्होंने प्रमुख रूप से बंगाली, हिन्दी और मलयालम फ़िल्मों के लिए संगीत दिया था। फ़िल्म जगत में 'सलिल दा' के नाम से मशहूर सलिल चौधरी को सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के तौर पर जाना जाता है। 'मधुमती', 'दो बीघा जमीन', 'आनंद', 'मेरे अपने' जैसी फ़िल्मों के मधुर संगीत के जरिए सलिल चौधरी आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाए हुए हैं। वे पूरब और पश्चिम के संगीत मिश्रण से एक ऐसा संगीत तैयार करते थे, जो परंपरागत संगीत से काफ़ी अलग होता था। अपनी इन्हीं खूबियों के कारण उन्होंने श्रोताओं के दिलों में अपनी अलग ही पहचान बनाई थी।

जन्म तथा शिक्षा

सलिल चौधरी का जन्म 19 नवम्बर, 1923 ई. को सोनारपुर शहर, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता ज्ञानेन्द्र चंद्र चौधरी असम में डॉक्टर थे। सलिल चौधरी का अधिकतर बचपन असम में ही बीता था। बचपन के दिनों से ही उनका रुझान संगीत की ओर था और वह संगीतकार बनना चाहते थे। हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की पारंपरिक शिक्षा नहीं ली थी। सलिल चौधरी के बडे़ भाई एक ऑर्केस्ट्रा मे काम किया करते थे। उनके साथ के कारण ही सलिल जी हर तरह के वाद्य यंत्रों से भली-भांति परिचत हो गए थे। 'सलिल दा' को बचपन के दिनों से ही बाँसुरी बजाने का काफ़ी शौक़ था। इसके अलावा उन्होंने पियानो और वायलिन बजाना भी सीखा। कुछ समय के बाद वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए बंगाल आ गए। सलिल चौधरी ने अपनी स्नातक की शिक्षा कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) के मशहूर 'बंगावासी कॉलेज' से पूरी की थी। उनका विवाह सविता चौधरी के साथ हुआ था। वे दो पुत्रियों तथा दो पुत्रों के पिता बने थे।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

इस बीच वह 'भारतीय जन नाट्य संघ' से जुड़ गए। वर्ष 1940 में 'भारतीय स्वतंत्रता संग्राम' अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में सलिल चौधरी भी शामिल हो गए और इसके लिए उन्होंने अपने गीतों का सहारा लिया। अपने संगीतबद्घ गीतों के माध्यम से वह देशवासियों मे जागृति पैदा किया करते थे। इन गीतों को सलिल ने ग़ुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया। उनके गीतों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नई दिशा दी। 1943 मे सलिल जी के संगीतबद्घ गीत 'विचारपति तोमार विचार..' और 'धेउ उतचे तारा टूटचे..' ने आज़ादी के दीवानों में नया जोश भरने का काम किया, किंतु बाद में इस गीत को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया।

सफलता की प्राप्ति

पचास के दशक में सलिल चौधरी कोलकाता में बतौर संगीतकार और गीतकार के रूप में अपनी ख़ास पहचान बनाने में सफल हो गए थे। सन 1950 में अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वह मुंबई आ गए। इसी समय विमल राय अपनी फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वह सलिल चौधरी के संगीत बनाने के अंदाज़ से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने सलिल जी से अपनी फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' में संगीत देने की पेशकश कर दी। सलिल चौधरी ने एक संगीतकार के रूप में अपना पहला संगीत 1953 में प्रदर्शित 'दो बीघा ज़मीन' के गीत 'आ री आ निंदिया..' के लिए दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद सलिल चौधरी ने बतौर संगीतकार बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की।

विमल राय के चहेते

फ़िल्म 'दो बीघा ज़मीन' की सफलता के बाद इसका बंगला संस्करण 'रिक्शा वाला' बनाया गया। 1955 में प्रदर्शित इस फ़िल्म की कहानी और संगीत निर्देशन सलिल चौधरी ने ही किया था। फ़िल्म 'दो बीघा जमीन' की सफलता के बाद सलिल चौधरी विमल राय के चहेते संगीतकार बन गए थे। इसके बाद विमल राय की फ़िल्मों के लिए सलिल चौधरी ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। सलिल जी के सदाबहार संगीत के कारण ही विमल राय की अधिकांश फ़िल्में आज भी याद की जाती हैं।

प्रमुख फ़िल्में

  1. दो बीघा ज़मीन (1953)
  2. नौकरी (1955)
  3. परिवार (1956)
  4. मधुमति (1958)
  5. परख (1960)
  6. उसने कहा था (1960)
  7. प्रेम पत्र (1962)
  8. पूनम की रात (1965)
  9. आनन्द (1971)
  10. मेरे अपने (1971)
  11. रजनीगन्धा (1974)
  12. छोटी बात (1975)
  13. मौसम (1975)
  14. जीवन ज्योति (1976)
  15. अग्नि परीक्षा (1981)

शैलेन्द्र के साथ जोड़ी

सलिल चौधरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार शैलेन्द्र के साथ खूब जमी और सराही गई। शैलेन्द्र-सलिल की जोड़ी वाली फ़िल्मों के गीतों में प्रमुख हैं-

  1. अजब तेरी दुनिया हो मोरे रामा.. (दो बीघा ज़मीन, 1953)
  2. जागो मोहन प्यारे.. (जागते रहो, 1956)
  3. आजा रे मैं तो कब से खड़ी उस पार, टूटे हुए ख्वाबों ने.. (मधुमति, 1958)
  4. अहा रिमझिम के प्यारे-प्यारे गीत लिए आई रात सुहानी.. (उसने कहा था, 1960)
  5. गोरी बाबुल का घर है अब विदेशवा.. (चार दीवारी, 1961)
  6. चाँद रात तुम हो साथ.. (हाफ़ टिकट, 1962)
  7. ऐ मतवाले दिल जरा झूम ले.. (पिंजरे के पंछी, 1966)

'सलिल दा' के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार 'गुलज़ार' के साथ भी काफ़ी पसंद की गई। सबसे पहले इन दोनों फनकारों का गीत-संगीत 1960 में प्रदर्शित फ़िल्म 'काबुली वाला' में पसंद किया गया। इसके बाद सलिल और गुलज़ार ने कई फ़िल्मों में अपने गीत-संगीत के जरिए श्रोताओं का मनोरंजन किया। इन फ़िल्मों में 'मेरे अपने' और 'आंनद' जैसी सुपरहिट फ़िल्में भी शामिल थीं।

पसंदीदा गायिका

पा‌र्श्वगयिका लता मंगेशकर सलिल जी की पसंदीदा गायिका रहीं। लताजी की सुरमयी आवाज़ के जादू से सलिल चौधरी का संगीत सज उठता था। उस दौर की किसी फ़िल्म के गाने की गायिका लताजी और संगीतकार सलिल जी हों तो गानों के हिट होने में कोई संशय नहीं रहता था। अपनी आवाज़ के जादू से सलिल चौधरी के जिन संगीत को लता मंगेशकर ने कर्णप्रिय बनाया, उनमें 'आजा रे निंदिया तू आ..', 'दिल तड़प-तड़प के कह रहा है..', 'इतना ना तू मुझसे प्यार बढ़ा..' आदि सुपरहिट गीत शामिल हैं।

पुरस्कार व सम्मान

वर्ष 1958 में विमल राय की फ़िल्म 'मधुमति' के लिए सलिल चौधरी सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के 'फ़िल्मफेयर पुरस्कार' से सम्मानित किए गए। 1988 में संगीत के क्षेत्र मे उनके बहुमूल्य योगदान को देखते हुए वह 'संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार' से भी सम्मानित किए गए। वर्ष 1960 में प्रदर्शित फ़िल्म 'काबुली वाला' में पा‌र्श्वगायक 'मन्ना डे' की आवाज़ में सजा यह गीत "ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछडे़ चमन, तुझपे दिल कुर्बान.." आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है।

अन्य भाषाओं के लिए संगीत

70 के दशक में सलिल चौधरी को मुंबई की चकाचौंध कुछ अजीब-सी लगने लगी। अब वह कोलकाता वापस आ गए। इस बीच उन्होंने कई बंगला गाने भी लिखे। इनमें 'सुरेर झरना' और 'तेलेर शीशी' श्रोताओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुए। सलिल जी ने अपने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 75 हिन्दी फ़िल्मों में संगीत दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मलयालम, तमिल, तेलुगू, कन्नड, गुजराती, असमिया, उड़िया और मराठी फ़िल्मों के लिए भी संगीत दिया।

निधन

लगभग चार दशक तक अपने संगीत के जादू से श्रोताओं को भाव विभोर करने वाले महान् संगीतकार सलिल चौधरी का 5 सितम्बर, 1995 को निधन हुआ।


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