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*[[राजस्थान]] मेलों और उत्सवों की धरती है।  
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*[[होली]], [[दीपावली]], [[विजय दशमी|विजयदशमी]], [[क्रिसमस]] जैसे प्रमख राष्ट्रीय त्योहारों के अलावा अनेक देवी-देवताओं, संतो और लोकनायकों तथा नायिकाओं के जन्मदिन मनाए जाते हैं।  
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[[राजस्थान]] में मुश्किल से कोई महीना ऐसा जाता होगा, जिसमें धार्मिक उत्सव न हो। सबसे उल्लेखनीय व विशिष्ट उत्सव [[गणगौर]] है, जिसमें [[महादेव]] व [[पार्वती]] की [[मिट्टी]] की मूर्तियों की पूजा 15 दिन तक सभी जातियों की स्त्रियों के द्वारा की जाती है, और बाद में उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन की शोभायात्रा में पुरोहित व अधिकारी भी शामिल होते हैं व बाजे-गाजे के साथ शोभायात्रा निकलती है। [[हिन्दू]] और [[मुसलमान]], दोनों एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। इन अवसरों पर उत्साह व उल्लास का बोलबाला रहता है।
*यहाँ के महत्त्वपूर्ण मेले हैं [[हरियाली तीज|तीज]], [[गणगौर]](जयपुर), अजमेर शरीफ और गलियाकोट के वार्षिक उर्स, बेनेश्वर (डूंगरपुर) का जनजातीय कुंभ, श्री महावीर जी ([[सवाई माधोपुर]] मेला), रामदेउरा (जैसलमेर), जंभेश्वर जी मेला(मुकाम-बीकानेर), [[कार्तिक पूर्णिमा]] और पशु-मेला ([[पुष्कर]]-अजमेर) और श्याम जी मेला ([[सीकर]]) आदि।
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एक अन्य प्रमुख उत्सव [[अजमेर]] के निकट [[पुष्कर]] में होता है, जो धार्मिक उत्सव व पशु मेले का मिश्रित स्वरूप है। यहाँ राज्य भर से किसान अपने ऊँट व [[गाय]]-भैंस आदि लेकर आते हैं, एवं तीर्थयात्री मुक्ति की खोज में आते हैं। अजमेर स्थित सूफ़ी [[अध्यात्मवाद|अध्यात्मवादी]] [[ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह|ख़्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह]] [[भारत]] की [[मुसलमान|मुसलमानों]] की पवित्रतम दरगाहों में से एक है। उर्स के अवसर पर प्रत्येक [[वर्ष]] लगभग तीन लाख श्रद्धालु देश-विदेश से दरगाह पर आते हैं।
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राजस्थान का विशिष्ट नृत्य [[घूमर नृत्य|घूमर]] है, जिसे उत्सवों के अवसर पर केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है। घेर नृत्य (महिलाओं और पुरुषों द्वारा किया जाने वाला, [[पनिहारी नृत्य|पनिहारी]] (महिलाओं का लालित्यपूर्ण नृत्य), व [[कच्ची घोड़ी नृत्य|कच्ची घोड़ी]] (जिसमें पुरुष नर्तक वनावटी घोड़ी पर बैठे होते हैं) भी लोकप्रिय है। सबसे प्रसिद्ध गीत ‘खुर्जा’ है, जिसमें एक स्त्री की कहानी है, जो अपने पति को खुर्जा पक्षी के माध्यम से संदेश भेजना चाहती है व उसकी इस सेवा के बदले उसे बेशक़ीमती पुरस्कार का वायदा करती है। राजस्थान ने [[भारतीय कला]] में अपना योगदान दिया है और यहाँ साहित्यिक परम्परा मौजूद है। विशेषकर भाट कविता की। [[चंदबरदाई]] का काव्य [[पृथ्वीराज रासो]] या चंद रासा, विशेष उल्लेखनीय है, जिसकी प्रारम्भिक हस्तलिपि 12वीं शताब्दी की है। मनोरंजन का लोकप्रिय माध्यम [[ख़्याल नृत्य|ख़्याल]] है, जो एक नृत्य-नाटिका है और जिसके काव्य की विषय-वस्तु उत्सव, इतिहास या प्रणय प्रसंगों पर आधारित रहती है। राजस्थान में प्राचीन दुर्लभ वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में हैं, जिनमें [[बौद्ध]] [[शिलालेख]], जैन मन्दिर, क़िले, शानदार रियासती महल और मस्जिद व गुम्बद शामिल हैं।
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;त्योहार
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*राजस्थान मेलों और उत्सवों की धरती है।  
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*[[होली]], [[दीपावली]], [[विजय दशमी|विजयदशमी]], [[क्रिसमस]] जैसे प्रमख राष्ट्रीय त्योहारों के अलावा अनेक देवी-[[देवता|देवताओं]], संतो और लोकनायकों तथा नायिकाओं के जन्मदिन मनाए जाते हैं।  
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*यहाँ के महत्त्वपूर्ण मेले हैं [[हरियाली तीज|तीज]], [[गणगौर]](जयपुर), अजमेर शरीफ़ और गलियाकोट के वार्षिक उर्स, बेनेश्वर ([[डूंगरपुर]]) का जनजातीय कुंभ, [[श्री महावीर जी]] ([[सवाई माधोपुर]] मेला), रामदेउरा (जैसलमेर), जंभेश्वर जी मेला(मुकाम-बीकानेर), [[कार्तिक पूर्णिमा]] और पशु-मेला ([[पुष्कर]]-अजमेर) और श्याम जी मेला (सीकर) आदि।
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राजस्थान को फेस्टिवल टूरिज्म का प्रमुख केंद्र कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। [[पुष्कर मेला]] देश के सबसे बड़े आकर्षणों में से है। हर साल लाखों श्रद्धालु [[पुष्कर]] आकर पवित्र झील में डूबकी लगाते हैं। यहां दुनिया का सबसे बड़ा ऊंटों का मेला भी लगता है जिसमें 50,000 ऊँट हिस्सा लेते हैं। [[जनवरी]], [[2010]] में इस मेले ने बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया। [[इलाहाबाद]], [[हरिद्वार]], [[उज्जैन]] और [[नासिक]] में हर 12 साल पर [[कुंभ]] होता है जबकि हर छह साल में अर्द्धकुंभ का आयोजन हरिद्वार और [[प्रयाग]] में होता है। इनमें विदेशी पर्यटक भारी तादाद में आते हैं।
  
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08:20, 14 मई 2014 के समय का अवतरण

मिट्टी के सामान की दुकान, जयपुर

राजस्थान में मुश्किल से कोई महीना ऐसा जाता होगा, जिसमें धार्मिक उत्सव न हो। सबसे उल्लेखनीय व विशिष्ट उत्सव गणगौर है, जिसमें महादेवपार्वती की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा 15 दिन तक सभी जातियों की स्त्रियों के द्वारा की जाती है, और बाद में उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन की शोभायात्रा में पुरोहित व अधिकारी भी शामिल होते हैं व बाजे-गाजे के साथ शोभायात्रा निकलती है। हिन्दू और मुसलमान, दोनों एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। इन अवसरों पर उत्साह व उल्लास का बोलबाला रहता है।

एक अन्य प्रमुख उत्सव अजमेर के निकट पुष्कर में होता है, जो धार्मिक उत्सव व पशु मेले का मिश्रित स्वरूप है। यहाँ राज्य भर से किसान अपने ऊँट व गाय-भैंस आदि लेकर आते हैं, एवं तीर्थयात्री मुक्ति की खोज में आते हैं। अजमेर स्थित सूफ़ी अध्यात्मवादी ख़्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत की मुसलमानों की पवित्रतम दरगाहों में से एक है। उर्स के अवसर पर प्रत्येक वर्ष लगभग तीन लाख श्रद्धालु देश-विदेश से दरगाह पर आते हैं।

नृत्य-नाटिका

राजस्थान का विशिष्ट नृत्य घूमर है, जिसे उत्सवों के अवसर पर केवल महिलाओं द्वारा किया जाता है। घेर नृत्य (महिलाओं और पुरुषों द्वारा किया जाने वाला, पनिहारी (महिलाओं का लालित्यपूर्ण नृत्य), व कच्ची घोड़ी (जिसमें पुरुष नर्तक वनावटी घोड़ी पर बैठे होते हैं) भी लोकप्रिय है। सबसे प्रसिद्ध गीत ‘खुर्जा’ है, जिसमें एक स्त्री की कहानी है, जो अपने पति को खुर्जा पक्षी के माध्यम से संदेश भेजना चाहती है व उसकी इस सेवा के बदले उसे बेशक़ीमती पुरस्कार का वायदा करती है। राजस्थान ने भारतीय कला में अपना योगदान दिया है और यहाँ साहित्यिक परम्परा मौजूद है। विशेषकर भाट कविता की। चंदबरदाई का काव्य पृथ्वीराज रासो या चंद रासा, विशेष उल्लेखनीय है, जिसकी प्रारम्भिक हस्तलिपि 12वीं शताब्दी की है। मनोरंजन का लोकप्रिय माध्यम ख़्याल है, जो एक नृत्य-नाटिका है और जिसके काव्य की विषय-वस्तु उत्सव, इतिहास या प्रणय प्रसंगों पर आधारित रहती है। राजस्थान में प्राचीन दुर्लभ वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में हैं, जिनमें बौद्ध शिलालेख, जैन मन्दिर, क़िले, शानदार रियासती महल और मस्जिद व गुम्बद शामिल हैं।

त्योहार
टूरिज्म फेस्टिवल

राजस्थान को फेस्टिवल टूरिज्म का प्रमुख केंद्र कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पुष्कर मेला देश के सबसे बड़े आकर्षणों में से है। हर साल लाखों श्रद्धालु पुष्कर आकर पवित्र झील में डूबकी लगाते हैं। यहां दुनिया का सबसे बड़ा ऊंटों का मेला भी लगता है जिसमें 50,000 ऊँट हिस्सा लेते हैं। जनवरी, 2010 में इस मेले ने बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया। इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में हर 12 साल पर कुंभ होता है जबकि हर छह साल में अर्द्धकुंभ का आयोजन हरिद्वार और प्रयाग में होता है। इनमें विदेशी पर्यटक भारी तादाद में आते हैं।


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