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'''राजपूताना''' या '''रजवाड़ा''' भी कहलाता है। ये प्रारम्भ में [[गुर्जर|गुर्जरो]] का देश था तथा '''गुर्जरत्रा''' (गुर्जरो से रक्षित देश), '''गुर्जरदेश''', '''गुर्जरधरा''' आदि नामों से जाना जाता था।<ref>Sir Jivanji Jamshedji Modi (1930). Dr. Modi memorial volume: papers on Indo-Iranian and other subjects. Fort Printing Press. p. 521</ref>गुर्जरों का साम्राज्य यहाँ 12वीं सदी तक रहा है।<ref>R.C. Majumdar (1994). Ancient India. Motilal Banarsidass Publ.. p. 263</ref>गुर्जरों के बाद यहा राजपूतों की राजनैतिक सत्ता आयी तथा ब्रिटिशकाल में यह ''राजपूताना'' (राजपूतों का देश) नाम से जाने जाना लगा। <ref>John Keay (2001). India: a history. Grove Press. pp. 231–232</ref>इस प्रदेश का आधुनिक नाम [[राजस्थान]] है, जो उत्तर [[भारत]] के पश्चिमी भाग में अरावली की पहाड़ियों के दोनों ओर फैला हुआ है। इसका अधिकांश भाग मरुस्थल है। यहाँ वर्षा अत्यल्प और वह भी विभिन्न क्षेत्रों में असमान रूप से होती है। यह मुख्यत: वर्तमान [[राजस्थान]] राज्य की भूतपूर्व रियासतों का समूह है, जो [[भारत]] का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
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'''राजपूताना''' या '''रजवाड़ा''' भी कहलाता है। ये प्रारम्भ में [[गुर्जर|गुर्जरो]] का देश था तथा '''गुर्जरत्रा''' (गुर्जरो से रक्षित देश), '''गुर्जरदेश''', '''गुर्जरधरा''' आदि नामों से जाना जाता था।<ref>Sir Jivanji Jamshedji Modi (1930). Dr. Modi memorial volume: papers on Indo-Iranian and other subjects. Fort Printing Press. p. 521</ref>गुर्जरों का साम्राज्य यहाँ 12वीं [[सदी]] तक रहा है।<ref>R.C. Majumdar (1994). Ancient India. Motilal Banarsidass Publ.. p. 263</ref>गुर्जरों के बाद यहा राजपूतों की राजनीतिक सत्ता आयी तथा ब्रिटिशकाल में यह राजपूताना (राजपूतों का देश) नाम से जाने जाना लगा। <ref>John Keay (2001). India: a history. Grove Press. pp. 231–232</ref>इस प्रदेश का आधुनिक नाम [[राजस्थान]] है, जो उत्तर [[भारत]] के पश्चिमी भाग में अरावली की पहाड़ियों के दोनों ओर फैला हुआ है। इसका अधिकांश भाग मरुस्थल है। यहाँ वर्षा अत्यल्प और वह भी विभिन्न क्षेत्रों में असमान रूप से होती है। यह मुख्यत: वर्तमान [[राजस्थान]] राज्य की भूतपूर्व रियासतों का समूह है, जो [[भारत]] का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
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==भौगोलिक स्थिति==
 
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3,43,328 वर्ग किमी. क्षेत्रफल वाले इस इलाक़े के दो भौगोलिक खण्ड हैं, '''अरावली पर्वत श्रृंखला का पश्चिमोत्तर क्षेत्र'''-जो अनुपजाऊ व ज़्यादातर रेतीला है। इसमें थार के रेगिस्तान का एक हिस्सा शामिल है और '''पर्वत श्रृंखला का दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र'''-जो सामान्यत: ऊँचा तथा अधिक उपजाऊ है। इस प्रकार समस्त क्षेत्र एक ऐसे सघन अवरोध का निर्माण करता है, जिसमें उत्तर भारत के मैदान और प्रायद्वीपीय भारत के मुख्य पठार के मध्य स्थित पहाड़ी और पठारी क्षेत्र सम्मिलित हैं।  
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3,43,328 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस इलाक़े के दो भौगोलिक खण्ड हैं, '''अरावली पर्वत श्रृंखला का पश्चिमोत्तर क्षेत्र'''-जो अनुपजाऊ व ज़्यादातर रेतीला है। इसमें [[थार मरुस्थल]] का एक हिस्सा शामिल है और '''पर्वत श्रृंखला का दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र'''-जो सामान्यत: ऊँचा तथा अधिक उपजाऊ है। इस प्रकार समस्त क्षेत्र एक ऐसे सघन अवरोध का निर्माण करता है, जिसमें उत्तर भारत के मैदान और प्रायद्वीपीय भारत के मुख्य पठार के मध्य स्थित पहाड़ी और पठारी क्षेत्र सम्मिलित हैं।  
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==राजस्थान का उदय==
'''राजपूताना''' में 23 राज्य, एक सरदारी, एक जागीर और [[अजमेर]]-[[मेवाड़]] का ब्रिटिश ज़िला शामिल थे। शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे। ये राजपूताना के ऐतिहासिक क्षेत्र के क्षत्रिय थे, जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में प्रवेश करना आरम्भ किया। [[जोधपुर]], [[जैसलमेर]], [[बीकानेर]], [[जयपुर]] और [[उदयपुर]] सबसे बड़े राज्य थे। 1947 में विभिन्न चरणों में इन राज्यों का एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया। दक्षिण-पूर्व राजपूताना के कुछ पुराने क्षेत्र मध्य प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम में और कुछ क्षेत्र अब [[गुजरात]] का हिस्सा हैं।
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'''राजपूताना में 23 राज्य''', एक सरदारी, एक जागीर और [[अजमेर]]-[[मेवाड़]] का ब्रिटिश ज़िला शामिल थे। शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे। ये राजपूताना के ऐतिहासिक क्षेत्र के क्षत्रिय थे, जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में प्रवेश करना आरम्भ किया। [[जोधपुर]], [[जैसलमेर]], [[बीकानेर]], [[जयपुर]] और [[उदयपुर]] सबसे बड़े राज्य थे। 1947 में विभिन्न चरणों में इन राज्यों का एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया। दक्षिण-पूर्व राजपूताना के कुछ पुराने क्षेत्र मध्य प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम में और कुछ क्षेत्र अब [[गुजरात]] का हिस्सा हैं।
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==इतिहास==
'''भारत''' में मुसलमानों का राज्य स्थापित होने के पूर्व [[राजस्थान]] में कई शक्तिशाली राजपूत जातियों के वंश शासन कर रहे थे और उनमें सबसे प्राचीन चालुक्य और राष्ट्रकूट थे। इसके उपरान्त [[कन्नौज]] के राठौरों (राष्ट्रकूट), [[अजमेर]] के चौहानों, अन्हिलवाड़ के सोलंकियों, [[मेवाड़]] के गहलोतों या सिसोदियों और जयपुर के कछवाहों ने इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अपने राज्य स्थापित कर लिये। राजपूत जातियों में फूट और परस्पर युद्धों के फलस्वरूप वे शक्तहीन हो गए। यद्यपि इनमें से अधिकांश ने बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मुसलमान आक्रमणकारियों का वीरतापूर्वक सामना किया, तथापि प्राय: सम्पूर्ण राजपूताने के राजवंशों को [[दिल्ली]] सल्तनत की सर्वोपरी सत्ता स्वीकार करनी पड़ी।
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'''भारत में मुसलमानों का राज्य''' स्थापित होने के पूर्व [[राजस्थान]] में कई शक्तिशाली राजपूत जातियों के वंश शासन कर रहे थे और उनमें सबसे प्राचीन चालुक्य और राष्ट्रकूट थे। इसके उपरान्त [[कन्नौज]] के राठौरों (राष्ट्रकूट), [[अजमेर]] के चौहानों, अन्हिलवाड़ के सोलंकियों, [[मेवाड़]] के गहलोतों या सिसोदियों और जयपुर के कछवाहों ने इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अपने राज्य स्थापित कर लिये। राजपूत जातियों में फूट और परस्पर युद्धों के फलस्वरूप वे शक्तहीन हो गए। यद्यपि इनमें से अधिकांश ने बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मुसलमान आक्रमणकारियों का वीरतापूर्वक सामना किया, तथापि प्राय: सम्पूर्ण राजपूताने के राजवंशों को [[दिल्ली सल्तनत]] की सर्वोपरी सत्ता स्वीकार करनी पड़ी।
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'''फिर भी मुसलमानों''' की यह प्रभुसत्ता राजपूत शासकों को सदेव खटकती रही और जब कभी दिल्ली सल्तनत में दुर्बलता के लक्षण दृष्टिगत होते, वे अधीनता से मुक्त होने को प्रयत्नशील हो उठते। 1520 ई. में [[बाबर]] के नेतृत्व में मुग़लों के आक्रमण के समय राजपूताना दिल्ली के सुल्तानों के प्रभाव से मुक्त हो चला था और मेवाड़ के राणा [[राणा साँगा|संग्राम सिंह]] ने बाबर के दिल्ली पर अधिकार का विरोध किया। 1526 ई. में खानवा के युद्ध में राणा की पराजय हुई और [[मुग़ल|मुग़लों]] ने दिल्ली के सुल्तानों का राजपूताने पर नाममात्र को बचा प्रभुत्व फिर से स्थापित कर लिया।
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दिल्ली सल्तनत की सत्ता स्वीकार करने के बाद भी मुसलमानों की यह प्रभुसत्ता राजपूत शासकों को सदेव खटकती रही और जब कभी दिल्ली सल्तनत में दुर्बलता के लक्षण दृष्टिगत होते, वे अधीनता से मुक्त होने को प्रयत्नशील हो उठते। 1520 ई. में [[बाबर]] के नेतृत्व में मुग़लों के आक्रमण के समय राजपूताना दिल्ली के सुल्तानों के प्रभाव से मुक्त हो चला था और मेवाड़ के राणा [[राणा साँगा|संग्राम सिंह]] ने बाबर के दिल्ली पर अधिकार का विरोध किया। 1526 ई. में [[खानवा का युद्ध|खानवा के युद्ध]] में राणा की पराजय हुई और [[मुग़ल|मुग़लों]] ने दिल्ली के सुल्तानों का राजपूताने पर नाममात्र को बचा प्रभुत्व फिर से स्थापित कर लिया।
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किन्तु राजपूतों का विरोध शान्त न हुआ। [[अकबर]] की राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता का प्रभाव इन पर अवश्य पड़ा और मेवाड़ के अतिरिक्त अन्य सभी राजपूत शासक मुग़लों के समर्थक और भक्त बन गए। अन्त में [[जहाँगीर]] के शासनकाल में मेवाड़ ने भी मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली। [[औरंगज़ेब]] के सिंहासनारूढ़ होने तक राजपूताने के शासक मुग़लों के स्वामिभक्त बने रहे। परन्तु औरंगज़ेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। बाद में एक समझौते के फलस्वरूप राजपूताने में शान्ति स्थापित हुई।  
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इस पराजय के बाद भी राजपूतों का विरोध शान्त न हुआ। [[अकबर]] की राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता का प्रभाव इन पर अवश्य पड़ा और मेवाड़ के अतिरिक्त अन्य सभी राजपूत शासक मुग़लों के समर्थक और भक्त बन गए। अन्त में [[जहाँगीर]] के शासनकाल में मेवाड़ ने भी मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली। [[औरंगज़ेब]] के सिंहासनारूढ़ होने तक राजपूताने के शासक मुग़लों के स्वामिभक्त बने रहे। परन्तु औरंगज़ेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। बाद में एक समझौते के फलस्वरूप राजपूताने में शान्ति स्थापित हुई।  
 
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'''प्रतापी मुग़लों''' के पतन से भी राजपूताने के राजपूत शासकों का कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि 1756 ई. के लगभग राजपूतों में मराठों का शक्ति विस्तार आरम्भ हो गया। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में [[भारत]] की अव्यवस्थित राजनीतिक दशा में उलझनें तथा मराठों एवं पिण्डारियों की लूटमार से त्रस्त होने के कारण राजपूताने के शासकों का इतना मनोबल गिर गया कि उन्होंने अपनी सुरक्षा हेतु [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की शरण ली।
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प्रतापी मुग़लों के पतन से भी राजपूताने के राजपूत शासकों का कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि 1756 ई. के लगभग राजपूतों में मराठों का शक्ति विस्तार आरम्भ हो गया। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में [[भारत]] की अव्यवस्थित राजनीतिक दशा में उलझनें तथा मराठों एवं पिण्डारियों की लूटमार से त्रस्त होने के कारण राजपूताने के शासकों का इतना मनोबल गिर गया कि उन्होंने अपनी सुरक्षा हेतु [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] की शरण ली।
 
 
 
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'''भारतीय गणतंत्र''' की स्थापना के उपरान्त कुछ राजपूत रियासतें मार्च, 1948 ई. में और कुछ एक वर्ष बाद भारतीय संघ में सम्मिलित हो गईं। इस प्रदेश का आधुनिक नाम [[राजस्थान]] और इसकी राजधानी [[जयपुर]] है। राजप्रमुख (अब राज्यपाल) का निवास तथा विधानसभा की बैठकें भी जयपुर में ही होती हैं।
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भारतीय गणतंत्र की स्थापना के उपरान्त कुछ राजपूत रियासतें मार्च, 1948 ई. में और कुछ एक वर्ष बाद भारतीय संघ में सम्मिलित हो गईं। इस प्रदेश का आधुनिक नाम [[राजस्थान]] और इसकी राजधानी [[जयपुर]] है। राजप्रमुख (अब राज्यपाल) का निवास तथा विधानसभा की बैठकें भी जयपुर में ही होती हैं।
  
 
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11:19, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

राजपूताना या रजवाड़ा भी कहलाता है। ये प्रारम्भ में गुर्जरो का देश था तथा गुर्जरत्रा (गुर्जरो से रक्षित देश), गुर्जरदेश, गुर्जरधरा आदि नामों से जाना जाता था।[1]गुर्जरों का साम्राज्य यहाँ 12वीं सदी तक रहा है।[2]गुर्जरों के बाद यहा राजपूतों की राजनीतिक सत्ता आयी तथा ब्रिटिशकाल में यह राजपूताना (राजपूतों का देश) नाम से जाने जाना लगा। [3]इस प्रदेश का आधुनिक नाम राजस्थान है, जो उत्तर भारत के पश्चिमी भाग में अरावली की पहाड़ियों के दोनों ओर फैला हुआ है। इसका अधिकांश भाग मरुस्थल है। यहाँ वर्षा अत्यल्प और वह भी विभिन्न क्षेत्रों में असमान रूप से होती है। यह मुख्यत: वर्तमान राजस्थान राज्य की भूतपूर्व रियासतों का समूह है, जो भारत का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

भौगोलिक स्थिति

3,43,328 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले इस इलाक़े के दो भौगोलिक खण्ड हैं, अरावली पर्वत श्रृंखला का पश्चिमोत्तर क्षेत्र-जो अनुपजाऊ व ज़्यादातर रेतीला है। इसमें थार मरुस्थल का एक हिस्सा शामिल है और पर्वत श्रृंखला का दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र-जो सामान्यत: ऊँचा तथा अधिक उपजाऊ है। इस प्रकार समस्त क्षेत्र एक ऐसे सघन अवरोध का निर्माण करता है, जिसमें उत्तर भारत के मैदान और प्रायद्वीपीय भारत के मुख्य पठार के मध्य स्थित पहाड़ी और पठारी क्षेत्र सम्मिलित हैं।

राजस्थान का उदय

राजपूताना में 23 राज्य, एक सरदारी, एक जागीर और अजमेर-मेवाड़ का ब्रिटिश ज़िला शामिल थे। शासक राजकुमारों में अधिकांश राजपूत थे। ये राजपूताना के ऐतिहासिक क्षेत्र के क्षत्रिय थे, जिन्होंने सातवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में प्रवेश करना आरम्भ किया। जोधपुर, जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर और उदयपुर सबसे बड़े राज्य थे। 1947 में विभिन्न चरणों में इन राज्यों का एकीकरण हुआ, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान राज्य अस्तित्व में आया। दक्षिण-पूर्व राजपूताना के कुछ पुराने क्षेत्र मध्य प्रदेश और दक्षिण-पश्चिम में और कुछ क्षेत्र अब गुजरात का हिस्सा हैं।

इतिहास

भारत में मुसलमानों का राज्य स्थापित होने के पूर्व राजस्थान में कई शक्तिशाली राजपूत जातियों के वंश शासन कर रहे थे और उनमें सबसे प्राचीन चालुक्य और राष्ट्रकूट थे। इसके उपरान्त कन्नौज के राठौरों (राष्ट्रकूट), अजमेर के चौहानों, अन्हिलवाड़ के सोलंकियों, मेवाड़ के गहलोतों या सिसोदियों और जयपुर के कछवाहों ने इस प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अपने राज्य स्थापित कर लिये। राजपूत जातियों में फूट और परस्पर युद्धों के फलस्वरूप वे शक्तहीन हो गए। यद्यपि इनमें से अधिकांश ने बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में मुसलमान आक्रमणकारियों का वीरतापूर्वक सामना किया, तथापि प्राय: सम्पूर्ण राजपूताने के राजवंशों को दिल्ली सल्तनत की सर्वोपरी सत्ता स्वीकार करनी पड़ी।

राणा साँगा की पराजय

दिल्ली सल्तनत की सत्ता स्वीकार करने के बाद भी मुसलमानों की यह प्रभुसत्ता राजपूत शासकों को सदेव खटकती रही और जब कभी दिल्ली सल्तनत में दुर्बलता के लक्षण दृष्टिगत होते, वे अधीनता से मुक्त होने को प्रयत्नशील हो उठते। 1520 ई. में बाबर के नेतृत्व में मुग़लों के आक्रमण के समय राजपूताना दिल्ली के सुल्तानों के प्रभाव से मुक्त हो चला था और मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह ने बाबर के दिल्ली पर अधिकार का विरोध किया। 1526 ई. में खानवा के युद्ध में राणा की पराजय हुई और मुग़लों ने दिल्ली के सुल्तानों का राजपूताने पर नाममात्र को बचा प्रभुत्व फिर से स्थापित कर लिया।

मुग़लों की अधीनता

इस पराजय के बाद भी राजपूतों का विरोध शान्त न हुआ। अकबर की राजनीतिक सूझ-बूझ और दूरदर्शिता का प्रभाव इन पर अवश्य पड़ा और मेवाड़ के अतिरिक्त अन्य सभी राजपूत शासक मुग़लों के समर्थक और भक्त बन गए। अन्त में जहाँगीर के शासनकाल में मेवाड़ ने भी मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली। औरंगज़ेब के सिंहासनारूढ़ होने तक राजपूताने के शासक मुग़लों के स्वामिभक्त बने रहे। परन्तु औरंगज़ेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कारण दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। बाद में एक समझौते के फलस्वरूप राजपूताने में शान्ति स्थापित हुई।

अंग्रेज़ों की शरण

प्रतापी मुग़लों के पतन से भी राजपूताने के राजपूत शासकों का कोई लाभ नहीं हुआ, क्योंकि 1756 ई. के लगभग राजपूतों में मराठों का शक्ति विस्तार आरम्भ हो गया। 18वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में भारत की अव्यवस्थित राजनीतिक दशा में उलझनें तथा मराठों एवं पिण्डारियों की लूटमार से त्रस्त होने के कारण राजपूताने के शासकों का इतना मनोबल गिर गया कि उन्होंने अपनी सुरक्षा हेतु अंग्रेज़ों की शरण ली।

भारतीय संघ

भारतीय गणतंत्र की स्थापना के उपरान्त कुछ राजपूत रियासतें मार्च, 1948 ई. में और कुछ एक वर्ष बाद भारतीय संघ में सम्मिलित हो गईं। इस प्रदेश का आधुनिक नाम राजस्थान और इसकी राजधानी जयपुर है। राजप्रमुख (अब राज्यपाल) का निवास तथा विधानसभा की बैठकें भी जयपुर में ही होती हैं।

इन्हें भी देखें: राजपूत एवं राजपूत काल


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Sir Jivanji Jamshedji Modi (1930). Dr. Modi memorial volume: papers on Indo-Iranian and other subjects. Fort Printing Press. p. 521
  2. R.C. Majumdar (1994). Ancient India. Motilal Banarsidass Publ.. p. 263
  3. John Keay (2001). India: a history. Grove Press. pp. 231–232
  • (पुस्तक 'भारत ज्ञानकोश') पृष्ठ संख्या-59
  • (पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-400

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