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− | *"प्रफुल्लित दास बसन्त कि | + | *"प्रफुल्लित दास बसन्त कि फ़ौज सिलीमुख भीर देखावति है।"<ref> [[भिखारीदास]] ग्रं., पृष्ठ 244</ref> |
*"कहा भव भीर पड़ी तेहि धौं, बिचरै धरनी तिनसो तिन तोरे।"<ref> [[कवितावली]], 6 : 49</ref> | *"कहा भव भीर पड़ी तेहि धौं, बिचरै धरनी तिनसो तिन तोरे।"<ref> [[कवितावली]], 6 : 49</ref> | ||
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13:06, 9 अप्रैल 2012 के समय का अवतरण
मानिनी सवैया 23 वर्णों का छन्द है। 7 जगणों और लघु गुरु के योग से यह छन्द बनता है। वाम सवैया का अन्तिम वर्ण न्यून करने से या दुर्मिल का प्रथम लघु वर्ण न्यून करने से यह छन्द बनता है। तुलसी और दास ने इसका प्रयोग किया है।
- "प्रफुल्लित दास बसन्त कि फ़ौज सिलीमुख भीर देखावति है।"[1]
- "कहा भव भीर पड़ी तेहि धौं, बिचरै धरनी तिनसो तिन तोरे।"[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 742।
बाहरी कड़ियाँ
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