"मंत्रिपरिषद" के अवतरणों में अंतर
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− | अनुच्छेद 74(1) यह उपबंधित करता है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों के संचालन एवं शक्तियों के प्रयोग में सहायता और मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी। | + | '''मंत्रिपरिषद''' का गठन [[प्रधानमंत्री]] की सलाह से [[राष्ट्रपति]] करता है। अनुच्छेद 74(1) यह उपबंधित करता है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों के संचालन एवं शक्तियों के प्रयोग में सहायता और मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी। मंत्रिपरिषद प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है। संघ मंत्रिमण्डल में ही कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा राष्ट्रपति संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मंत्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है। |
==गठन== | ==गठन== | ||
− | संघ मंत्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह पर [[राष्ट्रपति]] के द्वारा किया जाता है। मंत्रिमण्डल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है। मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नहीं किया गया | + | संघ मंत्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह पर [[राष्ट्रपति]] के द्वारा किया जाता है। मंत्रिमण्डल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है। मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था, परन्तु बाद में [[संविधान संशोधन- 44वाँ|44वें संविधान संशोधन]] ([[1978]] ई.) के द्वारा अनुच्छेद 352 के तहत कैबिनेट शब्द को सम्मिलित किया गया। जब मंत्रिमण्डल के सदस्यों को उनके कार्यों में सहायता देने के लिए राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को नियुक्त किया जाता है, तब इन्हें मिलाकर मंत्रिमण्डल को मंत्रिपरिषद की संज्ञा दी जाती है। |
− | ==मंत्रियों की संख्या== | + | ====स्तर==== |
− | मूल संविधान में मंत्रिपरिषद में सदस्यों (मंत्रियों) की संख्या निर्धारित नहीं थी। प्रधानमंत्री अपने विवेकाधिकार के आधार पर मंत्रिपरिषद के आकार को सुनिश्चित करता था। परन्तु 91वाँ संविधान संशोधन | + | मंत्रिपरिषद तीन स्तरीय होता है, अर्थात- |
− | मंत्रिपरिषद में उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो संसद के सदस्य होते हैं। लेकिन संसद सदस्य न होने वाले व्यक्ति को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है। यदि ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है तो उसे 6 | + | |
+ | #कैबिनेट स्तर का मंत्री | ||
+ | #राज्य स्तर का मंत्री | ||
+ | #उपमंत्री | ||
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+ | कैबिनेट स्तर का मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है तथा उसकी सहायता के लिए राज्यमंत्री तथा उपमंत्री नियुक्ति की जाती है। राज्यमंत्री को किसी विभाग का प्रभार स्वरूप रूप से सौंपा जा सकता है। सरकार की नीति का निर्णय मत्रिमंण्डल के सदस्यों के द्वारा किया जाता है, लेकिन किसी विभाग के सम्बन्ध में मंत्रिमण्डल द्वारा नीति निर्धारण करते समय उस विभाग के राज्यमंत्री को विशेष आमंत्रित के रूप में नीति निर्धारण कार्रवाई में सम्मिलित किया जा सकता है। | ||
+ | ====मंत्रियों की संख्या==== | ||
+ | मूल संविधान में मंत्रिपरिषद में सदस्यों (मंत्रियों) की संख्या निर्धारित नहीं थी। [[प्रधानमंत्री]] अपने विवेकाधिकार के आधार पर मंत्रिपरिषद के आकार को सुनिश्चित करता था। परन्तु [[संविधान संशोधन- 91वाँ|91वें संविधान संशोधन]], [[2004]] के द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या [[लोकसभा]] की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इस प्रकार प्रधानमंत्री अब मंत्रिपरिषद में सदस्यों की अधिकतम संख्या के मामले में अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर सकता है। | ||
+ | ==सम्मिलित होने वाले व्यक्ति== | ||
+ | मंत्रिपरिषद में उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो [[संसद]] के सदस्य होते हैं। लेकिन संसद सदस्य न होने वाले व्यक्ति को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है। यदि ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है तो उसे 6 [[माह]] के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था नहीं दी गयी है कि ऐसा व्यक्ति इस्तीफ़ा देकर पुन: मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है या नहीं। सरकार के इस अस्पष्ट प्रावधान का लाभ उठाते हुए उस व्यक्ति को पुन: मंत्रिपरिषद में शामिल कर लिया जाता था। अब [[16 अगस्त]], [[2001]] को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए व्यवस्था दी कि विधायिका का सदस्य निर्वाचित हुए बिना कोई भी व्यक्ति 6 महीने से अधिक मंत्री पद धारण नहीं कर सकता। यदि इस व्यक्ति को 6 महीने के बाद विधायिका के उसी सत्र में मंत्री पद पर दोबारा बहाल किया जाता है तो आवश्यक है कि वह चुनाव जीत कर सदन का सदस्य बने। यदि मंत्री पद पर आसीन गैर निर्वाचित व्यक्ति दिये गये 6 महीने की अवधि में चुनाव जीतने में असफल रहता है और उस व्यक्ति को दोबारा मंत्री पद पर बहाल किया जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 164(1) और 164(4) की योजना पर आघात जैसा होगा। | ||
==वेतन एवं भत्ते== | ==वेतन एवं भत्ते== | ||
− | [[10 | + | [[10 जनवरी]], [[2008]] को लिये गये एक महत्त्वपूर्ण निर्णय के अनुसार कैबिनेट स्तर के मंत्री का वेतन 65,000 [[रुपया|रुपये]] मासिक निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त उनके रहने के लिए सरकारी आवास तथा जब वे सरकारी कार्य के लिए बाहर जाते हैं तो यात्रा भत्ता भी मिलता है। |
− | ==कार्य== | + | ====कार्य==== |
− | संघ मंत्रिमण्डल में ही कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा राष्ट्रपति संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मंत्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है। | + | संघ मंत्रिमण्डल में ही कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा [[राष्ट्रपति]] संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मंत्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है। |
− | == | + | ==उत्तरदायित्व== |
− | संघ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है तथा मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य मंत्रिमण्डल के निर्णय के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त मंत्री अपने विभाग के अधिकारियों के कार्य के लिए भी संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। कोई भी मंत्री अपने विभाग के कार्यों के दायित्व से अधिकारियों पर दोष लगाकर बच नहीं सकता है। मंत्री के विभाग के मामलों के सम्बन्ध में संसद में उससे प्रश्न पूछा जा सकता है, जिसका उत्तर मंत्री को देना पड़ता है, लेकिन कभी-कभी वह लोकहित अथवा गोपनीयता के आधार पर उत्तर देने से इन्कार कर सकता है। इस प्रकार से मंत्री का दोहरा उत्तरदायित्व है। अपने विभाग के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है। जबकि अन्य मंत्रियों के विभागों के लिए अन्य मंत्रियों के साथ सामूहिक रूप से उत्तदायी है। | + | संघ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है तथा मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य मंत्रिमण्डल के निर्णय के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त मंत्री अपने विभाग के अधिकारियों के कार्य के लिए भी [[संसद]] के प्रति उत्तरदायी होता है। कोई भी मंत्री अपने विभाग के कार्यों के दायित्व से अधिकारियों पर दोष लगाकर बच नहीं सकता है। मंत्री के विभाग के मामलों के सम्बन्ध में संसद में उससे प्रश्न पूछा जा सकता है, जिसका उत्तर मंत्री को देना पड़ता है, लेकिन कभी-कभी वह लोकहित अथवा गोपनीयता के आधार पर उत्तर देने से इन्कार कर सकता है। इस प्रकार से मंत्री का दोहरा उत्तरदायित्व है। अपने विभाग के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है। जबकि अन्य मंत्रियों के विभागों के लिए अन्य मंत्रियों के साथ सामूहिक रूप से उत्तदायी है। |
+ | ==संघ के मंत्रालय एवं विभाग== | ||
+ | <div style="float:right; width:50%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px"> | ||
+ | {| width="98%" class="bharattable" | ||
+ | |+संघ के मंत्रालय एवं विभाग | ||
+ | |- | ||
+ | ! style="width:15%" | क्रमांक | ||
+ | ! style="width:83%" | मंत्रालय एवं विभाग | ||
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+ | <div style="height: 300px; overflow: auto;overflow-x:hidden;"> | ||
+ | {| class="bharattable" border="1" width="99%" | ||
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+ | | style="width:17%" | (1) | ||
+ | | style="width:80%" | '''कृषि मंत्रालय''' | ||
+ | |- | ||
+ | | | ||
+ | | (क) कृषि तथा सहकारिता विभाग | ||
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+ | | (ख) कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग | ||
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+ | | (ग) पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग | ||
+ | |- | ||
+ | | (2) | ||
+ | | '''वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय''' | ||
+ | |- | ||
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+ | | (क) वाणिज्य विभाग | ||
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+ | | (ख) औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग | ||
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+ | | (3) | ||
+ | | '''संचार और सूचना प्रौद्यागिकी मंत्रालय''' | ||
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+ | | (क) डाक विभाग | ||
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+ | | (ग) रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग | ||
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+ | | '''रक्षा मंत्रायलय''' | ||
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+ | | (क) रक्षा विभाग | ||
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+ | | (ख) रक्षा उत्पादन तथा आपूर्ति विभाग | ||
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+ | | (ग) रक्षा अनुसंधान तथा विकास विभाग | ||
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+ | | '''कोयला मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''विदेश मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''वित्त मंत्रालय''' | ||
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+ | | (क) आर्थिक कार्य विभाग | ||
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+ | | (घ) राजस्व विभाग | ||
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+ | | '''उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय''' | ||
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+ | | (क) खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग | ||
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+ | | (ख) उपभोक्ता मामले विभाग | ||
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+ | | '''स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय''' | ||
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+ | | (क) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग | ||
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+ | | (ख) भारतीय चिकित्सा पद्धति एवं होमियोपैथी विभाग (आयुष) | ||
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+ | | (ख) राज्य विभाग | ||
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+ | | (घ) गृह विभाग | ||
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+ | | (12) | ||
+ | | '''मानव संसाधन विकास मंत्रालय''' | ||
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+ | | (क) स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग | ||
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+ | | '''भारी उद्योग और लोक उद्यम मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''कार्मिक, सार्वजनिक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''इस्पात मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''नागर विमानन मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''रसायन और उर्वरक मंत्रालय''' | ||
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+ | | (क) रसायन और पेट्रो-रसायन विभाग | ||
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+ | | '''ग्रामीण विकास मंत्रालय''' | ||
+ | |- | ||
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+ | | (क) ग्रामीण विकास विभाग | ||
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+ | | (ख) भूमि संरक्षण विभाग | ||
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+ | | (ग) पेयजल आपूर्ति विभाग | ||
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+ | | '''वस्त्र मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''[[नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय]]''' | ||
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+ | | '''पोत परिवहन, [[सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय]]''' | ||
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+ | | (क) पोत परिवहन विभाग | ||
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+ | | '''रेल मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''विद्युत मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''पर्यटन मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''जल संसाधन मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''परमाणु ऊर्जा विभाग''' | ||
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+ | | '''अन्तरिक्ष विभाग''' | ||
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+ | | '''सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''जनजाति कार्य मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''मंत्रिमण्डल सचिवालय''' | ||
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+ | | '''राष्ट्रपति का सचिवालय''' | ||
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+ | | '''प्रधानमंत्री कार्यालय''' | ||
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+ | | '''योजना आयोग''' | ||
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+ | | '''सूक्ष्म, लघु और मध्यम अद्यम मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''उत्तर पूर्वी क्षेत्र विकास मंत्रालय''' | ||
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+ | | (47) | ||
+ | | '''संस्कृति मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''निगम (कारपोरेट) कार्य मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''प्रवासी भारतीयों के मामलों को मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''खान मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''भू-विज्ञान मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय''' | ||
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+ | | '''पंचायती राज मंत्रालय''' | ||
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+ | | (54) | ||
+ | | '''शहरी विकास मंत्रालय''' | ||
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+ | | (55) | ||
+ | | '''महिला और बाल विकास मंत्रालय''' | ||
+ | |} | ||
+ | </div> | ||
+ | </div> | ||
+ | |||
+ | संघ मंत्रालय में अनेक विभाग हैं, जिनकी संख्या समयानुसार परिवर्तित होती रहती है। [[15 अगस्त]], [[1947]] ई. को संघ मंत्रालयों की संख्या 18 थी, जिसे [[13 सितम्बर]], [[2008]] को बढ़ाकर 55 कर दिया गया। | ||
==मंत्रिपरिषद की पदावधि== | ==मंत्रिपरिषद की पदावधि== | ||
− | मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक की उसे लोकसभा से बहुमत प्राप्त रहता है तथा लोकसभा के नये चुनाव के बाद नये मंत्रिमण्डल का गठन नहीं हो जाता। मंत्रिपरिषद का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री के साथ मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे सकता है या प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से सिफ़ारिश कर उसे बर्ख़ास्त कर सकता है। यदि कोई मंत्री संसद का सदस्य नहीं रह जाता, तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। लेकिन कोई मंत्री संसद का सदस्य न रहते हुए भी मंत्री के पद पर रह सकता है, बशर्ते वह 6 महीने के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बन जाए। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास का मत प्राप्त करने में असफल रहने के बावजूद त्यागपत्र नहीं देता, तो उसे राष्ट्रपति बर्ख़ास्त कर सकता है। | + | मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक की उसे [[लोकसभा]] से बहुमत प्राप्त रहता है तथा लोकसभा के नये चुनाव के बाद नये मंत्रिमण्डल का गठन नहीं हो जाता। मंत्रिपरिषद का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री के साथ मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे सकता है या प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से सिफ़ारिश कर उसे बर्ख़ास्त कर सकता है। यदि कोई मंत्री संसद का सदस्य नहीं रह जाता, तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। लेकिन कोई मंत्री संसद का सदस्य न रहते हुए भी मंत्री के पद पर रह सकता है, बशर्ते वह 6 महीने के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बन जाए। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास का मत प्राप्त करने में असफल रहने के बावजूद त्यागपत्र नहीं देता, तो उसे [[राष्ट्रपति]] बर्ख़ास्त कर सकता है। |
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− | + | यू. एन. राव बनाम [[इंदिरा गांधी]] मामले में [[उच्च न्यायालय]] ने यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकसभा के विघटन हो जाने पर भी मंत्रिमण्डल समाप्त नहीं होगा और वह राष्ट्रपति को सलाह देता रहेगा। यदि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह के बिना कार्य करता है तो वह अनुच्छेद 53(1) के विपरीत होगा। केन्द्र में कार्यवाहक सरकार का उपबंध नहीं किया गया है। अत: जो मंत्रिमण्डल पहले से ही कार्य कर रहा होता है, लोकसभा के विघटन की स्थिति में भी वह पूर्ण मंत्रिमण्डल होता है। इसका अस्तित्व तब तक बना रहता है, जब तक कि नई लोकसभा के गठन के पश्चात् नई मंत्रिपरिषद कर्यभार ग्रहण नहीं कर लेती। | |
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− | [[Category: | + | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} |
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+ | [[Category:कार्यपालिका]] | ||
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15:29, 9 जून 2021 के समय का अवतरण
मंत्रिपरिषद | एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- मंत्रिपरिषद (बहुविकल्पी) |
मंत्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति करता है। अनुच्छेद 74(1) यह उपबंधित करता है कि राष्ट्रपति को उसके कृत्यों के संचालन एवं शक्तियों के प्रयोग में सहायता और मंत्रणा देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी। मंत्रिपरिषद प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करती है। संघ मंत्रिमण्डल में ही कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा राष्ट्रपति संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मंत्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है।
गठन
संघ मंत्रिपरिषद का गठन प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है। मंत्रिमण्डल का गठन कैबिनेट स्तर के मंत्रियों से होता है। मूल संविधान में कैबिनेट शब्द का उल्लेख नहीं किया गया था, परन्तु बाद में 44वें संविधान संशोधन (1978 ई.) के द्वारा अनुच्छेद 352 के तहत कैबिनेट शब्द को सम्मिलित किया गया। जब मंत्रिमण्डल के सदस्यों को उनके कार्यों में सहायता देने के लिए राज्य मंत्रियों और उपमंत्रियों को नियुक्त किया जाता है, तब इन्हें मिलाकर मंत्रिमण्डल को मंत्रिपरिषद की संज्ञा दी जाती है।
स्तर
मंत्रिपरिषद तीन स्तरीय होता है, अर्थात-
- कैबिनेट स्तर का मंत्री
- राज्य स्तर का मंत्री
- उपमंत्री
कैबिनेट स्तर का मंत्री अपने विभाग का अध्यक्ष होता है तथा उसकी सहायता के लिए राज्यमंत्री तथा उपमंत्री नियुक्ति की जाती है। राज्यमंत्री को किसी विभाग का प्रभार स्वरूप रूप से सौंपा जा सकता है। सरकार की नीति का निर्णय मत्रिमंण्डल के सदस्यों के द्वारा किया जाता है, लेकिन किसी विभाग के सम्बन्ध में मंत्रिमण्डल द्वारा नीति निर्धारण करते समय उस विभाग के राज्यमंत्री को विशेष आमंत्रित के रूप में नीति निर्धारण कार्रवाई में सम्मिलित किया जा सकता है।
मंत्रियों की संख्या
मूल संविधान में मंत्रिपरिषद में सदस्यों (मंत्रियों) की संख्या निर्धारित नहीं थी। प्रधानमंत्री अपने विवेकाधिकार के आधार पर मंत्रिपरिषद के आकार को सुनिश्चित करता था। परन्तु 91वें संविधान संशोधन, 2004 के द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। इस प्रकार प्रधानमंत्री अब मंत्रिपरिषद में सदस्यों की अधिकतम संख्या के मामले में अपने विवेक का प्रयोग नहीं कर सकता है।
सम्मिलित होने वाले व्यक्ति
मंत्रिपरिषद में उन्हीं व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो संसद के सदस्य होते हैं। लेकिन संसद सदस्य न होने वाले व्यक्ति को भी मंत्रिपरिषद में शामिल किया जा सकता है। यदि ऐसे व्यक्ति को मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है तो उसे 6 माह के अन्दर संसद के किसी सदन का सदस्य निर्वाचित होना पड़ता है। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था नहीं दी गयी है कि ऐसा व्यक्ति इस्तीफ़ा देकर पुन: मंत्रिपरिषद का सदस्य बन सकता है या नहीं। सरकार के इस अस्पष्ट प्रावधान का लाभ उठाते हुए उस व्यक्ति को पुन: मंत्रिपरिषद में शामिल कर लिया जाता था। अब 16 अगस्त, 2001 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए व्यवस्था दी कि विधायिका का सदस्य निर्वाचित हुए बिना कोई भी व्यक्ति 6 महीने से अधिक मंत्री पद धारण नहीं कर सकता। यदि इस व्यक्ति को 6 महीने के बाद विधायिका के उसी सत्र में मंत्री पद पर दोबारा बहाल किया जाता है तो आवश्यक है कि वह चुनाव जीत कर सदन का सदस्य बने। यदि मंत्री पद पर आसीन गैर निर्वाचित व्यक्ति दिये गये 6 महीने की अवधि में चुनाव जीतने में असफल रहता है और उस व्यक्ति को दोबारा मंत्री पद पर बहाल किया जाता है तो यह संविधान के अनुच्छेद 164(1) और 164(4) की योजना पर आघात जैसा होगा।
वेतन एवं भत्ते
10 जनवरी, 2008 को लिये गये एक महत्त्वपूर्ण निर्णय के अनुसार कैबिनेट स्तर के मंत्री का वेतन 65,000 रुपये मासिक निर्धारित किया गया है। इसके अतिरिक्त उनके रहने के लिए सरकारी आवास तथा जब वे सरकारी कार्य के लिए बाहर जाते हैं तो यात्रा भत्ता भी मिलता है।
कार्य
संघ मंत्रिमण्डल में ही कार्यपालिका की वास्तविक शक्ति निहित है तथा राष्ट्रपति संघ मंत्रिमण्डल की सलाह के अनुसार अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। मंत्रिमण्डल देश के प्रशासन, आर्थिक सुधार, सुरक्षा तथा विदेशी राज्यों के सम्बन्ध में नीति का निर्धारण करता है और मंत्रिमण्डल द्वारा निर्धारित नीति के अनुसार ही संघ का शासन संचालित होता है।
उत्तरदायित्व
संघ मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है तथा मंत्रिपरिषद का प्रत्येक सदस्य मंत्रिमण्डल के निर्णय के लिए उत्तरदायी होता है। इसके अतिरिक्त मंत्री अपने विभाग के अधिकारियों के कार्य के लिए भी संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। कोई भी मंत्री अपने विभाग के कार्यों के दायित्व से अधिकारियों पर दोष लगाकर बच नहीं सकता है। मंत्री के विभाग के मामलों के सम्बन्ध में संसद में उससे प्रश्न पूछा जा सकता है, जिसका उत्तर मंत्री को देना पड़ता है, लेकिन कभी-कभी वह लोकहित अथवा गोपनीयता के आधार पर उत्तर देने से इन्कार कर सकता है। इस प्रकार से मंत्री का दोहरा उत्तरदायित्व है। अपने विभाग के लिए वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है। जबकि अन्य मंत्रियों के विभागों के लिए अन्य मंत्रियों के साथ सामूहिक रूप से उत्तदायी है।
संघ के मंत्रालय एवं विभाग
क्रमांक | मंत्रालय एवं विभाग |
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संघ मंत्रालय में अनेक विभाग हैं, जिनकी संख्या समयानुसार परिवर्तित होती रहती है। 15 अगस्त, 1947 ई. को संघ मंत्रालयों की संख्या 18 थी, जिसे 13 सितम्बर, 2008 को बढ़ाकर 55 कर दिया गया।
मंत्रिपरिषद की पदावधि
मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर बना रहता है, जब तक की उसे लोकसभा से बहुमत प्राप्त रहता है तथा लोकसभा के नये चुनाव के बाद नये मंत्रिमण्डल का गठन नहीं हो जाता। मंत्रिपरिषद का कोई भी सदस्य प्रधानमंत्री के साथ मतभेद होने के कारण त्यागपत्र दे सकता है या प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से सिफ़ारिश कर उसे बर्ख़ास्त कर सकता है। यदि कोई मंत्री संसद का सदस्य नहीं रह जाता, तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है। लेकिन कोई मंत्री संसद का सदस्य न रहते हुए भी मंत्री के पद पर रह सकता है, बशर्ते वह 6 महीने के भीतर संसद के किसी सदन का सदस्य बन जाए। यदि मंत्रिपरिषद लोकसभा में विश्वास का मत प्राप्त करने में असफल रहने के बावजूद त्यागपत्र नहीं देता, तो उसे राष्ट्रपति बर्ख़ास्त कर सकता है।
यू. एन. राव बनाम इंदिरा गांधी मामले में उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि लोकसभा के विघटन हो जाने पर भी मंत्रिमण्डल समाप्त नहीं होगा और वह राष्ट्रपति को सलाह देता रहेगा। यदि राष्ट्रपति मंत्रिमण्डल की सलाह के बिना कार्य करता है तो वह अनुच्छेद 53(1) के विपरीत होगा। केन्द्र में कार्यवाहक सरकार का उपबंध नहीं किया गया है। अत: जो मंत्रिमण्डल पहले से ही कार्य कर रहा होता है, लोकसभा के विघटन की स्थिति में भी वह पूर्ण मंत्रिमण्डल होता है। इसका अस्तित्व तब तक बना रहता है, जब तक कि नई लोकसभा के गठन के पश्चात् नई मंत्रिपरिषद कर्यभार ग्रहण नहीं कर लेती।
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