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भारतीय रिज़र्व बैंक

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भारतीय रिज़र्व बैंक का मुहर प्रतीक

भारतीय रिज़र्व बैंक (अंग्रेज़ी: Reserve Bank of India) भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंको को संचालित करता है। भारत की अर्थव्यवस्था को रिजर्व बैंक ही नियंत्रित करता है।

स्थापना

रिज़र्व बैंक की स्‍थापना के लिए सबसे पहले जनवरी, 1927 में एक विधेयक पेश किया गया और सात वर्ष बाद मार्च, 1934 में यह अधिनियम मूर्त रूप ले सका। विकासशील देशों के सबसे पुराने केन्‍द्रीय बैंकों में से रिज़र्व बैंक एक है। इसकी निर्माण यात्रा काफी घटनापूर्ण रही है। केन्‍द्रीय बैंक की कार्य प्रणाली अपनाने की इसकी कोशिश न तो काफी गहरी और न ही चौतरफा रही है। द्वितीय विश्‍व युद्ध छिड़ जाने की स्थिति में अपनी स्‍थापना के पहले ही दशक में रिज़र्व बैंक के कंधों पर विनिमय नियंत्रण सहित कई विशेष उत्तरदायित्व निभाने की जिम्‍मेदारी आ गई। एक निजी संस्‍थान से राष्‍ट्रीय कृत संस्‍थान के रूप में बदलाव और स्‍वतंत्रता प्राप्ति के बाद अर्थव्‍यवस्‍था में इसकी नई भूमिका दुर्जेय थी। रिज़र्व बैंक के साल-दर-साल विकास की राह पर चलते हुए कई कहानियां बनीं, जो समय के साथ इतिहास बनती चली गई। भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल सन 1935 को रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया एक्ट, 1934 के अनुसार की गयी थी। प्रारम्भ में इसका केन्द्रीय कार्यालय कोलकाता में था, जिसे सन 1937 में मुम्बई स्थानांतरित कर दिया गया। प्रारम्भ में यह एक निजी बैंक था किन्तु सन 1949 में यह भारत सरकार का उपक्रम बन गया है।

कार्यालय

भारतीय रिजर्व बैंक के 22 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जिनमें से अधिकांशत: राज्यों की राजधानियों में स्थित हैं।

बैंक के प्रमुख कार्य

भारतीय रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-

  • मौद्रिक नीति बनाकर उसका कार्यान्वयन और निगरानी करना।
  • वित्तीय प्रणाली का विनियमन और पर्यवेक्षण करना।
  • विदेशी मुद्रा का प्रबंधन करना।
  • मुद्रा ज़ारी कर उसका विनिमय और परिचालन करना। योग्य न रहने पर उन्हें नष्ट करना।
  • भारत सरकार का बैंकर और भारत के अन्य बैंकों के बैंकर के रुप में काम करना।
  • भारतीय मुद्रा की साख को नियन्त्रित करना।
बैंक का मूल कार्य

भारतीय रिज़र्व बैंक की प्रस्तावना में बैंक के मूल कार्य इस प्रकार निर्देशित किए गए हैं- " .......बैंक नोटों के निर्गम को नियंत्रित करना और भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से प्रारक्षित निधि रखना और सामान्यत: देश के हित में मुद्रा और ऋण प्रणाली परिचालित करना।"

केंद्रीय बोर्ड द्वारा संचालित

रिज़र्व बैंक का कार्य केंद्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारत सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड को नियुक्त करती है। बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति चार वर्ष के लिए होती है।

बैंक का निदेशक मंडल

रिज़र्व बैंक का कार्य केंद्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारत सरकार द्वारा भारतीय रिज़र्व अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड की नियुक्ति की जाती है। बोर्ड की नियुक्ति चार वर्षों के लिए होती है।

केंद्रीय बोर्ड का गठन

सरकारी निदेशक

यह पद पूर्ण-कालिक है। गवर्नर और अधिकतम चार उपगवर्नर की नियुक्ति हो सकती है।

गैर- सरकारी निदेशक

यह निदेशक सरकार द्वारा नामित किये जाते हैं। विभिन्न क्षेत्रों से दस निदेशक और एक सरकारी अधिकारी नियुक्त किया जाता है।

अन्य

चार निदेशक नियुक्त किये जाते हैं जो चार स्थानीय बोर्डों से प्रत्येक से एक की नियुक्ति होती है।

केंद्रीय बोर्ड का कार्य

बैंक के क्रियाकलापों की देखरेख और निदेशन

स्थानीय बोर्ड

देश के चार क्षेत्रों - मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और नई दिल्ली से एक-एक का चयन किया जाता है।

सदस्यता
  • प्रत्येक में पांच सदस्य
  • केंद्र सरकार द्वारा नियुत्त
  • चार वर्ष की अवधि के लिए

वित्तीय पर्यवेक्षण

भारतीय रिज़र्व बैंक यह कार्य वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड (बीएफएस) के दिशानिर्देशों के अनुसार करता है। इस बोर्ड की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक के केंद्रीय निदेशक बोर्ड की एक समिति के रूप में नवंबर 1994 में की गई थी।

उद्देश्य

वित्तीय पर्यवेक्षण बोर्ड (बीएफएस) का प्राथमिक उद्देश्य वाणिज्य बैंकों, वित्तीय संस्थाओं और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं सहित वित्तीय क्षेत्र का समेकित पर्यवेक्षण करना है।

गठन

इस बोर्ड का गठन केंद्रीय बोर्ड के चार निदेशकों को सहयोजित सदस्य के रूप में दो वर्ष की अवधि के लिए शामिल करके किया गया है तथा गवर्नर इसके अध्यक्ष हैं। रिज़र्व बैंक के उप गवर्नर इसके पदेन सदस्य हैं। एक उप गवर्नर, सामान्यत: बैंकिंग नियमन और पर्यवेक्षण के प्रभारी उप गवर्नर को बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।

बीएफएस की बैठकें

बोर्ड की बैठक सामान्यत: महीने में एक बार आयोजित किया जाना आवश्यक है। इस बैठक के दौरान पर्यवेक्षण विभाग द्वारा प्रस्तुत निरीक्षण रिपोर्ट और पर्यवेक्षण से संबंधित अन्य मामलों पर विचार किया जाता है। लेखा-परीक्षा उप समिति के माध्यम से बैंकिंग पर्यवेक्षण बोर्ड बैंकों और वित्तीय संस्थाओं की सांविधिक लेखा-परीक्षा और आंतरिक लेखा-परीक्षा कार्यों की गुणवत्ता बढ़ाने पर भी विचार करता है। इस उप लेखा- परीक्षा समिति के अध्यक्ष उप गवर्नर और केंद्रीय बोर्ड के दो निदेशक इसके सदस्य होते हैं।

बैंकिंग पर्यवेक्षण बोर्ड

बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (डीबीएस), गैर बैंकिंग पर्यवेक्षण विभाग (डीएनबीएस) और वित्तीय संस्था प्रभाग (एफआईडी) के कार्य-कलापों का निरीक्षण करता है और नियमन तथा पर्यवेक्षण संबंधी मामलों पर निदेश जारी करता है।

कार्य

बैंकिंग पर्यवेक्षण बोर्ड द्वारा किये गए प्रयत्नों में निम्नलिखित शामिल हैं :

  1. बैंक निरीक्षण प्रणाली की पुनर्रचना
  2. कार्यस्थल से दूर की निगरानी को लागू करना
  3. सांविधिक लेखा परीक्षकों की भूमिका को सुदृढ़ करना
  4. पर्यवटिक्षत संस्थाओं की आंतरिक प्रतिरक्षा प्रणाली का सुदृढ़ीकरण।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

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