प्रेमचंद के पत्र

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प्रेमचंद ने अपने जीवन-काल में हज़ारों पत्र लिखे होंगे, लेकिन उनके जो पत्र काल का ग्रास बनने से बचे रह गए और जो सम्प्रति उपलब्ध हैं, उनमें सर्वाधिक पत्र वे हैं जो उन्होंने अपने काल की लोकप्रिय उर्दू मासिक पत्रिका ‘ज़माना’ के यशस्वी सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम को लिखे थे। यों तो मुंशी दयानारायण निगम प्रेमचंद से दो वर्ष छोटे थे लेकिन प्रेमचंद उनको सदा बड़े भाई जैसा सम्मान देते रहे। इन दोनों विभूतियों के पारस्परिक सम्बन्धों को परिभाषित करना तो अत्यन्त दुरूह कार्य है, लेकिन प्रेमचंद के इस आदर भाव का कारण यह प्रतीत होता है कि प्रेमचंद को साहित्यिक संसार में पहचान दिलाने का महनीय कार्य निगम साहब ने उनको ‘ज़माना’ में निरन्तर प्रकाशित करके ही सम्पादित किया था, और उस काल की पत्रिकाओं में तो यहाँ तक प्रकाशित हुआ कि प्रेमचंद को प्रेमचंद बनाने का श्रेय यदि किसी को है तो मुंशी दयानारायण निगम को ही है। ध्यातव्य यह भी है कि नवाबराय के लेखकीय नाम से लिखने वाले धनपतराय श्रीवास्तव ने प्रेमचंद का वह लेखकीय नाम भी मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव से ही अंगीकृत किया था जिसकी छाया में उनका वास्तविक तथा अन्य लेखकीय नाम गुमनामी के अंधेरों में खोकर रह गए। मुंशी प्रेमचंद और मुंशी दयानारायण निगम के घनिष्ठ आत्मीय सम्बन्ध ही निगम साहब को सम्बोधित प्रेमचंद के पत्रों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बना देते हैं क्योंकि इन पत्रों में प्रेमचंद ने जहाँ सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा की है वहीं अपनी घरेलू तथा आर्थिक समस्याओं की चर्चा करने में भी संकोच नहीं किया।[1]

प्रेमचंद और मुंशी दयानारायण निगम

प्रेमचंद के मानस को समझने के लिए निगम साहब के नाम लिखे उनके पत्रों के महत्त्व का अनुमान इस तथ्य से लगा पाना सम्भव है कि जब 8 अक्तूबर 1936 को उनके देहावसान के उपरान्त ‘ज़माना’ का प्रेमचंद विशेषांक दिसम्बर 1937 में प्रकाशित होकर साहित्य-संसार के हाथ में आया तो उसमें ज़माना-सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम के कई लेख प्रकाशित हुए, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लेख है - ‘प्रेमचंद के खयालात’। इस सुदीर्घ लेख में निगम साहब ने प्रेमचंद की विचार-यात्रा का तथ्यपरक दिग्दर्शन कराया था। उल्लेखनीय है कि इस लेख में प्रेमचंद की विचार-यात्रा को स्पष्ट करने के लिए निगम साहब ने प्रेमचंद के उन पत्रों में से 50 से अधिक पत्रों का सार्थक प्रयोग किया जो उन्होंने समय-समय पर निगम साहब को लिखे थे और जो उन्होंने बड़े जतन से संभालकर रख छोड़े थे। प्रेमचंद के देहावसान के अनन्तर मुंशी दयानारायण निगम ने प्रेमचंद के वे सभी पत्र जिनका उपयोग वे अपने उपर्युक्त लेख में कर चुके थे, मदन गोपाल को सौंप दिए और शेष पत्र निगम साहब के देहावसान (1942) के अनन्तर किस प्रकार प्रेमचंद के छोटे बेटे अमृत राय को निगम साहब के टूटे हुए मकान के मलबे में से हस्तगत हुए, इसकी सम्पूर्ण कथा अमृत राय ने ‘चिट्ठी पत्री’ (1962) की भूमिका में प्रस्तुत कर दी थी। ध्यातव्य है कि ‘चिट्ठी पत्री’ में अमृत राय और मदन गोपाल - दोनों के संग्रह में उपलब्ध पत्र प्रकाशित किए गए थे, जबकि मदन गोपाल के सम्पादन में उर्दू में प्रकाशित ‘प्रेमचंद के खुतूत’ (1968) में केवल मदन गोपाल के संग्रह के पत्र ही प्रकाशित हुए थे। सम्भवतः निगम साहब के उपर्युक्त उल्लिखित लेख से प्रेरित होकर ही मदन गोपाल प्रेमचंद के पत्रों के संग्रह की दिशा में प्रवृत्त ही नहीं हुए, वरन उन्होंने भी प्रेमचंद के पत्रों का सार्थक उपयोग करके ही अंग्रेज़ी में प्रेमचंद की संक्षिप्त जीवनी लिखकर 1949 में प्रकाशित कराई थी। इसके अनन्तर उन्होंने अंग्रेज़ी में ‘प्रेमचंद : लिटरेरी बायोग्राफी’ (1964), ‘क़लम का मजदूर प्रेमचंद’ (1965) और उर्दू में ‘क़लम का मजदूर प्रेमचंद’ (1966) शीर्षकों से प्रेमचंद की जीवनियाँ प्रकाशित कराईं, जिनमें उन्होंने प्रेमचंद के पत्रों का व्यापक उपयोग किया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जैन, प्रदीप। प्रेमचंद के पत्र (हिंदी) हिंदी समय। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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