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दाल अरहर, मूँग, उड़द, चना, मसूर, खेसारी आदि अनाजों को दलने से प्राप्त होती है। यह अनाज दलहन कहलाते हैं। ये सभी अनाज वनस्पति शास्त्र के लिग्यूमिनोसी गण के अंतर्गत हैं। दालें प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रमुख स्त्रोत हैं। इन अनाजों के अतिरिक्त कुछ और बीज हैं, जैसे- सोयाबीन, सेम इत्यादि, जिनसे कहीं-कहीं दालें बनती हैं।
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दाल अरहर, मूँग, उड़द, चना, मसूर, खेसारी आदि अनाजों को दलने से प्राप्त होती है। यह अनाज दलहन कहलाते हैं। ये सभी अनाज वनस्पति शास्त्र के लिग्यूमिनोसी गण के अंतर्गत हैं। दालें [[प्रोटीन]] की आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रमुख स्त्रोत हैं। इन अनाजों के अतिरिक्त कुछ और बीज हैं, जैसे- सोयाबीन, सेम इत्यादि, जिनसे कहीं-कहीं दालें बनती हैं।
  
 
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भोजन में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख दालें निम्नलिखित हैं-
 
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07:15, 16 जून 2011 का अवतरण

दालें
Lentils

दाल अरहर, मूँग, उड़द, चना, मसूर, खेसारी आदि अनाजों को दलने से प्राप्त होती है। यह अनाज दलहन कहलाते हैं। ये सभी अनाज वनस्पति शास्त्र के लिग्यूमिनोसी गण के अंतर्गत हैं। दालें प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति करने का प्रमुख स्त्रोत हैं। इन अनाजों के अतिरिक्त कुछ और बीज हैं, जैसे- सोयाबीन, सेम इत्यादि, जिनसे कहीं-कहीं दालें बनती हैं।

हमारे भोजन का मुख्य अंग कार्बोहाइड्रेट है, जो हमें चावल, गेहूँ इत्यादि अन्नों से स्टार्च के रूप में तथा फलों से शर्करा के रूप में प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट का पाचन सरलता से होता है और इससे ऊर्जा प्राप्त होती है, किंतु मांसपेशी बनने, शरीर की वृद्धि तथा पुराने ऊतकों का नवजीवन प्रदान करने में कार्बोहाइड्रेट से कोई सहायता नहीं मिलती है। इन कार्यों के लिए प्रोटीन की आवयकता पड़ती है। मांसाहारी जीवों को मांस से तथा शाकाहारियों को वनस्पतियों से प्रोटीन प्राप्त होता है। दालें शाकाहारियों के प्रोटीन प्राप्त करने की प्रमुख स्त्रोत हैं। एक वयस्क व्यक्ति के संतुलित भोजन में डेढ़ छटाँक दाल का होना आवश्यक है।

प्रकार

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भोजन में प्रयुक्त होने वाली प्रमुख दालें निम्नलिखित हैं-

  • अरहर
  • मूँग
  • उड़द
  • मसूर
  • मटर
  • चना
  • खेसारी
  • सोयाबीन
  • सेम

शस्यचक्र पद्धति

सभी दलहनों के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यकता पड़ती है। सभी दलहन वार्षिक पौधे हैं। इनके लिए समशीतोष्ण जलवायु और हलकी वर्षा आवश्यक होती है। दलहन के पौधों की जड़ों में वायुमंडल से नाइट्रोजन ग्रहण करने वाले जीवाणु रहते हैं, जो भूमि में नाइट्रोजन का संग्रह करके भूमि की उर्वरा शक्ति की वृद्धि करते हैं। इसलिय खेतों की उर्वरा शक्ति की वृद्धि करने के लिए शस्यचक्र की पद्धति अपनाई जाती है; जैसे- जिन खेतों में धान की फसल उगाई गई थी उनमें चने की फसल उगाई जाती है।

दलहन से दाल बनाना

दलहन से दाल छिलकेदार तथा बिना छिलके की बनाई जाती है। अब तो दलहन को दाल मिलों में भेजकर दाल बनवाना व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद हो गया है। घरों में भी दलहन से दाल बनाई जाती है। छिलकेदार दाल बनाने के लिए जिस दलहन की दाल बनानी हो उसे चक्की द्वारा दल लेते हैं। बिना छिलके की दाल दो प्रकार से बनती है, पानी में भिगोकर अथवा मोयकर। दलहन को दलकर पानी में दो तीन घंटे तक भिगो देते हैं। इसके बाद दाल को पानी से निकालकर हाथ से खूब मसलकर छिलका अलग करते हैं और इस मसली हुई दाल को पानी में डाल देते हैं, जिससे छिलका पानी के ऊपर आ जाता है और दाल नीचे बैठ जाती है। छिलके को पानी के ऊपर से हटाकर, दाल को दो तीन बार मसलने और धोने से दाल प्राय: बिल्कुल छिलके रहित हो जाती है इस छिलके रहित दाल को धूप में सुखाकर रख लिया जाता है।

छिलके रहित दाल बनाने की दूसरी विधि है, पहले दलहन को धूप में खूब सुखा लेते हैं। एक सेर दलहन के लिए पानी में एक भर तेल मिलाकर, रात में दलहन को मोयकर, रातभर ढककर रख देते हैं और सुबह धूप में सुखाते हैं। इस सूखे दलहन को चक्की में दलकर ओखली में छाँट लेते हैं, जिससे छिलका अलग हो जाता है। दाल को छाँटने में विशेष योग्यता की आवश्यकता होती है, जिससे दाल टूटे नहीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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