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ग्रैण्ड ट्रंक रोड, यह मार्ग पुराने समय में 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था, आजकल इस सड़क को 'The Grand Trunk Road / ग्रैंड ट्रंक रोड / जी. टी. रोड' के नाम से जाना जाता है। इस सड़क को 'सड़के-ए-आज़म' या 'बादशाही सड़क' के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी और मुख्य सड़क है। यह कई सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही  है। यह सड़क [[बांग्लादेश]], पूरे उत्तर भारत और [[पाकिस्तान]] के [[पेशावर]] से होती हुई [[अफ़ग़ानिस्तान]] के [[क़ाबुल]] तक जाती है।  
 
ग्रैण्ड ट्रंक रोड, यह मार्ग पुराने समय में 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था, आजकल इस सड़क को 'The Grand Trunk Road / ग्रैंड ट्रंक रोड / जी. टी. रोड' के नाम से जाना जाता है। इस सड़क को 'सड़के-ए-आज़म' या 'बादशाही सड़क' के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी और मुख्य सड़क है। यह कई सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही  है। यह सड़क [[बांग्लादेश]], पूरे उत्तर भारत और [[पाकिस्तान]] के [[पेशावर]] से होती हुई [[अफ़ग़ानिस्तान]] के [[क़ाबुल]] तक जाती है।  
 
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ग्रैण्ड ट्रंक रोड का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल में इसे '''उत्तरापथ''' कहा जाता था। यह [[गंगा]] के किनारे बसे नगरों को, [[पंजाब]] से जोड़ते हुए, ख़ैबर दर्रा पार करती हुई [[अफ़ग़ानिस्तान]] के केंद्र तक जाती थी। [[मौर्यकाल]] में [[बौद्ध धर्म]] का प्रसार इसी उत्तरापथ के माध्यम से [[गंधार]] तक हुआ।  
 
ग्रैण्ड ट्रंक रोड का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल में इसे '''उत्तरापथ''' कहा जाता था। यह [[गंगा]] के किनारे बसे नगरों को, [[पंजाब]] से जोड़ते हुए, ख़ैबर दर्रा पार करती हुई [[अफ़ग़ानिस्तान]] के केंद्र तक जाती थी। [[मौर्यकाल]] में [[बौद्ध धर्म]] का प्रसार इसी उत्तरापथ के माध्यम से [[गंधार]] तक हुआ।  
  
 
हाल के शोध से पता चलता है कि मौर्य सम्राटों के समय में तीसरी शताब्दी ई.पू. में, [[भारत]] और पश्चिमी एशिया के कई भागों के बीच थल व्यापार के लिए [[तक्षशिला]] (वर्तमान पाकिस्तान) से होते हुए [[यूनान]] के उत्तर पश्चिमी नगरों तक चली गयी है। तक्षशिला मौर्य काल में लगभग सभी भागों से सम्बद्ध था। मौर्यों ने तक्षशिला से [[पाटलिपुत्र]] <ref>जो वर्तमान में [[बिहार]] राज्य में [[पटना]] है</ref> तक राजमार्ग बनवाया था। [[मैगस्थनीज़]] के अनुसार [[चंद्रगुप्त मौर्य]] की सेना इस राजमार्ग की देखभाल करती थी। मैगस्थनीज़ लगभग 15 वर्ष तक मौर्य दरबार में रहा था। यह मार्ग सदियों तक प्रयोग होता रहा।   
 
हाल के शोध से पता चलता है कि मौर्य सम्राटों के समय में तीसरी शताब्दी ई.पू. में, [[भारत]] और पश्चिमी एशिया के कई भागों के बीच थल व्यापार के लिए [[तक्षशिला]] (वर्तमान पाकिस्तान) से होते हुए [[यूनान]] के उत्तर पश्चिमी नगरों तक चली गयी है। तक्षशिला मौर्य काल में लगभग सभी भागों से सम्बद्ध था। मौर्यों ने तक्षशिला से [[पाटलिपुत्र]] <ref>जो वर्तमान में [[बिहार]] राज्य में [[पटना]] है</ref> तक राजमार्ग बनवाया था। [[मैगस्थनीज़]] के अनुसार [[चंद्रगुप्त मौर्य]] की सेना इस राजमार्ग की देखभाल करती थी। मैगस्थनीज़ लगभग 15 वर्ष तक मौर्य दरबार में रहा था। यह मार्ग सदियों तक प्रयोग होता रहा।   
  
सोलहवीं शताब्दी में [[दिल्ली]] के सुल्तान [[शेरशाह सूरी]] ने इसे पक्का करवाया। शेरशाह सूरी पहला बादशाह था, जिसने [[बंगाल]] के सोनागाँव से [[सिंधु नदी]] तक दो हज़ार मील लम्बी पक्की सड़क बनवाई थी। इस सड़क पर घुड़सवारों द्वारा डाक लाने ले जाने की व्यवस्था थी। यह मार्ग उस समय 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था। [[बंगाल]] से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस<ref>शुद्ध= क्रोश</ref> या 2500 किलोमीटर लम्बी थी। शेरशाह ने 1542 ई. में इसका निर्माण कराया था। दूरी नापने के लिए जगह-जगह पत्थर लगवाए, छायादार वृक्ष लगवाए, राहगीरों के लिए सरायें बनवाईं और चुंगी की व्यवस्था की। ग्रैण्ड ट्रंक रोड [[कोलकाता]] से पेशावर<ref> पाकिस्तान</ref> तक लंबी है।
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सोलहवीं शताब्दी में [[दिल्ली]] के सुल्तान [[शेरशाह सूरी]] ने इसे पक्का करवाया। शेरशाह सूरी पहला बादशाह था, जिसने [[बंगाल]] के सोनागाँव से [[सिंध प्रांत]] तक दो हज़ार मील लम्बी पक्की सड़क बनवाई थी। इस सड़क पर घुड़सवारों द्वारा डाक लाने ले जाने की व्यवस्था थी। यह मार्ग उस समय 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था। [[बंगाल]] से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस<ref>शुद्ध= क्रोश</ref> या 2500 किलोमीटर लम्बी थी। शेरशाह ने 1542 ई. में इसका निर्माण कराया था। दूरी नापने के लिए जगह-जगह पत्थर लगवाए, छायादार वृक्ष लगवाए, राहगीरों के लिए सरायें बनवाईं और चुंगी की व्यवस्था की। ग्रैण्ड ट्रंक रोड [[कोलकाता]] से पेशावर<ref> पाकिस्तान</ref> तक लंबी है।
  
 
जब सड़कों की बात होती है तो भारत में शेरशाह सूरी का नाम अवश्य लिया जाता है। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एक ऐसा योगदान था जिसने [[भारत]] के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ दिया। [[मुग़ल|मुग़लों]] ने और फिर अंग्रेज़ों ने बहुत कुछ बदला लेकिन शेरशाह सूरी का योगदान अटल रहा।
 
जब सड़कों की बात होती है तो भारत में शेरशाह सूरी का नाम अवश्य लिया जाता है। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एक ऐसा योगदान था जिसने [[भारत]] के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ दिया। [[मुग़ल|मुग़लों]] ने और फिर अंग्रेज़ों ने बहुत कुछ बदला लेकिन शेरशाह सूरी का योगदान अटल रहा।
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कहा जाता है कि ग्रैंड ट्रंक रोड के निर्माण के लिए शेरशाह सूरी ने इतना पुख़्ता भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाया था कि उसके बाद के किसी शासक को ग्रैंड ट्रंक रोड के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखायी दिया और उसका बहुत बड़ा भाग सदियों के बाद आज भी उपयोग में आ रहा है। उसका आधुनिक नाम '''नेशनल हाइवे-2 या एनएच-2''' है।  
 
कहा जाता है कि ग्रैंड ट्रंक रोड के निर्माण के लिए शेरशाह सूरी ने इतना पुख़्ता भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाया था कि उसके बाद के किसी शासक को ग्रैंड ट्रंक रोड के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखायी दिया और उसका बहुत बड़ा भाग सदियों के बाद आज भी उपयोग में आ रहा है। उसका आधुनिक नाम '''नेशनल हाइवे-2 या एनएच-2''' है।  
  
शेरशाह सूरी ने बंगाल के सोनागाँव से [[सिंध नदी]] तक दो हज़ार मील लंबी पक्की सड़क बनवाई थी, ताकि यातायात की उत्तम व्यवस्था हो सके। साथ ही उसने यात्रियों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का भी संतोषजनक प्रबंध किया। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाना शेरशाह सूरी के विलक्षण सोच का प्रतीक है। यह सड़क सदियों से विकास में अहम भूमिका निभा रही है। उसने सड़कों पर मील के पत्थर लगवाए। उसने डाक व्यवस्था को दुरुस्त किया एवं घुड़सवारों द्वारा डाक को लाने−ले−जाने की व्यवस्था की। उसके फरमान [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] के साथ [[देवनागरी|नागरी]] अक्षरों में भी होते थे।<ref>{{cite web |url=http://vishwakeanganmehindi.blogspot.com/2011_04_01_archive.html|title= |accessmonthday=28मार्च |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एचटीएमएल|publisher= |language=हिन्दी}}</ref>  
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शेरशाह सूरी ने बंगाल के सोनागाँव से [[सिंध प्रांत]] तक दो हज़ार मील लंबी पक्की सड़क बनवाई थी, ताकि यातायात की उत्तम व्यवस्था हो सके। साथ ही उसने यात्रियों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का भी संतोषजनक प्रबंध किया। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाना शेरशाह सूरी के विलक्षण सोच का प्रतीक है। यह सड़क सदियों से विकास में अहम भूमिका निभा रही है। उसने सड़कों पर मील के पत्थर लगवाए। उसने डाक व्यवस्था को दुरुस्त किया एवं घुड़सवारों द्वारा डाक को लाने−ले−जाने की व्यवस्था की। उसके फरमान [[फ़ारसी भाषा|फारसी]] के साथ [[देवनागरी|नागरी]] अक्षरों में भी होते थे।<ref>{{cite web |url=http://vishwakeanganmehindi.blogspot.com/2011_04_01_archive.html|title= |accessmonthday=28मार्च |accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format=एचटीएमएल|publisher= |language=हिन्दी}}</ref>  
  
 
==मार्ग==
 
==मार्ग==
आज ग्रैंड ट्रंक रोड 2,500 किलोमीटर (लगभग 1,600मील) से अधिक  की दूरी तक है। इसका प्रारम्भ दक्षिण बंगाल के चटगांव से है। मध्य बंगाल के सोनारगांव से होते हुए यह [[भारत]] में प्रवेश करती है और [[कोलकाता]], बर्धमान, दुर्गापुर, आसनसोल, धनबाद, औरंगाबाद, देहरी, [[सासाराम]], मोहानिया, मुग़लसराय, [[वाराणसी]], [[इलाहाबाद]], [[कानपुर]], [[एटा]], [[आगरा]], [[मथुरा]], [[दिल्ली]], [[करनाल]], [[अम्बाला]], [[लुधियाना]], [[जालंधर]], [[अमृतसर]] होते हुए जाती है। इसका मुख्य व्यस्त भाग दिल्ली और कोलकाता के बीच है। यहाँ पर यह NH-2 (राष्ट्रीय राजमार्ग-2) के नाम से जानी जाती है और दिल्ली - वाघा बार्डर के बीच यह NH-1(राष्ट्रीय राजमार्ग 1) के नाम से जाना जाता है।  
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आज ग्रैंड ट्रंक रोड 2,500 किलोमीटर (लगभग 1,600मील) से अधिक  की दूरी तक है। इसका प्रारम्भ दक्षिण बंगाल के चटगांव से है। मध्य बंगाल के सोनारगांव से होते हुए यह [[भारत]] में प्रवेश करती है और [[कोलकाता]], बर्धमान, दुर्गापुर, आसनसोल, धनबाद, औरंगाबाद, देहरी, [[सासाराम]], मोहानिया, मुग़लसराय, [[वाराणसी]], [[इलाहाबाद]], [[कानपुर]], [[एटा]], [[आगरा]], [[मथुरा]], [[दिल्ली]], करनाल, [[अम्बाला]], [[लुधियाना]], [[जालंधर]], [[अमृतसर]] होते हुए जाती है। इसका मुख्य व्यस्त भाग दिल्ली और कोलकाता के बीच है। यहाँ पर यह NH-2 (राष्ट्रीय राजमार्ग-2) के नाम से जानी जाती है और दिल्ली - वाघा बार्डर के बीच यह NH-1(राष्ट्रीय राजमार्ग 1) के नाम से जाना जाता है।  
  
 
पाकिस्तान सीमा से ग्रैंड ट्रंक रोड N-5 [[लाहौर]], गुजराँवाला, गुजरात, झेलम, रावलपिंडी अटोक ज़िले से होते हुए पेशावर तक जाती है। इसके बाद यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] में प्रवेश करती है और पश्चिम में [[जलालाबाद]] से होकर [[क़ाबुल]] में खत्म हो जाती है। वर्तमान में ग्रैंड ट्रंक रोड का यह भाग अफ़ग़ानिस्तान में '''जलालाबाद- काबुल रोड''' के नाम से जाना जाता है।  
 
पाकिस्तान सीमा से ग्रैंड ट्रंक रोड N-5 [[लाहौर]], गुजराँवाला, गुजरात, झेलम, रावलपिंडी अटोक ज़िले से होते हुए पेशावर तक जाती है। इसके बाद यह [[अफ़ग़ानिस्तान]] में प्रवेश करती है और पश्चिम में [[जलालाबाद]] से होकर [[क़ाबुल]] में खत्म हो जाती है। वर्तमान में ग्रैंड ट्रंक रोड का यह भाग अफ़ग़ानिस्तान में '''जलालाबाद- काबुल रोड''' के नाम से जाना जाता है।  

12:56, 3 मई 2011 का अवतरण

ग्रैण्ड ट्रंक रोड, यह मार्ग पुराने समय में 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था, आजकल इस सड़क को 'The Grand Trunk Road / ग्रैंड ट्रंक रोड / जी. टी. रोड' के नाम से जाना जाता है। इस सड़क को 'सड़के-ए-आज़म' या 'बादशाही सड़क' के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया की सबसे पुरानी और मुख्य सड़क है। यह कई सदियों से भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्रों को जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह सड़क बांग्लादेश, पूरे उत्तर भारत और पाकिस्तान के पेशावर से होती हुई अफ़ग़ानिस्तान के क़ाबुल तक जाती है।

इतिहास

ग्रैण्ड ट्रंक रोड का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन काल में इसे उत्तरापथ कहा जाता था। यह गंगा के किनारे बसे नगरों को, पंजाब से जोड़ते हुए, ख़ैबर दर्रा पार करती हुई अफ़ग़ानिस्तान के केंद्र तक जाती थी। मौर्यकाल में बौद्ध धर्म का प्रसार इसी उत्तरापथ के माध्यम से गंधार तक हुआ।

हाल के शोध से पता चलता है कि मौर्य सम्राटों के समय में तीसरी शताब्दी ई.पू. में, भारत और पश्चिमी एशिया के कई भागों के बीच थल व्यापार के लिए तक्षशिला (वर्तमान पाकिस्तान) से होते हुए यूनान के उत्तर पश्चिमी नगरों तक चली गयी है। तक्षशिला मौर्य काल में लगभग सभी भागों से सम्बद्ध था। मौर्यों ने तक्षशिला से पाटलिपुत्र [1] तक राजमार्ग बनवाया था। मैगस्थनीज़ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की सेना इस राजमार्ग की देखभाल करती थी। मैगस्थनीज़ लगभग 15 वर्ष तक मौर्य दरबार में रहा था। यह मार्ग सदियों तक प्रयोग होता रहा।

सोलहवीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान शेरशाह सूरी ने इसे पक्का करवाया। शेरशाह सूरी पहला बादशाह था, जिसने बंगाल के सोनागाँव से सिंध प्रांत तक दो हज़ार मील लम्बी पक्की सड़क बनवाई थी। इस सड़क पर घुड़सवारों द्वारा डाक लाने ले जाने की व्यवस्था थी। यह मार्ग उस समय 'सड़क-ए-आज़म' कहलाता था। बंगाल से पेशावर तक की यह सड़क 500 कोस[2] या 2500 किलोमीटर लम्बी थी। शेरशाह ने 1542 ई. में इसका निर्माण कराया था। दूरी नापने के लिए जगह-जगह पत्थर लगवाए, छायादार वृक्ष लगवाए, राहगीरों के लिए सरायें बनवाईं और चुंगी की व्यवस्था की। ग्रैण्ड ट्रंक रोड कोलकाता से पेशावर[3] तक लंबी है।

जब सड़कों की बात होती है तो भारत में शेरशाह सूरी का नाम अवश्य लिया जाता है। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण एक ऐसा योगदान था जिसने भारत के इतिहास में एक सुनहरा पन्ना जोड़ दिया। मुग़लों ने और फिर अंग्रेज़ों ने बहुत कुछ बदला लेकिन शेरशाह सूरी का योगदान अटल रहा।

कहा जाता है कि ग्रैंड ट्रंक रोड के निर्माण के लिए शेरशाह सूरी ने इतना पुख़्ता भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाया था कि उसके बाद के किसी शासक को ग्रैंड ट्रंक रोड के अलावा और कोई विकल्प नहीं दिखायी दिया और उसका बहुत बड़ा भाग सदियों के बाद आज भी उपयोग में आ रहा है। उसका आधुनिक नाम नेशनल हाइवे-2 या एनएच-2 है।

शेरशाह सूरी ने बंगाल के सोनागाँव से सिंध प्रांत तक दो हज़ार मील लंबी पक्की सड़क बनवाई थी, ताकि यातायात की उत्तम व्यवस्था हो सके। साथ ही उसने यात्रियों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का भी संतोषजनक प्रबंध किया। ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाना शेरशाह सूरी के विलक्षण सोच का प्रतीक है। यह सड़क सदियों से विकास में अहम भूमिका निभा रही है। उसने सड़कों पर मील के पत्थर लगवाए। उसने डाक व्यवस्था को दुरुस्त किया एवं घुड़सवारों द्वारा डाक को लाने−ले−जाने की व्यवस्था की। उसके फरमान फारसी के साथ नागरी अक्षरों में भी होते थे।[4]

मार्ग

आज ग्रैंड ट्रंक रोड 2,500 किलोमीटर (लगभग 1,600मील) से अधिक की दूरी तक है। इसका प्रारम्भ दक्षिण बंगाल के चटगांव से है। मध्य बंगाल के सोनारगांव से होते हुए यह भारत में प्रवेश करती है और कोलकाता, बर्धमान, दुर्गापुर, आसनसोल, धनबाद, औरंगाबाद, देहरी, सासाराम, मोहानिया, मुग़लसराय, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, एटा, आगरा, मथुरा, दिल्ली, करनाल, अम्बाला, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर होते हुए जाती है। इसका मुख्य व्यस्त भाग दिल्ली और कोलकाता के बीच है। यहाँ पर यह NH-2 (राष्ट्रीय राजमार्ग-2) के नाम से जानी जाती है और दिल्ली - वाघा बार्डर के बीच यह NH-1(राष्ट्रीय राजमार्ग 1) के नाम से जाना जाता है।

पाकिस्तान सीमा से ग्रैंड ट्रंक रोड N-5 लाहौर, गुजराँवाला, गुजरात, झेलम, रावलपिंडी अटोक ज़िले से होते हुए पेशावर तक जाती है। इसके बाद यह अफ़ग़ानिस्तान में प्रवेश करती है और पश्चिम में जलालाबाद से होकर क़ाबुल में खत्म हो जाती है। वर्तमान में ग्रैंड ट्रंक रोड का यह भाग अफ़ग़ानिस्तान में जलालाबाद- काबुल रोड के नाम से जाना जाता है।

आधुनिक

ग्रैंड ट्रंक रोड भारत और पाक़िस्तान के मुख्य नगरों को जोड़ती है। भारतीय ग्रैंड ट्रंक रोड भाग महत्वाकांक्षी स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का भाग है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जो वर्तमान में बिहार राज्य में पटना है
  2. शुद्ध= क्रोश
  3. पाकिस्तान
  4. Error on call to Template:cite web: Parameters url and title must be specified (हिन्दी) (एचटीएमएल)। । अभिगमन तिथि: 28मार्च, 2011।