कवि प्रदीप

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कवि प्रदीप
प्रदीप
पूरा नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी
प्रसिद्ध नाम कवि प्रदीप
जन्म 6 फ़रवरी 1915
जन्म भूमि उज्जैन, मध्य प्रदेश
मृत्यु 11 दिसंबर 1998
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी श्रीमती भद्रा बेन
संतान पुत्री- सरगम और मितुल
कर्म भूमि मुम्बई (भारत)
कर्म-क्षेत्र कवि, गीतकार, गायक
मुख्य रचनाएँ ऐ मेरे वतन के लोगो, आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ, दे दी हमें आज़ादी, हम लाये हैं तूफ़ान से आदि
मुख्य फ़िल्में जय संतोषी माँ, जाग्रति, बंधन, बंधन, किस्मत, नास्तिक, हरि दर्शन, कभी धूप कभी छाँव, पैग़ाम, स्कूल मास्टर, वामन अवतार आदि
विषय देशप्रेम, भक्ति
शिक्षा स्नातक
विद्यालय 'शिवाजी राव हाईस्कूल', इंदौर; 'दारागंज हाईस्कूल', इलाहाबाद; 'लखनऊ विश्वविद्यालय'
पुरस्कार-उपाधि दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1998), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1961)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी कवि प्रदीप गाँधी विचारधारा के कवि थे। उन्होंने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्त्व नहीं दिया। उनका मानना था कि 'यदि आपस में हम लोगों में ईर्ष्या-द्वेष न होता तो हम गुलाम न होते'।

प्रदीप (अंग्रेज़ी:Pradeep, जन्म: 6 फ़रवरी, 1915, उज्जैन, मध्य प्रदेश; मृत्यु: 11 दिसंबर, 1998, मुम्बई, महाराष्ट्र) का मूल नाम 'रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी' था। प्रदीप हिंदी साहित्य जगत और हिंदी फ़िल्म जगत के एक अति सुदृढ़ रचनाकार रहे। कवि प्रदीप 'ऐ मेरे वतन के लोगों' सरीखे देशभक्ति गीतों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने 1962 के 'भारत-चीन युद्ध' के दौरान शहीद हुए सैनिकों की श्रद्धांजलि में ये गीत लिखा था। 'भारत रत्न' से सम्मानित स्वर कोकिला लता मंगेशकर द्वारा गाए इस गीत का तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान से सीधा प्रसारण किया गया था। यूँ तो कवि प्रदीप ने प्रेम के हर रूप और हर रस को शब्दों में उतारा, लेकिन वीर रस और देश भक्ति के उनके गीतों की बात ही कुछ अनोखी थी।

जन्म

देश प्रेम और देश-भक्ति से ओत-प्रोत भावनाओं को सुन्दर शब्दों में पिरोकर जन-जन तक पहुँचाने वाले कवि प्रदीप का जन्म 6 फ़रवरी, 1915 में मध्य प्रदेश में उज्जैन के बड़नगर नामक क़स्बे में हुआ था। प्रदीप जी का असल नाम 'रामचंद्र नारायण द्विवेदी' था। इनके पिता का नाम नारायण भट्ट था। प्रदीप जी उदीच्य ब्राह्मण थे।

कवि प्रदीप अपने परिवार (पत्नी- भद्रा बेन, पुत्री- सरगम और मितुल) के साथ

शिक्षा

कवि प्रदीप की शुरुआती शिक्षा इंदौर के 'शिवाजी राव हाईस्कूल' में हुई, जहाँ वे सातवीं कक्षा तक पढ़े। इसके बाद की शिक्षा इलाहाबाद के दारागंज हाईस्कूल में संपन्न हुई। इसके बाद इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। दारागंज उन दिनों साहित्य का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 1933 से 1935 तक का इलाहाबाद का काल प्रदीप जी के लिए साहित्यिक दृष्टीकोंण से बहुत अच्छा रहा। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की एवं अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्‌यक्रम में प्रवेश लिया। विद्यार्थी जीवन में ही हिन्दी काव्य लेखन एवं हिन्दी काव्य वाचन में उनकी गहरी रुचि थी। कवि प्रदीप का विवाह भद्रा बेन के साथ हुआ था।

कविता का शौक़

किशोरावस्था में ही कवि प्रदीप को लेखन और कविता का शौक़ लगा। कवि सम्मेलनों में वे ख़ूब दाद बटोरा करते थे। कविता तो आमतौर पर हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी करता ही है, परंतु रामचंद्र द्विवेदी की कविता केवल कुछ क्षणों का शौक़ या समय बिताने का साधन नहीं थी, वह उनकी सांस-सांस में बसी थी, उनका जीवन थी। इसीलिए अध्यापन छोड़कर वे कविता की सरंचना में व्यस्त हो गए।

कवि सम्मेलनों में शिरकत

इलाहाबाद के साहित्यिक वातावरण में कवि प्रदीप की अंतश्चेतना में दबे काव्यांकुरों को फूटने का पर्याप्त अवसर मिला। यहाँ उन्हें हिन्दी के अनेक साहित्य शिल्पियों का स्नेहिल सान्निध्य मिला। वे गोष्ठियों में कविता का पाठ करने लगे। इलाहाबाद में एक बार हिन्दी दैनिक 'अर्जुन' के संपादक और स्वामी श्रद्धानंद के सुपुत्र पं. विद्यावाचस्पति के सम्मान में एक कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन कर रहे थे। महादेवी वर्मा, भगवती चरण वर्मा, प्रफुल्ल चंद्र ओझा 'मुक्त', हरिवंशराय बच्चन, नरेंद्र शर्मा, बालकृष्ण राव, रमाशंकर शुक्ल 'रसाल', पद्मकांत मालवीय जैसे दिग्गज रचनाकारों ने अपने काव्य पाठ से गोष्ठी को आलोकित किया। इसी गोष्ठी में 20 वर्षीय तरुण 'प्रदीप' ने अपने सुरीले काव्य-पाठ से सभी को मुग्ध कर दिया। उस दिन काव्य जगत में एक नया सितारा चमका।

निराला जी का कथन

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' जी ने लखनऊ की पत्रिका 'माधुरी' के फ़रवरी, 1938 के अंक में प्रदीप पर लेख लिखकर उनकी काव्य-प्रतिभा पर स्वर्ण-मुहर लगा दी। निराला जी ने लीखा- "आज जितने कवियों का प्रकाश हिन्दी जगत में फैला हुआ है, उनमें 'प्रदीप' का अत्यंत उज्ज्वल और स्निग्ध है। हिन्दी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है। इधर 3-4 साल से अनेक कवि सम्मेलन प्रदीप की रचना और रागिनी से उद्भासित हो चुके हैं।"

फ़िल्मी पदार्पण

वर्ष 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद कवि प्रदीप ने शिक्षक बनने का प्रयास किया, लेकिन इसी दौरान उन्हें मुंबई में हो रहे एक कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने का न्योता मिला। कवि सम्मेलन में उनके गीतों को सुनकर 'बाम्बे टॉकीज स्टूडियो' के मालिक हिंमाशु राय काफ़ी प्रभावित हुए और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही फ़िल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने की पेशकश की। इस फ़िल्म में अशोक कुमार एवं देविका रानी ने प्रमुख भूमिकाएं निभाई थीं। 1939 में प्रदर्शित फ़िल्म 'कंगन' में उनके गीतों की कामयाबी के बाद प्रदीप बतौर गीतकार फ़िल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। इस फ़िल्म के लिए लिखे गए चार गीतों में से प्रदीप ने तीन गीतों को अपना स्वर भी दिया था। इस प्रकार ‘कंगन’ फ़िल्म के द्वारा भारतीय हिंदी फ़िल्म उद्योग को गीतकार, संगीतकार एवं गायक के रूप में एक नयी प्रतिभा मिली। सन 1943 में मुंबई की 'बॉम्बे टॉकीज' की पांच फ़िल्मों- ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिये भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।

छद्म नाम से गीत लेखन

'फ़िल्मिस्तान' फ़िल्म निर्माण संस्था से अनुबंधित होने पर भी आंतरिक राजनीति के कारण कवि प्रदीप से गीत नहीं लिखाए जा रहे थे। इससे दु:खी होकर वे 'मिस कमल बी.ए.' के छद्म नाम से गीत लिखने लगे। उन्होंने चार फ़िल्मों के लिए इसी नाम से गीत लिखे। इस नाम के कारण एक बार तो काफ़ी हास्यास्पद स्थिति उत्पन्न हो गई। 'न्यू थियेटर' की लीला देसाई की कमल नाम की एक बहन थी, जो 'मिस' भी थी और 'बी.ए.' भी। जाने कैसे प्रशंसकों ने उनका पता ढूंढ लिया और उन्हें पत्र लिखने लगे। कुछ लोगों ने तो शादी के प्रस्ताव भी रख दिए। उन्होंने प्रेस विज्ञाप्ति निकालकर कहा कि वे गीत नहीं लिखती हैं।

प्रदीप से 'कवि प्रदीप'

कवि सम्मेलनों में सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजी जैसे महान साहित्यिक को प्रभावित कर सकने की क्षमता रामचंद्र द्विवेदी में थी।

कवि प्रदीप युवावस्था में

उन्हीं के आशीर्वाद से रामचंद्र 'प्रदीप' कहलाने लगे। प्रदीप का वास्तविक नाम रामचन्द्र नारायण दिवेदी था, किन्तु एक बार हिमांशु राय ने कहा कि ये रेलगाड़ी जैसा लम्बा नाम ठीक नही है, तभी से उन्होंने अपना नाम प्रदीप रख लिया।

प्रदीप नाम के पीछे उनके जीवन का एक रोचक प्रसंग भी है। उन दिनों मुम्बई में अभिनेता और कलाकार प्रदीप कुमार भी प्रसिद्ध हो रहे थे, जिस कारण अक्सर गलती से डाकिया कवि प्रदीप की चिठ्ठी अभिनेता प्रदीप के पते पर डाल देता था। डाकिया सही पते पर पत्र दे, इस वजह से उन्होंने प्रदीप के पहले 'कवि' शब्द जोड़ दिया और यहीं से कवि प्रदीप के नाम से वे प्रख्यात हुए।[1] कवि प्रदीप अपनी रचनाएं गाकर ही सुनाते थे और उनकी मधुर आवाज़ का सदुपयोग अनेक संगीत निर्देशकों ने अलग-अलग समय पर किया।

स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान

कवि प्रदीप गाँधी विचारधारा के कवि थे। प्रदीप जी ने जीवन मूल्यों की कीमत पर धन-दौलत को कभी महत्व नहीं दिया। कठोर संघर्षों के बावजूद उनके निवास स्थान ‘पंचामृत’ पर स्वर्ण के कंगुरे भले ही न मिलें, परन्तु वैश्विक ख्याति का कलश जरूर दिखेगा। प्रदीप जी भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। एक बार स्वतंत्रता के आन्दोलन में उनका पैर फ्रैक्चर हो गया था और कई दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। वे अंग्रेज़ों के अनाचार-अत्याचार आदि से बहुत दु:खी होते थे। उनका मानना था कि यदि आपस में हम लोगों में ईर्ष्या-द्वेष न होता तो हम गुलाम न होते। परम देशभक्त चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत पर कवि प्रदीप का मन करुणा से भर गया था और उन्होंने अपने अंर्तमन से एक गीत रच डाला था, जिसके बोल निम्न प्रकार थे[1]-

वह इस घर का एक दिया था,
विधी ने अनल स्फुलिंगों से उसके जीवन का वसन सिया था
जिसने अनल लेखनी से अपनी गीता का लिखा प्रक्कथन
जिसने जीवन भर ज्वालाओं के पथ पर ही किया पर्यटन
जिसे साध थी दलितों की झोपड़ियों को आबाद करुं मैं
आज वही परिचय-विहीन सा पूर्ण कर गया अन्नत के शरण।

देशभक्ति के गीत

  • वर्ष 1940 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिय छिड़ी मुहिम में कवि प्रदीप भी शामिल हो गए और इसके लिये उन्होंने अपनी कविताओं का सहारा लिया। अपनी कविताओं के माध्यम से प्रदीप देशवासियों में जागृति पैदा किया करते थे। 1940 में ज्ञान मुखर्जी के निर्देशन में उन्होंने फ़िल्म ‘बंधन’ के लिए भी गीत लिखा। यूं तो फ़िल्म 'बंधन' में उनके रचित सभी गीत लोकप्रिय हुए, लेकिन ‘चल चल रे नौजवान...' के बोल वाले गीत ने आजादी के दीवानों में एक नया जोश भरने का काम किया। उस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर था और हर प्रभात फेरी में इस देश भक्ति के गीत को गाया जाता था। इस गीत ने भारतीय जनमानस पर जादू-सा प्रभाव डाला था। यह राष्ट्रीय गीत बन गया था। सिंध और पंजाब की विधान सभा ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी और ये गीत विधान सभा में गाया जाने लगा। बलराज साहनी उस समय लंदन में थे। उन्होने इस गीत को लंदन बी.बी.सी. से प्रसारित कर दिया। अहमदाबाद में महादेव भाई ने इसकी तुलना उपनिषद के मंत्र ‘चरैवेति-चरैवेति’ से की।
कवि प्रदीप अपने परिवार (पत्नी- भद्रा बेन, पुत्री- सरगम और मितुल) के साथ

इस गीत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने कवि प्रदीप को बताया था कि- "अपने कैशोर्य काल में इंदिरा प्रभात फेरियों में 'चल-चल रे नौजवान' गाकर अपनी 'वानर सेना' की परेड कराती थीं।" यह गीत 'नासिक विद्रोह' (1946) के समय सैनिकों का अभियान गीत बन गया था। इस फ़िल्म में एक अन्य हल्का-फुल्का गीत भी था- 'चना जोर गरम, मैं लाया मजेदार, चना जोर गरम।' यह गीत फेरी वालों के मुख पर चढ़कर गली-गली गूंजने लगा था।

  • अपने गीतों को प्रदीप ने गुलामी के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेज़ों के विरूद्ध भारतीयों के संघर्ष को एक नयी दिशा दी। चालीस के दशक में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का अंग्रेज़ सरकार के विरूद्ध ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ अपने चरम पर था। वर्ष 1943 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘किस्मत’ में प्रदीप के लिखे गीत ‘आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ए दुनियां वालों हिंदुस्तान हमारा है’ जैसे गीतों ने जहां एक ओर स्वतंत्रता सेनानियों को झकझोरा, वहीं अंग्रेज़ों की तिरछी नजर के भी वह शिकार हुए। प्रदीप का रचित यह गीत ‘दूर हटो ए दुनिया वालों’ एक तरह से अंग्रेज़ी सरकार के पर सीधा प्रहार था। कवि प्रदीप के क्रांतिकारी विचार को देखकर अंग्रेज़ी सरकार द्वारा गिरफ्तारी का वारंट भी निकाला गया। गिरफ्तारी से बचने के लिये कवि प्रदीप को कुछ दिनों के लिए भूमिगत रहना पड़ा। यह गीत इस कदर लोकप्रिय हुआ कि सिनेमा हॉल में दर्शक इसे बार-बार सुनने की ख्वाहिश करते थे और फ़िल्म की समाप्ति पर दर्शकों की मांग पर इस गीत को सिनेमा हॉल में दुबारा सुनाया जाने लगा। इसके साथ ही फ़िल्म ‘किस्मत’ ने बॉक्स आफिस के सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इस फ़िल्म ने कोलकाता के एक सिनेमा हॉल में लगातार लगभग चार वर्ष तक चलने का रिकार्ड बनाया।[2]
  • इसके बाद वर्ष 1950 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘मशाल’ में उनके रचित गीत ‘ऊपर गगन विशाल नीचे गहरा पाताल, बीच में है धरती ‘वाह मेरे मालिक तुने किया कमाल’ भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हुआ। इसके बाद कवि प्रदीप ने पीछे मुड़कर नही देखा और एक से बढ़कर एक गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
  • वर्ष 1954 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘नास्तिक’ में उनके रचित गीत ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान’ समाज में बढ़ रही कुरीतियों के ऊपर उनका सीधा प्रहार था।

फ़िल्म 'जागृति'

वर्ष 1954 में ही फ़िल्म ‘जागृति’ में उनके रचित गीत की कामयाबी के बाद वह शोहरत की बुंलदियो पर जा बैठे। यह फ़िल्म कवि प्रदीप के गानों के लिए आज भी स्मरणीय है। प्रदीप द्वारा रचित गीत ‘हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’ और 'दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल' जैसे गीत आज भी लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं। ये गीत देश भर में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस के अवसर पर खासतौर से सुने जा सकते हैं। गीत ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ के जरिए प्रदीप ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त की है। साठ के दशक में पाश्चात्य गीत-संगीत की चमक से निर्माता-निर्देशक अपने आप को नहीं बचा सके और धीरे-धीरे निर्देशकों ने कवि प्रदीप की ओर से अपना मुख मोड़ लिया; लेकिन वर्ष 1958 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘तलाक’ और वर्ष 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पैगाम’ में उनके रचित गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा’ की कामयाबी के बाद प्रदीप एक बार फिर से अपनी खोई हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गए।

'ऐ मेरे वतन के लोगों' की रचना

कवि प्रदीप
आभार- ओडिओन[3]

'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी' साठ के दशक में चीनी आक्रमण के समय लता मंगेशकर द्वारा गाया गया था। यह गीत कवि प्रदीप द्वारा लिखा गया था। कौन-सा सच्चा हिन्दुस्तानी इसे भूल सकता है? यह गीत आज इतने वर्षों के बाद भी उतना ही लोकप्रिय है। इस गीत के कारण 'भारत सरकार' ने कवि प्रदीप को ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से सम्मानित किया था। दाल, चावल और सादा जीवन व्यतीत करने वाले कवि प्रदीप ने यह लिखकर दिया कि- "ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत से मिलने वाली रॉयल्टी की राशि शहीद सैनिकों की विधवा पत्नियों को दी जाए।" इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदीप एक कवि होने के साथ-साथ एक उदार और सच्चे देशभक्त लेखक भी थे।

पूरे भारत में प्रसिद्ध यह गीत 27 जनवरी, 1963 को लता मंगेशकर ने गाया था। चीन के हाथों युद्ध में पराजित होने के बाद भारतीय सेना का मनोबल काफ़ी गिर गया था। साथ ही इस हार से देश में एक तरह की मायूसी-सी छा गई थी। इसी को देखते हुए उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुंबई में सैनिकों के लिए फंड जुटाने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम आयोजित किया था। इसके लिए कवि प्रदीप को एक देशभक्ति गीत लिखने के लिए कहा गया। उस समय तक प्रदीप वीर रस की कविताओं और देशभक्ति गीत लिखने के लिए काफ़ी प्रसिद्ध थे। ऐसे में गीत लिखने को लेकर परेशान प्रदीप मुंबई के माहिम में शाम के समय घूम रहे थे कि तभी इस गीत के बोल उन्हें अपने मन में सुनाई दिए। वे कहीं इसे भूल न जाएं, इसलिए पान की दुकान से सिगरेट का पैकेट खरीदा और उस पर यह लाइन लिख ली, जिसके बाद इस प्रसिद्ध गीत की रचना हुई।

कवि प्रदीप

यह गीत आज भी इतना प्रसिद्ध है कि लखनऊ के एक 'रानी लक्ष्मीबाई हायर सेंकेडी स्कूल' (आरएलबी) ने इसे अपने प्रार्थना में शामिल किया है। विद्यार्थी प्रतिदिन असेम्बली में इस गीत को गाते है। स्कूल का मानना है कि यह गीत आज भी देश के जवानों में नया जोश और उनके मनोबल को ऊचां करता है। बच्चों को इस गीत से पहले इसके पीछे जुड़े इतिहास की जानकारी दी जाती है। इतना ही नहीं स्कूल की हर कक्षा में चीनपाकिस्तान और कारगिल लड़ाइयों के नायकों की तस्वीर और उनके बारे में जानकारी दी गई है।[4]

प्रदीप ने ‘नास्तिक’ एवं ‘जागृति’ फ़िल्मों के लिए जो गीत लिखे, स्वयं उन्होंने ही उन्हें गाया भी था। उससे सामाजिक विघटन की एक झलक मिलती है- ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल गया इंसान। चांद न बदला सूरज न बदला, कितना बदल गया इंसान।।’ 'पैगाम' फ़िल्म के लिए कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘इंसान का इंसान से हो भाईचारा यही पैगाम हमारा’ यह गाना भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ था। अपने गीतों के बलबूते पर बॉक्स ऑफिस पर रिकार्ड तोड़ व्यवसाय करने वाली फ़िल्म थी ‘जय संतोषी मां’ जो कवि प्रदीप के जीवन में एक अविस्मरणीय यशस्वी फ़िल्म का उदाहरण बनी थी।[5]

स्वतंत्रता प्राप्ति का आह्वान

कवि प्रदीप ने देशवासियों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए आह्वान किया। उन्होंने फ़िल्मी गीत जरूर लिखे, लेकिन उसमें देशप्रेम की धारा को प्रवाहित करने में कामयाब रहे। साहित्य समिक्षा के मान दण्डों के आधार पर कवि प्रदीप एक उच्च कोटी के साहित्यकार थे। वे राष्ट्रीय चेतना के प्रतिनिधी कवियों की अग्रिम पंक्ति में अपना स्थान रखते थे। भाषा की दृष्टी से कवि प्रदीप का स्थान अन्य गीतकारों से श्रेष्ठ है। समाज की बिगड़ती दशा को देखकर उनकी अंतरआत्मा ईश्वर से कहती है कि[1]-

"देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान।"

समाजिकता की भावना से ओतप्रोत होकर विश्वबंधुत्व की भावना में उन्होंने लिखा था-

इंसान से इंसान का हो भाई चारा, यही पैगाम हमारा।
संसार में गूँजे समता का इकतारा, यही पैगाम हमारा।

लोकप्रियता

पहली ही फ़िल्म में कवि प्रदीप को गीतकार के साथ-साथ गायक के रूप में भी लिया गया था, परंतु गायक के रूप में उनकी लोकप्रियता का माध्यम बना `जागृति' फ़िल्म का गीत जिसके बोल हैं - आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की संगीत निर्देशक हेमंत कुमार, सी. रामचंद्र, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल आदि ने समय-समय पर कवि प्रदीप के लिखे कुछ गीतों का उन्हीं की आवाज में रिकॉर्ड किया। `पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय', `टूट गई है माला मोती बिखर गए', कोई लाख करे चतुराई करम का लेख मिटे न रे भाई', जैसा भावना प्रधान गीतों को बहुत आकर्षक अंदाज में गाकर कवि प्रदीप ने फ़िल्म जगत के गायकों में। अपना अलग ही महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया था, एक गीत यद्यपि कवि प्रदीप ने स्वयं गाया नहीं था, लेकिन उनकी लिखी इस रचना ने ब्रिटिश शासकों को हिला दिया था, जिसके बोल हैं- आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है, दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है। ब्रिटिश अधिकारी ढूंढ़ने लगे कवि प्रदीप को। जब उनके कुछ मित्रों को पता चला कि ब्रिटिश शासक कवि प्रदीप को पकड़कर कड़ी सजा देना चाहते हैं तो उन्हें कवि प्रदीप की जान खतरे में नजर आने लगी। मित्रों और शुभचिंतकों के दबाव में कवि प्रदीप को भूमिगत हो जाना पड़ा।[6]

लेखनी का कमाल

आज़ादी के बाद 1954 में उन्होंने फ़िल्म 'जागृति' में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन दर्शन को बख़ूबी फ़िल्म के गानों में उतारा। इसे लेखनी का ही कमाल कहेंगे कि जब पाकिस्तान में फ़िल्म 'जागृति' की रीमेक बेदारी बनाई गई तो जो बस देश की जगह मुल्क कर दिया गया और पाकिस्तानी गीत बन गया....हम लाए हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के, इस मुल्क़ को रखना मेरे बच्चों संभाल के..। कुछ इसी तरह ‘दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’ की जगह पाकिस्तानी गाना बन गया..... यूँ दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ऐ क़ायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान। ऐसे ही था बेदारी का ये पाकिस्तानी गाना....आओ बच्चे सैर कराएँ तुमको पाकिस्तान की, जिसकी खातिर हमने दी क़ुर्बानी लाखों जान की। ये गाना असल में था आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ झांकी हिंदुस्तान की...[7]

राजकपूर को सहारा

1970 में देश के महान फ़िल्मकार राजकपूर की महत्वाकांक्षी फ़िल्म 'मेरा नाम जोकर' बॉक्स ऑफिस पर बैठ गई। राजकपूर के सपने खील-खील होकर बिखर गए। दर्शकों को उनकी यह लंबी और दार्शनिकता से भरपूर फ़िल्म नहीं भाई। नीरज का लोकप्रिय गीत 'ए भाई जरा देख कर चलो' भी इसे उबार नहीं पाया। राजकपूर ने इस पर पानी की तरह पैसा बहाया था। वे फ़िल्म के अफसल होने पर दु:खी और उद्विग्न रहने लगे। इसी समय उन्हें कई वर्ष पूर्व प्रदीप का गाया और नियतिवाद पर लिखा एक चमत्कारिक गीत 'कोई लाख करे चतुराई, करम का लेख मिटे ना भाई' की याद आई। प्रदीप से परिचय था ही, अत: उसका रिकॉर्ड मंगवा लिया। उन बुरे दिनों में यह गीत राजकपूर का बहुत सहारा बना। इस गीत के प्रभाव से राजकपूर को अपने मन को नियंत्रण में करने की कला आ गई।

प्रमुख गीत

कवि प्रदीप के प्रमुख गीत
गीत फ़िल्म गीत फ़िल्म
ऐ मेरे वतन के लोगों कंगन सूनी पड़ी रे सितार कंगन
नाचो नाचो प्यारे मन के मोर पुनर्मिलन साबरमती के संत जागृति
हम लाये हैं तूफ़ान से जागृति आओ बच्चों तुम्हें दिखाएँ जागृति
चल अकेला चल अकेला संबंध चल चल रे नौजवान बंधन
चने जोर गरम बाबू बंधन पीयू पीयू बोल प्राण पपीहे बंधन
रुक न सको तो जाओ बंधन खींचो कमान खींचो अंजान
झूले के संग झूलो झूला न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे झूला
मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे झूला आज मौसम सलोना सलोना रे झूला
मेरे बिछड़े हुए साथी झूला दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है किस्मत
कितना बदल गया इंसान नास्तिक चलो चलें माँ जागृति
तेरे द्वार खड़ा भगवान वामन अवतार दूसरों का दुखड़ा दूर करने वाले दशहरा
पिंजरे के पंछी रे नागमणि कोई लाख करे चतुराई चंडी पूजा
इंसान का इंसान से हो भाईचारा पैग़ाम ओ दिलदार बोलो एक बार स्कूल मास्टर
हाय रे संजोग क्या घड़ी दिखलाई कभी धूप कभी छाँव चल मुसाफ़िर चल कभी धूप कभी छाँव
धीरे धीरे आरे बदल किस्मत पपीहा रे, मेरे पिया से किस्मत
घर घर में दिवाली है मेरे घर में अँधेरा किस्मत अब तेरे सिवा कौन मेरा किस्मत
हर हर महादेव अल्लाह-ओ-अकबर चल चल रे नौजवान राम भरोसे मेरी गाड़ी गर्ल्स स्कूल
ऊपर गगन विशाल मशाल किसकी किस्मत में क्या लिखा मशाल
आज एशिया के लोगों का काफ़िला चला काफ़िला कोयल बोले कु बाप बेटी
कान्हा बजाए बंसरी नास्तिक जय जय राम रघुराई नास्तिक
गगन झंझना राजा नास्तिक तेरे फूलों से भी प्यार नास्तिक
कहेको बिसरा हरिनाम, माटी के पुतले चक्रधारी तुंनक तुंनक बोले रे मेरा इकतारा रामनवमी
नई उम्र की कलियों तुमको देख रही दुनिया सारी तलाक़ बिगुल बज रहा आज़ादी का तलाक़
मेरे जीवन में किरण बन के तलाक़ मुखड़ा देख ले प्राणी दो बहन
ओ अमीरों के परमेश्वर पैग़ाम जवानी में अकेलापन पैग़ाम
आज सुनो हम गीत विदा का गा रहे स्कूल मास्टर सांवरिया रे अपनी मीरा को भूल न जाना आँचल
न जाने कहाँ तुम थे जिंदगी और ख्वाब आज के इस इंसान को ये क्या हो गया अमर रहे ये प्यार
सूरज रे जलते रहना हरिश्चंद्र तारामती टूट गई है माला हरिश्चंद्र तारामती
जन्मभूमि माँ नेताजी सुभाषचंद्र बोस सुनो सुनो देश के हिन्दू-मुसलमान नेताजी सुभाषचंद्र बोस
भारत के लिए भगवान का एक वरदान है गंगा हर हर गंगे ये ख़ुशी लेके मैं क्या करूँ हर हर गंगे
तुमको तो करोड़ों साल हुए संबंध जो दिया था तुमने एक दिन संबंध
अँधेरे में जो बैठे हो संबंध सुख दुःख दोनों रहते कभी धूप कभी छाँव
जय जय नारायण नारायण हरी हरी हरिदर्शन प्रभु के भरोसे हांको गाड़ी हरिदर्शन
मारने वाला है भगवान बचाने वाला है भगवान हरिदर्शन मैं तो आरती उतारूँ रे जय संतोषी माँ
मत रो मत रो आज जय संतोषी माँ करती हूँ तुम्हारा व्रत मैं जय संतोषी माँ
मदद करो संतोषी माता जय संतोषी माँ यहाँ वहाँ जहाँ तहाँ जय संतोषी माँ
हे मारुती सारी रामकथा साकार बजरंगबली बंजा हूँ मैं आँख का तारा
कवि प्रदीप के गीतों से सजी फ़िल्में
क्रमांक फ़िल्म वर्ष क्रमांक फ़िल्म वर्ष
1. कंगन 1939 2. बंधन 1940
3. पुनर्मिलन 1940 4. अनजान 1941
5. झूला 1941 6. नया संसार 1941
7. किस्मत 1943 8. चल चल रे नौजवान 1944
9. कादम्बरी 1944 10. आम्रपाली 1945
11. शिकारी 1946 12. सती तोरल 1947
13. वीरांगना 1947 14. गर्ल्स स्कूल 1949
15. मशाल 1950 16. प्रीत का गीत 1950
17. चमकी 1950 18. काफ़िला 1952
19. बाप-बेटी 1954 20. नास्तिक 1954
21. जागृति 1954 22. चक्रधारी 1954
23. वामन अवतार 1955 24. बसंत पंचमी 1955
25. दशहरा 1956 26. ललकार 1956
27. रामनवमी 1956 28. नागमणि 1957
29. चंडी पूजा 1957 30. तलाक 1958
31. दो बहनें 1959 32. पैग़ाम 1959
33. स्कूल मास्टर 1959 34. आंचल 1960
35. अमर प्रेम 1960 36. ज़िंदगी और ख्वाब 1961
37. अमर रहे ये प्यार 1961 38. हरिश्चंद्र तारामती 1963
39. वीर भीमसेन 1964 40. श्रीराम भरत मिलाप 1965
41 शंकर सीता अनुसूया 1965 42 वीर बजरंग 1966
43 नेताजी सुभाषचंद्र बोस 1966 44 बलराम श्रीकृष्ण 1966
45 हर हर गंगे 1968 46 सम्बंध 1969
47 कभी धूप कभी छाँव 1971 48 तुलसी विवाह 1971
49. हरि दर्शन 1972 50. अग्नि रेखा 1973
51. बाल महाभारत 1973 52. महासती सावित्री 1973
53. किसान और भगवान 1974 54. हर हर महादेव 1974
55. जय संतोषी माँ 1975 56. रक्षा बंधन 1976
57. बजरंग बली 1976 58. बोलो हे चक्रधारी 1977
59. आँख का तारा 1977 60. नागिन और सुहागिन 1979
61. छठ मइया की महिमा 1979 62. कृष्ण सुदामा 1979
63. कृष्ण भक्त सुदामा 1980 64. करवा चौथ 1980
65. बाबा तारकनाथ 1980 66. मंगलसूत्र 1981
67. शेर शिवाजी 1981 68. सती और भगवान 1982
69. अनमोल सितारे 1982 70. गीत गंगा 1982
71. जय बाबा अमरनाथ 1983 72. श्रवण कुमार 1984
73. सामरी 1985 74. रुसवाई 1985
75. दिलजला 1987 76. शिव गंगा 1988

रचनाओं का पाकिस्तान में प्रयोग

कवि प्रदीप की लेखनी में एक ख़ासियत ये थी कि उनकी रचनाएं किसी वर्ग विशेष या फिर किसी राजनीतिक विचारधारा से ओत-प्रोत नहीं थी। यही कारण था कि प्रदीप की रचनाएं छोटे-छोटे फेरबदल के साथ पाकिस्तान ने भी प्रयोग की। जैसे- फ़िल्म 'जागृति' का "दे दी हमें आज़ादी बिना खड़ग बिना ढाल", ये गीत पाकिस्तान को इतना भाया कि पाकिस्तान की फ़िल्मों में ये गीत कुछ इस प्रकार आया- "यूं दी हमें आज़ादी कि दुनिया हुई हैरान, ए कायदे आज़म तेरा एहसान है एहसान।" इसी प्रकार "आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिन्दोस्तान की", गीत को पाकिस्तान में कुछ ऐसे गाया गया- "आओ बच्चो सैर कराएं तुमको पाकिस्तान की।" यह प्रदीप जी की सशक्त लेखनी का ही कमाल था कि पाकिस्तान ने प्रभावित होकर हिन्दी फ़िल्म ‘जागृति’ का रीमेक ‘बेदारी’ बना डाला, जो वहां पर आज भी लोकप्रिय है।[8]

सादा व्यक्तित्व

कवि प्रदीप

निदा फ़ाज़ली कवि प्रदीप को बतौर कवि से अधिक एक गीतकार के रूप में ज़्यादा मक़बूल मानते हैं। वे कहते हैं- "प्रदीप जी ने बहुत ही अच्छे राष्ट्रीय गीत लिखे हैं। यूँ समझिए कि उन्होंने सिनेमा को ज़रिया बनाकर आम लोगों के लिए लिखा। बहुत संदुर गीत थे वो।"

वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश चौकसे कवि प्रदीप के सादे व्यक्तित्व के कायल हैं। उन्हें याद करते हुए वे कहते हैं- "उन्होंने बहुत ज़्यादा साहित्य का अध्ययन नहीं किया था, वो जन्मजात कवि थे। उन्हें मैं देशी ठाठ का स्थानीय कवि कहूंगा। यही उनकी असली परिचय है। सादगी भरा जीवन जीते थे। किसी राजनीतिक विचारधारा को नहीं मानते थे। जैसे साहिर लुधियानवी और शैलेंद्र के गीत लें तो वे कम्युनिस्ट विचारधारा के थे, लेकिन प्रदीप जी ने किसी राजनीतिक विचारधारा को स्वीकार नहीं किया। बौद्धिकता का जामा उनकी लेखनी पर नहीं था, जो सोचते थे वही लिखते थे, सरल थे, यही उनकी ख़ासियत थी।"

बेटी मितुल कहती हैं कि "अच्छे कवि होने के साथ-साथ प्रदीप जी बेहतरीन इंसान और पिता थे।" यादों के झरोखों में झाँकते हुए वे बताती हैं कि "जीवन में पिताजी की बेहद छोटी-छोटी और सुंदर माँगे होती थीं- दाल, चावल स्वादिष्ट बना हो, सुबह चाय के साथ अख़बार समय पर आ जाए; और हाँ उनका दिन सुबह छह बजे बीबीसी हिंदी सेवा के समाचारों से होता था। बीबीसी सुनते ही हम समझ जाते थे कि दिन हो गया है।"[9]

शांत स्वभाव

एक बार मशहूर शायर-गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने प्रसिद्ध संगीत निर्देशक और अपने समधी, नौशाद के साथ मिलकर कवि प्रदीप की लेखनी का मजाक उड़ाया था कि "आंख क्या बाल्टी है जो उसमें पानी भरने की बात लिख दी है प्रदीप ने।" कवि प्रदीप उस पर भी केवल मुस्कुरा दिए और कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। अभिनेता अशोक कुमार उनके बारे में बहुत हंसते हुए बताते थे कि कवि प्रदीप आमतौर पर दीवार की ओर मुँह करके उस पर हाथों से ताल देते हुए गीत सुनाया करते थे। अगर उन्हें सबके सामने मुँह करके गीत सुनाने के लिए कहा जाता था, तो वे माचिस की डिब्बी या मेज पर ताल देते हुए गाना सुनाया करते थे। 'ऊपर गगन विशाल’ गीत सुनाने के समय कवि प्रदीप अपने हाथ को ऊपर-नीचे हिला-हिलाकर तन्मयता दिखाते थे। एक संत पुरुष, सीधे-सादे, किसी भी प्रकार के दिखावे से दूर रहने वाले कवि प्रदीप के लिए मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि हिन्दी फ़िल्म जगत में भावनापूर्ण साहित्यिक तथा उच्च स्तरीय गीत लिखकर कलम के धनी कवि प्रदीप ने कमाल ही किया।[9]

सम्मान और पुरस्कार

कवि प्रदीप के सम्मान में जारी डाक टिकट

कवि प्रदीप को अनेक सम्मान प्राप्त हुए थे, जिनमें 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' (1961) तथा 'फ़िल्म जर्नलिस्ट अवार्ड' (1963) शामिल हैं। फ़िल्मों में प्रदीप के अमूल्य योगदान के लिए उन्हें 1998 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' दिया गया था। उनका हर फ़िल्मी-ग़ैर फ़िल्मी गीत अर्थपूर्ण होता था और जीवन को कोई न कोई दर्शन समझा जाता था। खेद का विषय यह है कि ऐसे महान देश भक्त, गीतकार एवं संगीतकार को भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित नहीं किया, न ही आज तक उन पर स्मारक डाक टिकट निकला।

निधन

कवि प्रदीप ने अपने जीवन में 1700 गाने लिखे। 83 वर्ष की आयु में कवि प्रदीप 11 दिसंबर, 1998 को अपने पीछे अपनी पत्नी तथा दो पुत्रियों को छ़ोडकर इस नश्वर संसार से प्रस्थान कर गये। उनकी मृत्यु कैंसर के कारण हुई। वे अपने अमर व बेहतरीन गीतों के साथ आज भी हम सबके बीच हैं और सदा रहेंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 कवि प्रदीप, आँखें नम कर देने वाले 10 बेहतरीन गीत (हिन्दी) सहदेव। अभिगमन तिथि: 07 फरवरी, 2015।
  2. देशभक्ति गीतों के कवि: प्रदीप (हिन्दी) सहारा समय। अभिगमन तिथि: 08 फरवरी, 2015।
  3. Odeon (a company of the EMI group)
  4. लखनऊ से गहरा रिश्ता था कवि प्रदीप का (हिन्दी) आईनेक्स्टलाइव। अभिगमन तिथि: 08 फ़रवरी, 2015।
  5. हिन्दी फ़िल्मों के निराले कवि प्रदीप (हिन्दी) हरि शर्मा.ब्लॉगस्पॉट। अभिगमन तिथि: 07 फ़रवरी, 2015।
  6. कई सदियों तक गूंजेंगे प्रदीप के गीत (हिन्दी) (पी.एच.पी) हिन्दी मीडिया इन। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
  7. कवि प्रदीप: सिनेमा से आम जन तक पहुँचे (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) बीबीसी हिन्दी। अभिगमन तिथि: 30 सितम्बर, 2012।
  8. आम आदमी की रगों में दौड़ता एक कवि प्रदीप (हिन्दी) आवाज। अभिगमन तिथि: 07 फरवरी, 2015।
  9. 9.0 9.1 राष्ट्रकवि प्रदीप-आवाज हिंदुस्तान की (हिन्दी) ठलुआ क्लब। अभिगमन तिथि: 08 फरवरी, 2015।

बाहरी कड़ियाँ

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