अनमोल वचन 5

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अनमोल वचन
महापुरुषों के अनमोल वचन

अज्ञात

  • प्रकृति, समय और धैर्य ये तीन हर दर्द की दवा हैं। - अज्ञात
  • मुस्कान पाने वाला मालामाल हो जाता है पर देने वाला दरिद्र नहीं होता। - अज्ञात
  • क्रोध ऐसी आँधी है जो विवेक को नष्ट कर देती है। - अज्ञात
  • भाग्य के भरोसे बैठे रहने पर भाग्य सोया रहता है पर हिम्मत बाँध कर खड़े होने पर भाग्य भी उठ खड़ा होता है। - अज्ञात
  • मिलने पर मित्र का आदर करो, पीठ पीछे प्रशंसा करो और आवश्यकता के समय उसकी मदद करो। - अज्ञात
  • दरिद्र व्यक्ति कुछ वस्तुएँ चाहता है, विलासी बहुत-सी और लालची सभी वस्तुएँ चाहता है। - अज्ञात
  • विश्वास हृदय की वह कलम है जो स्वर्गीय वस्तुओं को चित्रित करती है। - अज्ञात
  • वे ही विजयी हो सकते हैं जिनमें विश्वास है कि वे विजयी होंगे। - अज्ञात
  • विवेक जीवन का नमक है और कल्पना उसकी मिठास। एक जीवन को सुरक्षित रखता है और दूसरा उसे मधुर बनाता है। - अज्ञात
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। - अज्ञात
  • एकता का किला सबसे सुरक्षित होता है। न वह टूटता है और न उसमें रहने वाला कभी दुखी होता है। - अज्ञात
  • अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों और विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। - अज्ञात
  • जिस प्रकार थोड़ी-सी वायु से आग भड़क उठती है, उसी प्रकार थोड़ी-सी मेहनत से किस्मत चमक उठती है। - अज्ञात
  • किताबें ऐसी शिक्षक हैं जो बिना कष्ट दिए, बिना आलोचना किए और बिना परीक्षा लिए हमें शिक्षा देती हैं। - अज्ञात
  • डूबते को तारना ही अच्छे इंसान का कर्तव्य होता है। - अज्ञात
  • सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। - अज्ञात
  • अनुभव-प्राप्ति के लिए काफ़ी मूल्य चुकाना पड़ सकता है पर उससे जो शिक्षा मिलती है वह और कहीं नहीं मिलती। - अज्ञात
  • जिसने अकेले रह कर अकेलेपन को जीता उसने सबकुछ जीता। - अज्ञात
  • एकता का किला सबसे सुदृढ़ होता है। उसके भीतर रह कर कोई भी प्राणी असुरक्षा अनुभव नहीं करता। - अज्ञात
  • सौभाग्य वीर से डरता है और कायर को डराता है। - अज्ञात
  • मुस्कान थके हुए के लिए विश्राम है, उदास के लिए दिन का प्रकाश है तथा कष्ट के लिए प्रकृति का सर्वोत्तम उपहार है। - अज्ञात
  • साफ़ सुथरे सादे परिधान में ऐसा यौवन होता है जिसमें अधिक उम्र छिप जाती है। - अज्ञात
  • जिस काम की तुम कल्पना करते हो उसमें जुट जाओ। साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है। साहस से काम शुरु करो पूरा अवश्य होगा। - अज्ञात
  • मनुष्य मन की शक्तियों के बादशाह हैं। संसार की समस्त शक्तियाँ उनके सामने नतमस्तक हैं। - अज्ञात
  • जो मनुष्य एक पाठशाला खोलता है वह एक जेलखाना बंद करता है। - अज्ञात
  • प्रसिद्ध होने का यह एक दंड है कि मनुष्य को निरंतर उन्नतिशील बने रहना पड़ता है। - अज्ञात
  • शब्द पत्तियों की तरह हैं जब वे ज़्यादा होते हैं तो अर्थ के फल दिखाई नहीं देते। - अज्ञात
  • किताबें समय के महासागर में जलदीप की तरह रास्ता दिखाती हैं। - अज्ञात
  • बिना ग्रंथ के ईश्वर मौन है, न्याय निद्रित है, विज्ञान स्तब्ध है और सभी वस्तुएँ पूर्ण अंधकार में हैं। - अज्ञात
  • हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं। - अज्ञात
  • काम करने में ज्यादा श्रम नहीं लगता, लेकिन यह निर्णय करने में ज्यादा श्रम करना पड़ता है कि क्या करना चाहिए। - अज्ञात
  • सौ बरस जीने के लिए उन सभी सुखों को छोड़ना होता है जिन सुखों के लिए हम सौ बरस जीना चाहते हैं। - अज्ञात
  • शारीरिक वीरता एक पाशविक प्रवृत्ति है। मनुष्य की असली वीरता तो मानसिक और नैतिक होती है। - अज्ञात
  • अधिकतर लोग नए साल की प्रतीक्षा केवल इसलिए करते हैं कि पुरानी आदतें नए सिरे से फिर शुरू की जा सकें। - अज्ञात
  • अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं। - अज्ञात
  • कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है। - अज्ञात

मुक्ता

  • रंग में वह जादू है जो रंगने वाले, भीगने वाले और देखने वाले तीनों के मन को विभोर कर देता है। - मुक्ता
  • लगन और योग्यता एक साथ मिलें तो निश्चय ही एक अद्वितीय रचना का जन्म होता है। - मुक्ता
  • जिस तरह रंग सादगी को निखार देते हैं उसी तरह सादगी भी रंगों को निखार देती है। सहयोग सफलता का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। - मुक्ता
  • विजय गर्व और प्रतिष्ठा के साथ आती है पर यदि उसकी रक्षा पौरुष के साथ न की जाय तो अपमान का ज़हर पिला कर चली जाती है। - मुक्ता
  • रंगों की उमंग खुशी तभी देती है जब उसमें उज्जवल विचारों की अबरक़ चमचमा रही हो। - मुक्ता
  • सतत परिश्रम, सुकर्म और निरंतर सावधानी से ही स्वतंत्रता का मूल्य चुकाया जा सकता है। - मुक्ता
  • ऐश्वर्य के मद से मस्त व्यक्ति ऐश्वर्य के भ्रष्ट होने तक प्रकाश में नहीं आता। - मुक्ता
  • प्रतिभा महान कार्यों का आरंभ करती है किंतु पूरा उनको परिश्रम ही करता है। - मुक्ता
  • रंग इसलिए हैं कि जीवन की एकरसता दूर हो सके और इसलिए भी कि हम सादगी का मूल्य पहचान सकें। - मुक्ता
  • जिस तरह पहली बारिश मौसम का मिजाज बदल देती है उसी प्रकार उदारता नाराज़गी का मौसम बदल देती है - मुक्ता
  • अपने देश की भाषा और संस्कृति के समुचित ज्ञान के बिना देशप्रेम की बातें करने वाले केवल स्वार्थी होते हैं। - मुक्ता
  • मिथ्या लांछन का सबसे अच्छा उत्तर है शांत रहकर धैर्यपूर्वक अपने काम में निरंतर लगे रहना। - मुक्ता
  • जलाने की लकड़ी ही होलिका है जब वह जलती है तब प्रह्लाद की प्राप्ति होती है। प्रह्लाद जो आह्लाद का ही विशेष रुप है। - मुक्ता
  • कुछ प्रलोभन परिश्रमी व्यक्ति को हो सकते हैं, किंतु सारे प्रलोभन तो केवल आलसी व्यक्ति पर ही आक्रमण करते हैं। - मुक्ता
  • महापुरुष वे ही होते हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के रंगों में रंगे जाने के बाद भी अपने व्यक्तित्व की पहचान को खोने नहीं देते। - मुक्ता
  • रंगों का स्वभाव है बिखरना और मनुष्य का स्वभाव है उन्हें समेटकर अपने जीवन को रंगीन बनाना। - मुक्ता
  • आतंक का जन्म असंतोष से होता है असमानता से इसे हवा मिलती है और यह अपनी आग में हज़ारों को लेकर जल मरता है - मुक्ता
  • विज्ञान के चमत्कार हमारा जीवन सहज बनाते हैं पर प्रकृति के चमत्कार धूप, पानी और वनस्पति के बिना तो जीवन का अस्तित्व ही संभव नहीं। - मुक्ता

विनोबा

  • मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है। - विनोबा
  • जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती। - विनोबा
  • ऐसे देश को छोड़ देना चाहिए जहाँ न आदर है, न जीविका, न मित्र, न परिवार और न ही ज्ञान की आशा। - विनोबा
  • स्वतंत्र वही हो सकता है जो अपना काम अपने आप कर लेता है। - विनोबा
  • विचारकों को जो चीज़ आज स्पष्ट दीखती है दुनिया उस पर कल अमल करती है। - विनोबा
  • केवल अंग्रेज़ी सीखने में जितना श्रम करना पड़ता है उतने श्रम में भारत की सभी भाषाएँ सीखी जा सकती हैं। - विनोबा
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में यह तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। - विनोबा
  • प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं। - विनोबा
  • महान विचार ही कार्य रूप में परिणत होकर महान कार्य बनते हैं। - विनोबा
  • जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है। - विनोबा
  • द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। - विनोबा

प्रेमचंद

  • कुल की प्रतिष्ठा भी विनम्रता और सदव्यवहार से होती है, हेकड़ी और रुआब दिखाने से नहीं। - प्रेमचंद
  • मन एक भीरु शत्रु है जो सदैव पीठ के पीछे से वार करता है। - प्रेमचंद
  • चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुँचा सकता जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझ कर पी न जाएँ। - प्रेमचंद
  • महान व्यक्ति महत्वाकांक्षा के प्रेम से बहुत अधिक आकर्षित होते हैं। - प्रेमचंद
  • जिस साहित्य से हमारी सुरुचि न जागे, आध्यात्मिक और मानसिक तृप्ति न मिले, हममें गति और शक्ति न पैदा हो, हमारा सौंदर्य प्रेम न जागृत हो, जो हममें संकल्प और कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने की सच्ची दृढ़ता न उत्पन्न करे, वह हमारे लिए बेकार है वह साहित्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। - प्रेमचंद
  • आकाश में उड़ने वाले पंछी को भी अपने घर की याद आती है। - प्रेमचंद
  • जिस प्रकार नेत्रहीन के लिए दर्पण बेकार है उसी प्रकार बुद्धिहीन के लिए विद्या बेकार है। - प्रेमचंद
  • न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं, वह जैसे चाहती है नचाती है। - प्रेमचंद
  • युवावस्था आवेशमय होती है, वह क्रोध से आग हो जाती है तो करुणा से पानी भी। - प्रेमचंद
  • अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे। - प्रेमचंद
  • देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। - प्रेमचंद
  • मासिक वेतन पूरनमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते घटते लुप्त हो जाता है। - प्रेमचंद
  • क्रोध में मनुष्य अपने मन की बात नहीं कहता, वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है। - प्रेमचंद
  • अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है। - प्रेमचंद
  • दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते। - प्रेमचंद

चाणक्य

  • मेहनत करने से दरिद्रता नहीं रहती, धर्म करने से पाप नहीं रहता, मौन रहने से कलह नहीं होता और जागते रहने से भय नहीं होता। - चाणक्य
  • आँख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता। - चाणक्य
  • प्रलय होने पर समुद्र भी अपनी मर्यादा को छोड़ देते हैं लेकिन सज्जन लोग महाविपत्ति में भी मर्यादा को नहीं छोड़ते। - चाणक्य
  • वही पुत्र हैं जो पितृ-भक्त है, वही पिता हैं जो ठीक से पालन करता हैं, वही मित्र है जिस पर विश्वास किया जा सके और वही देश है जहाँ जीविका हो। - चाणक्य
  • तृण से हल्की रूई होती है और रूई से भी हल्का याचक। हवा इस डर से उसे नहीं उड़ाती कि कहीं उससे भी कुछ न माँग ले। - चाणक्य
  • धन के लोभी के पास सच्चाई नहीं रहती और व्यभिचारी के पास पवित्रता नहीं रहती। - चाणक्य
  • पुरुषार्थ से दरिद्रता का नाश होता है, जप से पाप दूर होता है, मौन से कलह की उत्पत्ति नहीं होती और सजगता से भय नहीं होता। - चाणक्य
  • प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है। - चाणक्य

रामधारी सिंह दिनकर

  • कविता गाकर रिझाने के लिए नहीं समझ कर खो जाने के लिए है। - रामधारी सिंह दिनकर
  • कविता वह सुरंग है जिसमें से गुज़र कर मनुष्य एक विश्व को छोड़ कर दूसरे विश्व में प्रवेश करता है। - रामधारी सिंह दिनकर

हितोपदेश

  • विद्वत्ता अच्छे दिनों में आभूषण, विपत्ति में सहायक और बुढ़ापे में संचित धन है। - हितोपदेश
  • बिना कारण कलह कर बैठना मूर्ख का लक्षण हैं। इसलिए बुद्धिमत्ता इसी में है कि अपनी हानि सह ले लेकिन विवाद न करें। - हितोपदेश
  • ना तो कोई किसी का मित्र है ना ही शत्रु है। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं। - हितोपदेश
  • लोभी को धन से, अभिमानी को विनम्रता से, मूर्ख को मनोरथ पूरा कर के, और पंडित को सच बोलकर वश में किया जाता है। - हितोपदेश
  • पुष्प की सुगंध वायु के विपरीत कभी नहीं जाती लेकिन मानव के सदगुण की महक सब ओर फैल जाती है। - गौतम बुद्ध
  • हज़ार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है। - गौतम बुद्ध
  • मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है। - गौतम बुद्ध
  • जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं। - गौतम बुद्ध

रवींद्रनाथ ठाकुर

  • कलाकार प्रकृति का प्रेमी है अत: वह उसका दास भी है और स्वामी भी। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत सबकुछ है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • फूल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • समय परिवर्तन का धन है। परंतु घड़ी उसे केवल परिवर्तन के रूप में दिखाती है, धन के रूप में नहीं। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • जिस तरह घोंसला सोती हुई चिड़िया को आश्रय देता है उसी तरह मौन तुम्हारी वाणी को आश्रय देता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • ईश्वर बड़े-बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लेकिन छोटे-छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • यदि तुम जीवन से सूर्य के जाने पर रो पड़ोगे तो आँसू भरी आँखे सितारे कैसे देख सकेंगी? - रवींद्रनाथ ठाकुर
  • चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है। - रवींद्र
  • विश्वविद्यालय महापुरुषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें बनाने वाले कारीगर हैं। - रवींद्र
  • जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं। - रवींद्र

भर्तृहरि

  • आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने वाला कभी दुखी नहीं होता। - भर्तृहरि
  • धैर्यवान मनुष्य आत्मविश्वास की नौका पर सवार होकर आपत्ति की नदियों को सफलतापूर्वक पार कर जाते हैं। - भर्तृहरि
  • सच्चे वीर को युद्ध में मृत्यु से जितना कष्ट नहीं होता उससे कहीं अधिक कष्ट कायर को युद्ध के भय से होता है। - भतृहरि
  • इस विश्व में स्वर्ण, गाय और पृथ्वी का दान देनेवाले सुलभ है लेकिन प्राणियों को अभयदान देनेवाले इन्सान दुर्लभ हैं। - भर्तृहरि

सत्यसाई बाबा

  • चरित्रहीन शिक्षा, मानवता विहीन विज्ञान और नैतिकता विहीन व्यापार ख़तरनाक होते हैं। - सत्यसाई बाबा
  • बच्चे कोरे कपड़े की तरह होते हैं, जैसा चाहो वैसा रंग लो, उन्हें निश्चित रंग में केवल डुबो देना पर्याप्त है। - सत्यसाई बाबा
  • मानव हृदय में घृणा, लोभ और द्वेष वह विषैली घास हैं जो प्रेम रूपी पौधे को नष्ट कर देती है। - सत्य साईं बाबा

रामकृष्ण परमहंस

  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्वर के प्रकाश का प्रतिबिंब नहीं पड़ सकता। - रामकृष्ण परमहंस
  • नाव जल में रहे लेकिन जल नाव में नहीं रहना चाहिए, इसी प्रकार साधक जग में रहे लेकिन जग साधक के मन में नहीं रहना चाहिए। - रामकृष्ण परमहंस

महात्मा गांधी

  • जैसे छोटा-सा तिनका हवा का रुख बताता है वैसे ही मामूली घटनाएँ मनुष्य के हृदय की वृत्ति को बताती हैं। - महात्मा गांधी
  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। - महात्मा गांधी
  • मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • सत्याग्रह बलप्रयोग के विपरीत होता है। हिंसा के संपूर्ण त्याग में ही सत्याग्रह की कल्पना की गई है। - महात्मा गांधी
  • दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, सत्य, दया और आत्मबल पर है। - महात्मा गांधी
  • पराजय से सत्याग्रही को निराशा नहीं होती बल्कि कार्यक्षमता और लगन बढ़ती है। - महात्मा गांधी
  • महापुरुषों का सर्वश्रेष्ठ सम्मान हम उनका अनुकरण कर के ही कर सकते हैं। - महात्मा गांधी
  • जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है, कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। - महात्मा गाँधी
  • वही राष्ट्र सच्चा लोकतंत्रात्मक है जो अपने कार्यों को बिना हस्तक्षेप के सुचारु और सक्रिय रूप से चलाता है। - महात्मा गांधी
  • सारा हिन्दुस्तान गुलामी में घिरा हुआ नहीं है। जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा पाई है और जो उसके पाश में फँस गए हैं, वे ही गुलामी में घिरे हुए हैं। - महात्मा गाँधी

स्वामी विवेकानंद

  • सर्वसाधारण जनता की उपेक्षा एक बड़ा राष्ट्रीय अपराध है। - स्वामी विवेकानंद
  • भय से ही दुःख आते हैं, भय से ही मृत्यु होती है और भय से ही बुराइयाँ उत्पन्न होती हैं। - स्वामी विवेकानंद
  • पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है। - स्वामी विवेकानंद
  • आत्मविश्वास सरीखा दूसरा कोई मित्र नहीं। यही हमारी उन्नति में सबसे बड़ा सहयक होता है। - स्वामी विवेकानंद
  • कामनाएँ समुद्र की भाँति अतृप्त हैं। पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है। - स्वामी विवेकानंद
  • जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते, परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते। - स्वामी विवेकानंद
  • जीवन का रहस्य भोग में स्थित नहीं है, यह केवल अनुभव द्वारा निरंतर सीखने से ही प्राप्त होता है। - स्वामी विवेकानंद

सुभाष चंद्र बोस

  • जीवन में कोई चीज़ इतनी हानिकारक और ख़तरनाक नहीं जितना डाँवाँडोल स्थिति में रहना। - सुभाष चंद्र बोस
  • बिना जोश के आज तक कोई भी महान कार्य नहीं हुआ। - सुभाष चंद्र बोस

जयशंकर प्रसाद

  • पाषाण के भीतर भी मधुर स्रोत होते हैं, उसमें मदिरा नहीं शीतल जल की धारा बहती है। - जयशंकर प्रसाद
  • पुरुष है कुतूहल व प्रश्न और स्त्री है विश्लेषण, उत्तर और सब बातों का समाधान। - जयशंकर प्रसाद
  • नारी की करुणा अंतरजगत का उच्चतम विकास है, जिसके बल पर समस्त सदाचार ठहरे हुए हैं। - जयशंकर प्रसाद
  • संसार भर के उपद्रवों का मूल व्यंग्य है। हृदय में जितना यह घुसता है उतनी कटार नहीं। - जयशंकर प्रसाद
  • अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। - जयशंकर प्रसाद

कहावत

  • अच्छी योजना बनाना बुद्धिमानी का काम है पर उसको ठीक से पूरा करना धैर्य और परिश्रम का। - कहावत
  • वाणी चाँदी है, मौन सोना है, वाणी पार्थिव है पर मौन दिव्य। - कहावत
  • जब पैसा बोलता है तब सत्य मौन रहता है। - कहावत
  • भूख प्यास से जितने लोगों की मृत्यु होती है उससे कहीं अधिक लोगों की मृत्यु ज़्यादा खाने और ज़्यादा पीने से होती है। - कहावत
  • धन के भी पर होते हैं। कभी-कभी वे स्वयं उड़ते हैं और कभी-कभी अधिक धन लाने के लिए उन्हें उड़ाना पड़ता है। - कहावत
  • समय और बुद्धि बड़े से बड़े शोक को भी कम कर देते हैं। - कहावत
  • जिस तरह एक दीपक पूरे घर का अंधेरा दूर कर देता है उसी तरह एक योग्य पुत्र सारे कुल का दरिद्र दूर कर देता है - कहावत

वेदव्यास

  • जो पुरुषार्थ नहीं करते उन्हें धन, मित्र, ऐश्वर्य, सुख, स्वास्थ्य, शांति और संतोष प्राप्त नहीं होते। - वेदव्यास
  • नियम के बिना और अभिमान के साथ किया गया तप व्यर्थ ही होता है। - वेदव्यास
  • दुख को दूर करने की एक ही अमोघ ओषधि है- मन से दुखों की चिंता न करना। - वेदव्यास
  • वैर के कारण उत्पन्न होने वाली आग एक पक्ष को स्वाहा किए बिना कभी शांत नहीं होती। - वेदव्यास
  • जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए। - वेदव्यास
  • जैसे सूर्य आकाश में छुप कर नहीं विचर सकता उसी प्रकार महापुरुष भी संसार में गुप्त नहीं रह सकते। - वेदव्यास

सुदर्शन

  • मुहब्बत त्याग की माँ है। वह जहाँ जाती है अपने बेटे को साथ ले जाती है। - सुदर्शन
  • जो काम घड़ों जल से नहीं होता उसे दवा के दो घूँट कर देते हैं और जो काम तलवार से नहीं होता वह काँटा कर देता है। - सुदर्शन
  • अधर्म की सेना का सेनापति झूठ है। जहाँ झूठ पहुँच जाता है वहाँ अधर्म-राज्य की विजय-दुंदुभी अवश्य बजती है। - सुदर्शन
  • धन तो वापस किया जा सकता है परंतु सहानुभूति के शब्द वे ऋण हैं जिसे चुकाना मनुष्य की शक्ति के बाहर है। - सुदर्शन
  • लक्ष्मी उसी के लिए वरदान बनकर आती है जो उसे दूसरों के लिए वरदान बनाता है। - सुदर्शन
  • जो अपने को बुद्धिमान समझता है वह सामान्यतः सबसे बड़ा मूर्ख होता है। - सुदर्शन
  • कीर्ति का नशा शराब के नशे से भी तेज़ है। शराब छोड़ना आसान है, कीर्ति छोड़ना आसान नहीं। - सुदर्शन
  • करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है। - सुदर्शन

कालिदास

  • पृथ्वी पर तीन रत्न हैं। जल, अन्न और सुभाषित लेकिन अज्ञानी पत्थर के टुकड़े को ही रत्न कहते हैं। - कालिदास
  • यशस्वियों का कर्तव्य है कि जो अपने से होड़ करे उससे अपने यश की रक्षा भी करें। - कालिदास
  • उदय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपत्ति और विपत्ति के समय महान पुरुषों में एकरूपता होती है। - कालिदास
  • काम की समाप्ति संतोषप्रद हो तो परिश्रम की थकान याद नहीं रहती। - कालिदास
  • सज्जन पुरुष बादलों के समान देने के लिए ही कोई वस्तु ग्रहण करते हैं। - कालिदास
  • सब प्राचीन अच्छा और सब नया बुरा नहीं होता। बुद्धिमान पुरुष स्वयं परीक्षा द्वारा गुण-दोषों का विवेचन करते हैं। - कालिदास
  • जिनका चित्त विकार उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों में भी अस्थिर नहीं होता वे ही सच्चे धीर पुरुष होते हैं। - कालिदास
  • सज्जन पुरुष बिना कहे ही दूसरों की आशा पूरी कर देते है जैसे सूर्य स्वयं ही घर-घर जाकर प्रकाश फैला देता है। - कालिदास
  • दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। - कालिदास

तुलसीदास

  • फल के आने से वृक्ष झुक जाते हैं, वर्षा के समय बादल झुक जाते हैं, संपत्ति के समय सज्जन भी नम्र होते हैं। परोपकारियों का स्वभाव ही ऐसा है। - तुलसीदास
  • वृक्ष अपने सिर पर गरमी सहता है पर अपनी छाया में दूसरों का ताप दूर करता है। - तुलसीदास

रहीम

  • उत्तम पुरुषों की संपत्ति का मुख्य प्रयोजन यही है कि औरों की विपत्ति का नाश हो। - रहीम
  • थोड़े दिन रहने वाली विपत्ति अच्छी है क्यों कि उसी से मित्र और शत्रु की पहचान होती है। - रहीम

कबीर

  • साँप के दाँत में विष रहता है, मक्खी के सिर में और बिच्छू की पूँछ में किंतु दुर्जन के पूरे शरीर में विष रहता है। - कबीर
  • कष्ट पड़ने पर भी साधु पुरुष मलिन नहीं होते, जैसे सोने को जितना तपाया जाता है वह उतना ही निखरता है। - कबीर

पं. रामप्रताप त्रिपाठी

  • आपत्तियाँ मनुष्यता की कसौटी हैं। इन पर खरा उतरे बिना कोई भी व्यक्ति सफल नहीं हो सकता। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
  • जिस मनुष्य में आत्मविश्वास नहीं है वह शक्तिमान हो कर भी कायर है और पंडित होकर भी मूर्ख है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
  • मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है। - पं. रामप्रताप त्रिपाठी
  • ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य
  • सत्य से कीर्ति प्राप्त की जाती है और सहयोग से मित्र बनाए जाते हैं। - कौटिल्य अर्थशास्त्र

संत तिरुवल्लुवर

  • नेकी से विमुख हो बदी करना निस्संदेह बुरा है। मगर सामने मुस्काना और पीछे चुगली करना और भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर
  • नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है। - संत तिरुवल्लुवर
  • नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं। - संत तिरुवल्लुर

माघ

  • मनस्वी पुरुष पर्वत के समान ऊँचे और समुद्र के समान गंभीर होते हैं। उनका पार पाना कठिन है। - माघ
  • कुशल पुरुष की वाणी प्रतिकूल बोलनेवाले प्रबुद्ध वक्ताओं को मूक बना देती है और पक्ष में बोलने वाले मंदमति को निपुण। - माघ
  • जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता। - माघ्र

आचार्य श्रीराम शर्मा

  • इस संसार में प्यार करने लायक दो वस्तुएँ हैं-एक दुख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि दान में कितनी मिठास है। - आचार्य श्रीराम शर्मा
  • जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं- एक वे जो सोचते हैं पर करते नहीं, दूसरे जो करते हैं पर सोचते नहीं। - आचार्य श्रीराम शर्मा

आचार्य रामचंद्र शुक्ल

  • बैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है। - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • चितवन से जो रुखाई प्रकट की जाती है, वह भी क्रोध से भरे हुए कटु वचनों से कम नहीं होती। - आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • दूसरों पर किए गए व्यंग्य पर हम हँसते हैं पर अपने ऊपर किए गए व्यंग्य पर रोना तक भूल जाते हैं। - आचार्य रामचंद्र शुक्ल

डॉ. रामकुमार वर्मा

  • दुख और वेदना के अथाह सागर वाले इस संसार में प्रेम की अत्यधिक आवश्यकता है। - डॉ. रामकुमार वर्मा
  • सौंदर्य और विलास के आवरण में महत्त्वाकांक्षा उसी प्रकार पोषित होती है जैसे म्यान में तलवार। - डॉ. रामकुमार वर्मा
  • कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। - डॉ. रामकुमार वर्मा

भगवान महावीर

  • जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गई विद्या फलदायी नहीं होती। - भगवान महावीर
  • भोग में रोग का, उच्च-कुल में पतन का, धन में राजा का, मान में अपमान का, बल में शत्रु का, रूप में बुढ़ापे का और शास्त्र में विवाद का डर है। भय रहित तो केवल वैराग्य ही है। - भगवान महावीर
  • पीड़ा से दृष्टि मिलती है, इसलिए आत्मपीड़न ही आत्मदर्शन का माध्यम है। - भगवान महावीर

लोकमान्य तिलक

  • कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं। जो साहस के साथ उनका सामना करते हैं, वे विजयी होते हैं। - लोकमान्य तिलक
  • शरीर को रोगी और निर्बल रखने के सामान दूसरा कोई पाप नहीं है। - लोकमान्य तिलक
  • स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! - लोकमान्य तिलक

जवाहरलाल नेहरू

  • अपने को संकट में डाल कर कार्य संपन्न करने वालों की विजय होती है, कायरों की नहीं। - जवाहरलाल नेहरू
  • महान ध्येय के प्रयत्न में ही आनंद है, उल्लास है और किसी अंश तक प्राप्ति की मात्रा भी है। - जवाहरलाल नेहरू
  • जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य संपन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती। - जवाहरलाल नेहरू

हरिऔध

  • प्रकृति अपरिमित ज्ञान का भंडार है, पत्ते-पत्ते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव आवश्यक है। - हरिऔध
  • जहाँ चक्रवर्ती सम्राट की तलवार कुंठित हो जाती है, वहाँ महापुरुष का एक मधुर वचन ही काम कर देता है। - हरिऔध
  • अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं। - हरिऔध

मधूलिका गुप्ता

  • ऐ अमलतास किसी को भी पता न चला तेरे कद का अंदाज जो आसमान था पर सिर झुका के रहता था, तेज़ धूप में भी मुसकुरा के रहता था। - मधूलिका गुप्ता
  • दस गरीब आदमी एक कंबल में आराम से सो सकते हैं, परंतु दो राजा एक ही राज्य में इकट्ठे नहीं रह सकते। - मधूलिका गुप्ता
  • समझौता एक अच्छा छाता भले बन सकता है, लेकिन अच्छी छत नहीं। - मधूलिका गुप्ता
  • अपने दोस्त के लिए जान दे देना इतना मुश्किल नहीं है जितना मुश्किल ऐसे दोस्त को ढूँढ़ना जिस पर जान दी जा सके। - मधूलिका गुप्ता

वाल्मीकि

  • पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। - वाल्मीकि
  • जैसे पके हुए फलों को गिरने के सिवा कोई भय नहीं वैसे ही पैदा हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा कोई भय नहीं। - वाल्मीकि
  • हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मो में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनता है। - वाल्मीकि
  • तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि
  • हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है। - वाल्मीकि

शुक्रनीति

  • कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता केवल उसको उपयुक्त काम में लगाने वाला ही कठिनाई से मिलता है। - शुक्रनीति
  • कोई भी व्यक्ति अयोग्य नहीं होता केवल उसको उपयुक्त काम में लगाने वाला ही कठिनाई से मिलता है। - शुक्रनीति
  • बलवान व्यक्ति की भी बुद्धिमानी इसी में है कि वह जानबूझ कर किसी को शत्रु न बनाए। - शुक्रनीति

श्री परमहंस योगानंद

  • विश्व की सर्वश्रेष्ठ कला, संगीत व साहित्य में भी कमियाँ देखी जा सकती है लेकिन उनके यश और सौंदर्य का आनंद लेना श्रेयस्कर है। - श्री परमहंस योगानंद
  • तर्क से किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। मूर्ख लोग तर्क करते हैं, जबकि बुद्धिमान विचार करते हैं। - श्री परमहंस योगानंद
  • खुद के लिये जीनेवाले की ओर कोई ध्यान नहीं देता पर जब आप दूसरों के लिये जीना सीख लेते हैं तो वे आपके लिये जीते हैं। - श्री परमहंस योगानंद

श्री अरविंद

  • सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। यही हमारी प्रकृति की पहली दुरूह ग्रंथि और विरोधाभास है। - श्री अरविंद
  • सारा जगत स्वतंत्रता के लिए लालायित रहता है फिर भी प्रत्येक जीव अपने बंधनो को प्यार करता है। - श्री अरविंद
  • भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। - श्री अरविंद
  • कर्म, ज्ञान और भक्ति- ये तीनों जहाँ मिलते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ जन्म लेता है। - श्री अरविंद

सरदार पटेल

  • सत्याग्रह की लड़ाई हमेशा दो प्रकार की होती है। एक ज़ुल्मों के खिलाफ़ और दूसरी स्वयं की दुर्बलता के विरुद्ध। - सरदार पटेल
  • लोहा गरम भले ही हो जाए पर हथौड़ा तो ठंडा रह कर ही काम कर सकता है। - सरदार पटेल
  • जब तक हम स्वयं निरपराध न हों तब तक दूसरों पर कोई आक्षेप सफलतापूर्वक नहीं कर सकते। - सरदार पटेल
  • यह सच है कि पानी में तैरनेवाले ही डूबते हैं, किनारे पर खड़े रहनेवाले नहीं, मगर किनारे पर खड़े रहनेवाले कभी तैरना भी नहीं सीख पाते। - सरदार पटेल
  • सपने हमेशा सच नहीं होते पर ज़िंदगी तो उम्मीद पर टिकी होती हैं। - रविकिरण शास्त्री
  • ग़रीबों के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब ईश्वर के प्रिय पात्र होते हैं। - सादी
  • अकेलापन कई बार अपने आप से सार्थक बातें करता है। वैसी सार्थकता भीड़ में या भीड़ के चिंतन में नहीं मिलती। - राजेंद्र अवस्थी
  • देश-प्रेम के दो शब्दों के सामंजस्य में वशीकरण मंत्र है, जादू का सम्मिश्रण है। यह वह कसौटी है जिसपर देश भक्तों की परख होती है। - बलभद्र प्रसाद गुप्त 'रसिक'
  • असत्य फूस के ढेर की तरह है। सत्य की एक चिनगारी भी उसे भस्म कर देती है। - हरिभाऊ उपाध्याय
  • जबतक भारत का राजकाज अपनी भाषा में नहीं चलेगा तबतक हम यह नहीं कह सकते कि देश में स्वराज है। - मोरारजी देसाई
  • जैसे उल्लू को सूर्य नहीं दिखाई देता वैसे ही दुष्ट को सौजन्य दिखाई नहीं देता। - स्वामी भजनानंद
  • धन उत्तम कर्मों से उत्पन्न होता है, प्रगल्भता (साहस, योग्यता व दृढ़ निश्चय) से बढ़ता है, चतुराई से फलता फूलता है और संयम से सुरक्षित होता है। - विदुर
  • कुमंत्रणा से राजा का, कुसंगति से साधु का, अत्यधिक दुलार से पुत्र का और अविद्या से ब्राह्मण का नाश होता है। - विदुर
  • कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। - हरिवंश राय बच्चन
  • मनुष्य अपना स्वामी नहीं, परिस्थितियों का दास है। - भगवतीचरण वर्मा
  • सच्चाई से जिसका मन भरा है, वह विद्वान न होने पर भी बहुत देश सेवा कर सकता है। - पं. मोतीलाल नेहरू
  • ख़ातिरदारी जैसी चीज़ में मिठास ज़रूर है, पर उसका ढकोसला करने में न तो मिठास है और न स्वाद। - शरतचंद्र
  • प्रत्येक कार्य अपने समय से होता है उसमें उतावली ठीक नहीं, जैसे पेड़ में कितना ही पानी डाला जाय पर फल वह अपने समय से ही देता है। - वृंद
  • मानव का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और महामानव होना चमत्कार है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  • साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है। - डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  • निराशा के समान दूसरा पाप नहीं। आशा सर्वोत्कृष्ट प्रकाश है तो निराशा घोर अंधकार है। - रश्मिमाला
  • जो भारी कोलाहल में भी संगीत को सुन सकता है, वह महान उपलब्धि को प्राप्त करता है। - डॉ. विक्रम साराभाई
  • जैसे जीने के लिए मृत्यु का अस्वीकरण ज़रूरी है वैसे ही सृजनशील बने रहने के लिए प्रतिष्ठा का अस्वीकरण ज़रूरी है। - डॉ. रघुवंश
  • विद्वत्ता युवकों को संयमी बनाती है। यह बुढ़ापे का सहारा है, निर्धनता में धन है, और धनवानों के लिए आभूषण है।
  • सबसे उत्तम विजय प्रेम की है जो सदैव के लिए विजेताओं का हृदय बाँध लेती है। - सम्राट अशोक
  • उदार मन वाले विभिन्न धर्मों में सत्य देखते हैं। संकीर्ण मन वाले केवल अंतर देखते हैं। - चीनी कहावत
  • जीवन की जड़ संयम की भूमि में जितनी गहरी जमती है और सदाचार का जितना जल दिया जाता है उतना ही जीवन हरा भरा होता है और उसमें ज्ञान का मधुर फल लगता है। - दीनानाथ दिनेश
  • जहाँ मूर्ख नहीं पूजे जाते, जहाँ अन्न की सुरक्षा की जाती है और जहाँ परिवार में कलह नहीं होती, वहाँ लक्ष्मी निवास करती है। - अथर्ववेद
  • पुण्य की कमाई मेरे घर की शोभा बढ़ाए, पाप की कमाई को मैंने नष्ट कर दिया है। - अथर्ववेद
  • शत्रु के साथ मृदुता का व्यवहार अपकीर्ति का कारण बनता है और पुरुषार्थ यश का। - रामनरेश त्रिपाठी
  • यह सच है कि कवि सौंदर्य को देखता है। जो केवल बाहरी सौंदर्य को देखता है वह कवि है, पर जो मनुष्य के मन के सौंदर्य का वर्णन करता है वह महाकवि है। - रामनरेश त्रिपाठी
  • श्रद्धा और विश्वास ऐसी जड़ी बूटियाँ हैं कि जो एक बार घोल कर पी लेता है वह चाहने पर मृत्यु को भी पीछे धकेल देता है। - अमृतलाल नागर
  • जैसे सूर्योदय के होते ही अंधकार दूर हो जाता है वैसे ही मन की प्रसन्नता से सारी बाधाएँ शांत हो जाती हैं। - अमृतलाल नागर
  • जैसे रात्रि के बाद भोर का आना या दुख के बाद सुख का आना जीवन चक्र का हिस्सा है वैसे ही प्राचीनता से नवीनता का सफ़र भी निश्चित है। - भावना कुँअर
  • प्रत्येक व्यक्ति की अच्छाई ही प्रजातंत्रीय शासन की सफलता का मूल सिद्धांत है। - राजगोपालाचारी
  • अपने अनुभव का साहित्य किसी दर्शन के साथ नहीं चलता, वह अपना दर्शन पैदा करता है। - कमलेश्वर
  • 'शि' का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और 'व' कहते हैं मुक्ति देने वाले को। भोलेनाथ में ये दोनों गुण हैं इसलिए वे शिव कहलाते हैं। - ब्रह्मवैवर्त पुराण
  • चंद्रमा, हिमालय पर्वत, केले के वृक्ष और चंदन शीतल माने गए हैं, पर इनमें से कुछ भी इतना शीतल नहीं जितना मनुष्य का तृष्णा रहित चित्त। - वशिष्ठ
  • संवेदनशीलता न्याय की पहली अनिवार्यता है। - कुमार आशीष
  • देश कभी चोर उचक्कों की करतूतों से बरबाद नहीं होता बल्कि शरीफ़ लोगों की कायरता और निकम्मेपन से होता है। - शिव खेड़ा
  • बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। - अष्टावक्र
  • बेहतर ज़िंदगी का रास्ता बेहतर किताबों से होकर जाता है। - शिल्पायन
  • राष्ट्र की एकता को अगर बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिंदी ही हो सकती है। - सुब्रह्मण्यम भारती
  • बिखरना विनाश का पथ है तो सिमटना निर्माण का। - कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
  • अंग्रेज़ी माध्यम भारतीय शिक्षा में सबसे बड़ा विघ्न है। सभ्य संसार के किसी भी जन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।" - मदनमोहन मालवीय
  • रामायण समस्त मनुष्य जाति को अनिर्वचनीय सुख और शांति पहुँचाने का साधन है। - मदनमोहन मालवीय
  • उजाला एक विश्वास है जो अँधेरे के किसी भी रूप के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजाने को तत्पर रहता है। ये हममें साहस और निडरता भरता है। - डॉ. प्रेम जनमेजय
  • हिंदी ही हिंदुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है। हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक ख़रीदें! मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी लेखकों को प्रोत्साहन देंगे? - शास्त्री फ़िलिप
  • स्वयं प्रकाशित दीप भी प्रकाश के लिए तेल और बत्ती का जतन करता है, विकास के लिए निरंतर यत्न ही बुद्धिमान पुरुष के लक्षण है।
  • यदि तुम्हें अपने चुने हुए रास्ते पर विश्वास है, यदि इस पर चलने का साहस है, यदि इसकी कठिनाइयों को जीत लेने की शक्ति है, तो रास्ता तुम्हारा अनुगमन करता है। - धीरूभाई अंबानी
  • एक पल का उन्माद जीवन की क्षणिक चमक का नहीं, अंधकार का पोषक है, जिसका कोई आदि नहीं, कोई अंत नहीं। - रांगेय राघव
  • जीवन दूध के समुद्र की तरह है, आप इसे जितना मथेंगे आपको इससे उतना ही मक्खन मिलेगा। - घनश्यामदास बिड़ला
  • हमारी खुशी का स्रोत हमारे ही भीतर है, यह स्रोत दूसरों के प्रति संवेदना से पनपता है। - दलाईलामा
  • वसंत ऋतु निश्चय ही रमणीय है। ग्रीष्म ऋतु भी रमणीय है। वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर भी रमणीय है, अर्थात सब समय उत्तम हैं। - सामवेद
  • काम से ज़्यादा काम के पीछे निहित भावना का महत्व होता है। - डॉ. राजेंद्र प्रसाद
  • अंधेरे को कोसने से बेहतर है कि एक दीया जलाया जाए। - उपनिषद
  • आंतरिक सौंदर्य का आह्वान करना कठिन काम है। सौंदर्य की अपनी भाषा होती है, ऐसी भाषा जिसमें न शब्द होते हैं न आवाज़। - राजश्री
  • हँसी छूत की बीमारी है, आपको हँसी आई नहीं कि दूसरे को ज़बरदस्ती अपने दाँत निकालने पड़ेंगे। - प्रेमलता दीप
  • जो बिना ठोकर खाए मंजिल तक पहुँच जाते हैं, उनके हाथ अनुभव से खाली रह जाते हैं। - शिवकुमार मिश्र 'रज्‍जन'
  • कर्मों का फल अवश्य मिलता है, पर हमारी इच्छानुसार नहीं, कार्य के प्रति हमारी आस्था एवं दृष्टि के अनुसार। - किशोर काबरा
  • श्रेष्ठ वही है जिसके हृदय में दया व धर्म बसते हैं, जो अमृतवाणी बोलते हैं और जिनके नेत्र विनय से झुके होते हैं। - संत मलूकदास
  • कोई मनुष्य दूसरे मनुष्य को दास नहीं बनाता, केवल धन का लालच ही मनुष्य को दास बनाता है। - पंचतंत्र
  • शासन के समर्थक को जनता पसंद नहीं करती और जनता के पक्षपाती को शासन। इन दोनो का प्रिय कार्यकर्ता दुर्लभ है। - पंचतंत्र
  • जैसे दीपक का प्रकाश घने अंधकार के बाद दिखाई देता है उसी प्रकार सुख का अनुभव भी दुःख के बाद ही होता है। - शूद्रक
  • शाला में नया छात्र कुछ लेकर नहीं आता और पुराना कुछ लेकर नहीं जाता फिर भी वहाँ ज्ञान का विकास होता है। - राजेन्द्र अवस्थी
  • साध्य कितने भी पवित्र क्यों न हों, साधन की पवित्रता के बिना उनकी उपलब्धि संभव नहीं। - कमलापति त्रिपाठी
  • अत्याचार और अनाचार को सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव होता है। - कमलापति त्रिपाठी
  • मातृभाषा, मातृ संस्कृति और मातृभूमि ये तीनों सुखकारिणी देवियाँ स्थिर होकर हमारे हृदयासन पर विराजें। - ऋग्वेद
  • चिंता से चित्त को संताप और आत्मा को दुर्बलता प्राप्त होती है, इसलिए चिंता को तो छोड़ ही देना चाहिए। - ऋग्वेद
  • दूसरों की ग़लतियों से सीखें। आप इतने दिन नहीं जी सकते कि खुद इतनी ग़लतियाँ कर सकें। - अमिताभ बच्चन
  • अगर भगवान से माँग रहे हो तो हल्का बोझ मत माँगो, मजबूत कंधे माँगो। - अमिताभ बच्चन
  • प्रकृति का तमाशा भी ख़ूब है। सृजन में समय लगता है जबकि विनाश कुछ ही पलों में हो जाता है। - ज़क़िया ज़ुबैरी
  • वसंत अपने आप नहीं आता, उसे लाना पड़ता है। सहज आने वाला तो पतझड़ होता है, वसंत नहीं। - हरिशंकर परसाई
  • मैं ने कोई विज्ञापन ऐसा नहीं देखा जिसमें पुरुष स्त्री से कह रहा हो कि यह साड़ी या स्नो खरीद ले। अपनी चीज़ वह खुद पसंद करती है मगर पुरुष की सिगरेट से लेकर टायर तक में वह दखल देती है। - हरिशंकर परसाई
  • संसार में ऐसे अपराध कम ही हैं जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें। - शरतचंद्र
  • बुद्धिमान मनुष्य अपनी हानि पर कभी नहीं रोते बल्कि साहस के साथ उसकी क्षतिपूर्ति में लग जाते हैं। - विष्णु शर्मा
  • बूढा होना कोई आसान काम नहीं। इसे बड़ी मेहनत से सीखना पड़ता है। - निर्मल वर्मा
  • स्वयं प्रकाशित दीप को भी प्रकाश के लिए तेल और बत्ती का जतन करना पड़ता है बुद्धिमान भी अपने विकास के लिए निरंतर यत्न करते हैं।
  • ददीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य दीपक का नहीं उसकी लौ का होता है जिसे कोई अँधेरा नहीं बुझा सकता। - विष्णु प्रभाकर
  • दीपक सोने का हो या मिट्टी का मूल्य उसका नहीं होता, मूल्य होता है उसकी लौ का जिसे कोई अँधेरा, अँधेरे के तरकश का कोई तीर ऐसा नहीं जो बुझा सके। - विष्णु प्रभाकर
  • विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखनेवाला कोई भी देश शुद्ध या दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता। - होमी भाभा
  • हर चीज़ की कीमत व्यक्ति की जेब और ज़रूरत के अनुसार होती है और शायद उसी के अनुसार वह अच्छी या बुरी होती है। - संतोष गोयल
  • अवसर तो सभी को ज़िंदगी में मिलते हैं किंतु उनका सही वक्त पर सही तरीक़े से इस्तेमाल कितने कर पाते हैं? - संतोष गोयल
  • अविश्वास आदमी की प्रवृत्ति को जितना बिगाड़ता है, विश्वास उतना ही बनाता है। - धर्मवीर भारती
  • मैं हिन्दुस्तान की तूती हूँ। अगर तुम वास्तव में मुझसे जानना चाहते हो तो हिन्दवी में पूछो। मैं तुम्हें अनुपम बातें बता सकूँगा। - अमीर ख़ुसरो
  • कोई भी भाषा अपने साथ एक संस्कार, एक सोच, एक पहचान और प्रवृत्ति को लेकर चलती है। - भरत प्रसाद
  • कहानी जहाँ खत्म होती है, जीवन वहीं से शुरू होता है।' - संजीव
  • बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। - स्वामी रामदेव
  • स्वदेशी उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, ज्ञान, तकनीक, खानपान, भाषा, वेशभूषा एवं स्वाभिमान के बिना विश्व का कोई भी देश महान नहीं बन सकता। - स्वामी रामदेव
  • विनम्रता की परीक्षा 'समृद्धि' में और स्वाभिमान की परीक्षा 'अभाव' में होती है। - आदित्य चौधरी
  • किताबों में वजन होता है! ये यूँ ही किसी के जीवन की दशा और दिशा नहीं बदल देतीं। - इला प्रसाद
  • मानव जीवन धूल की तरह है, रो-धोकर हम इसे कीचड़ बना देते हैं। - बकुल वैद्य
  • अकर्मण्यता के जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु श्रेष्ठ होती है। - चंद्रशेखर वेंकट रमण
  • जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर नहीं ठहरता है, उसी प्रकार मुक्त आत्मा के कर्म उससे नहीं चिपकते हैं। - छांदोग्य उपनिषद
  • ख्याति नदी की भाँति अपने उद्गम स्थल पर क्षीण ही रहती है किंदु दूर जाकर विस्तृत हो जाती है। - भवभूति
  • बुद्धि के सिवाय विचार प्रचार का कोई दूसरा शस्त्र नहीं है, क्योंकि ज्ञान ही अन्याय को मिटा सकता है। - शंकराचार्य
  • फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करनेवाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है। - गीता
  • बच्चों को पालना, उन्हें अच्छे व्यवहार की शिक्षा देना भी सेवाकार्य है, क्योंकि यह उनका जीवन सुखी बनाता है। - स्वामी रामसुखदास
  • समस्त भारतीय भाषाओं के लिए यदि कोई एक लिपि आवश्यक हो तो वह देवनागरी ही हो सकती है। - (न्यायमूर्ति) कृष्णस्वामी अय्यर
  • मस्तिष्क इन्द्रियों की अपेक्षा महान है, शुद्ध बुद्धिमत्ता मस्तिष्क से महान है, आत्मा बुद्धि से महान है, और आत्मा से बढकर कुछ भी नहीं है। - स्वामी शिवानंद
  • बारह ज्ञानी एक घंटे में जितने प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं उससे कहीं अधिक प्रश्न मूर्ख व्यक्ति एक मिनट में पूछ सकता है। - स्वामी शिवानंद
  • संतोष का वृक्ष कड़वा है लेकिन इस पर लगने वाला फल मीठा होता है। - स्वामी शिवानंद
  • कष्ट ही तो वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और आगे बढ़ाती है। - सावरकर
  • उत्तरदायित्व में महान बल होता है, जहाँ कहीं उत्तरदायित्व होता है, वहीं विकास होता है। - दामोदर सातवलेकर
  • संयम संस्कृति का मूल है। विलासिता निर्बलता और चाटुकारिता के वातावरण में न तो संस्कृति का उद्भव होता है और न विकास। - काका कालेलकर
  • जो सत्य विषय हैं वे तो सबमें एक से हैं झगड़ा झूठे विषयों में होता है। - सत्यार्थप्रकाश
  • सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही महान फल देता है। - कथा सरित्सागर
  • सही स्थान पर बोया गया सुकर्म का बीज ही समय आने पर महान फल देता है। - कथा सरित्सागर
  • चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। - समर्थ रामदास
  • लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। - जयप्रकाश नारायण
  • बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। - यशपाल
  • सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा
  • धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है। धर्म लोगों को जोड़ता है। - डॉ. शंकरदयाल शर्मा
  • जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। - नारदभक्ति
  • धर्म करते हुए मर जाना अच्छा है पर पाप करते हुए विजय प्राप्त करना अच्छा नहीं। - महाभारत
  • बुद्धि से विचारकर किए गए कर्म ही सफल होते हैं। - महाभारत
  • अपने भाई बंधु जिसका आदर करते हैं, दूसरे भी उसका आदर करते हैं। - महाभारत
  • दंड द्वारा प्रजा की रक्षा करनी चाहिए लेकिन बिना कारण किसी को दंड नहीं देना चाहिए। - रामायण
  • शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। - स्वामी ज्ञानानंद
  • त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। - बरुआ
  • अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद
  • जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हों या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं। - स्वामी रामतीर्थ
  • वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है। - स्वामी रामतीर्थ
  • केवल प्रकाश का अभाव ही अंधकार नहीं, प्रकाश की अति भी मनुष्य की आँखों के लिए अंधकार है। - स्वामी रामतीर्थ
  • जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय। - संपूर्णानंद
  • अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्यों कि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को। - महादेवी वर्मा
  • जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो। यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो। - इंदिरा गांधी
  • यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह ख़तरनाक भी हो सकती है। - इंदिरा गांधी
  • तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की। - गुरु गोविंद सिंह
  • सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है। - अनंत गोपाल शेवडे
  • विश्व के निर्माण में जिसने सबसे अधिक संघर्ष किया है और सबसे अधिक कष्ट उठाए हैं वह माँ है। - हर्ष मोहन
  • कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं। - श्री हर्ष


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