ज्वालामुखी

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ज्वालामुखी

ज्वालामुखी भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है, जिससे होकर पृथ्वी का विघला पदार्थ लावा, राख, वाष्प तथा अन्य गैसें बाहर निकलती हैं। बाहर हवा में उड़ा हुआ लावा शीघ्र ही ठंडा होकर छोटे ठोस टुकड़ों में बदल जाता है, जिसे 'सिंडर' कहते हैं। उद्गार में निकलने वाली गैसों में वाष्प का प्रतिशत सर्वाधिक होता है। पृथ्वी पर जितने भी ज्वालामुखी मौजूद हैं, उनमें से ज़्यादातर दस हज़ार से एक लाख साल पुराने हैं। वक्त के साथ-साथ इनकी ऊँचाई भी बढ जाती है। ज्वालामुखी पर्वत से निकलने वाली चीज़ों में मैग्मा के साथ कई तरह की विषैली गैसें भी होती हैं। ये गैसें आस-पास बसे लोगों के लिए काफ़ी घातक होती हैं। इन पर्वतों से निकला मैग्मा एक बहती हुई आग के समान होता है। यह अपने सामने आई हर चीज़ को पूरी तरह से समाप्त कर देता है।

उद्गार या विस्फोट

ज्वालामुखी का उद्गार एक केन्द्र या छिद्र द्वारा अथवा दरार से होता है। केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी प्रायः भयंकर और तीव्र वेग वाले होते हैं, जबकि दरारी उद्गार में लावा प्रायः धीरे-धीरे निकल कर भू-पृष्ठ पर फैल जाता है। केन्द्रीय उद्गार में निःसृत लावा तथा अन्य पदार्थ अधिक ऊँचाई तक आकाश में पहुँच जाते हैं तथा आकाश में प्रायः बादल छा जाते हैं और विखंडित पदार्थ पुनः तीव्रता से नीचे गिरते हैं।

ज्वालामुखी

ये ज्वालामुखी अधिक भयंकर तथा विनाशकारी होते हैं। केन्द्रीय उद्गार वाले ज्वालामुखी उद्गार की अवधि, अंतराल तथा प्रकृति के अनुसार कई प्रकार के होते हैं, जिन्हें विशिष्ट ज्वालामुखी के आधार पर कई वर्गों में विभक्त किया जाता है। इनमें प्रमुख प्रकार हैः हवाई, स्ट्राम्बोली, वल्कैनो, पीलियन, तथा विसूवियस तुल्य ज्वालामुखी।

विस्फोट से पूर्व के संकेत

किसी भी ज्वालामुखी के आग उगलने से पहले कुछ परिवर्तन सामान्य रूप से देखे जाते हैं। इनमें उस जगह के आस-पास मौजूद पानी का स्तर अचानक बढने लगता है। ज्वालामुखी फटने से पहले भूकम्प के कुछ हल्के झटके भी आते हैं। इन तमाम बातों के अलावा ज्वालामुखी क्या-क्या तबाही लाने वाला है, इसका संकेत वह स्वयं भी देता है। जो ज्वालामुखी पर्वत फटने वाला होता है, उस पर्वत में से गैसों का रिसाव शुरू हो जाता है। गैसों का यह रिसाव इसके मुहाने (मुख) या फिर 'क्रेटर' से होता है। इसके अलावा, पर्वत में कई जगह पैदा हुई दरारों से भी इन गैसों का रिसाव होता है। यह इस बात का संकेत है कि अब इसके आग उगलने का समय आ गया है। इन गैसों में सल्फ़र-डाई-ऑक्साइड, कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड, हाइड्रोजन क्लोराइड आदि प्रमुख गैसें होती हैं। इनमें से हाइड्रोजन-क्लोराइड और कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड बेहद ख़तरनाक होती है।[1]

अस्तित्त्व

ज्वालामुखी न सिर्फ़ पृथ्वी पर ही मौजूद हैं, बल्कि इनका अस्तित्व महासागरों में भी है। समुद्र में क़रीब दस हज़ार ज्वालामुखी मौजूद हैं। आज भी कई ज्वालामुखी वैज्ञानिकों की निगाह से बचे हुए हैं। विनाशकारी सुनामी लहरों का निर्माण भी समुद्र के भीतर ज्वालामुखी विस्फोट से ही होता है। सबसे बड़ा ज्वालामुखी पर्वत हवाई में है। इसका नाम 'मोना लो' है। यह क़रीब 13000 फ़ीट ऊँचा है। यदि इसको समुद्र की गहराई से नापा जाए, तो यह क़रीब 29000 फ़ीट ऊँचा है। इसका अर्थ है कि यह माउंट एवरेस्ट से भी ऊँचा है।

ज्वालामुखी

इसके बाद सिसली के 'माउंट ऐटना' का नंबर आता है। यह विश्व का एकमात्र सबसे पुराना ज्वालामुखी है। यह 3,5000 साल पुराना है। ज्वालामुखी 'स्ट्रोमबोली' को तो 'लाइटहाउस ऑफ़ मैडिटैरियन' कहा जाता है। इसकी वजह है कि यह हर वक्त सुलगता ही रहता है।

खनिज पदार्थ

ज्वालामुखी के मुख से निकली ये गैसें वातावरण को काफ़ी प्रदूषित करती हैं। ज्वालामुखी से निकले लावे में कई तरह के खनिज भी होते हैं। ज्वालामुखी पर्वत कई तरह की चट्टानों से बने होते हैं। इनमें काली, सफ़ेद, भूरी चट्टानें आदि शामिल हैं। अमेरिका में एण्डिज पर्वतमाला को ज्वालामुखी पर्वत शृंखला के तौर पर लिया जाता है। हवाई (अमेरिका) में मौजूद कई टापू अपने काली मिट्टी से बने तटों के लिए बेहद प्रसिद्ध हैं। ये तट और कुछ नहीं, बल्कि इन पर्वतों से निकले खनिज ही हैं। ज्वालामुखी ज़मीन की अथाह गहराई में छिपे खनिजों को एक ही बार में बाहर फेंक देता है।[1]

ज्वालामुखी के प्रकार

एक अनुमान के मुताबिक अभी तक पूरी दुनिया में क़रीब 1500 जीवित ज्वालामुखी पर्वत हैं। हिमालय एक मृत ज्वालामुखी है, इसलिए इससे किसी भी प्रकार का ख़तरा होने की आशंका नहीं है। मगर दूसरी तरफ 'माउंट एटना' समेत कई अन्य जीवित ज्वालामुखी हैं, क्योंकि इनसे समय-समय पर लावा और गैस निकलती रहती हैं। ये इंसानी जान के लिए हमेशा से ही ख़तरनाक रहे हैं। एशिया महाद्वीप पर सबसे ज़्यादा ज्वालामुखी इंडोनेशिया में हैं। उद्गार की अवधि के अनुसार ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं-

ज्वालामुखी
  1. सक्रिय ज्वालामुखी
  2. प्रसुप्त ज्वालामुखी और
  3. शान्त ज्वालामुखी या मृत ज्वालामुखी

भारत में ज्वालामुखी

यह सोचना ग़लत है कि भारत में ज्वालामुखी नहीं हैं। भारत के दो सबसे ख़तरनाक ज्वालामुखी अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह पर हैं। इनमें से एक बैरन द्वीप है। 2004 में आई सुनामी के दौरान बैरन फट गया था। इस दौरान इसके 500 मीटर ऊँचे क्रेटर से लावा निकलने लगा था। अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर से क़रीब 135 किलोमीटर दूर बैरन द्वीप में इससे पहले 1996 में विस्फोट हुआ था। इसी के मिलते जुलते नाम वाला ज्वालामुखी है, 'बैरन आयलैंड'। गोल आकार वाले इस ज्वालामुखी में 1994-95 में कई विस्फोट हो चुके हैं। इससे निकले लावे के निशान आज भी मौजूद हैं। अंडमान में ही तीसरा बड़ा ज्वालामुखी है, 'नारकोंडम'। जिसे पहले समाप्त मान लिया गया था। जून 2005 में इस ज्वालामुखी से कीचड़ और धुआँ निकलता देखा गया था। इससे पहले 100 साल तक इसमें कोई गतिविधि नहीं हुई थी। कहा जाता है कि 2004 में सुमात्रा में आए भूकम्प की वजह से इसमें विस्फोट हुआ।

शक्तिशाली ज्वालामुखी

वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर सबसे ज़्यादा ख़तरनाक ज्वालामुखी 'तंबोरा' है। जो इंडोनेशिया में मौजूद है। हिन्द महासागर में सबसे ज़्यादा ताकतवर ज्वालामुखी 'पिटों दे ला फॉर्नेस' है, तो पृथ्वी का सबसे बड़ा ज्वालामुखी 'मौना लोआ' को माना जाता है। जो हवाई द्वीप में है। इनके अलावा भी सैकड़ों ऐसे ज्वालामुखी हैं, जो भूकम्प के हालात पैदा होने पर ख़तरा बन जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 Mitra, Vijay। ज्वालामुखी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 27 नवम्बर, 2011।

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