"गीतांजलि श्री" के अवतरणों में अंतर
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[[उत्तर प्रदेश]] के मैनपुरी जनपद में जन्मी गीतांजलि श्री की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने [[दिल्ली]] के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और [[जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]] से [[इतिहास]] में एम.ए. किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और [[उत्तर भारत]] के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद [[सूरत]] के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। उनका [[परिवार]] मूल रूप से गाजीपुर जिले के गोडउर गाँव का रहने वाला है। | [[उत्तर प्रदेश]] के मैनपुरी जनपद में जन्मी गीतांजलि श्री की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने [[दिल्ली]] के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और [[जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]] से [[इतिहास]] में एम.ए. किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और [[उत्तर भारत]] के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद [[सूरत]] के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। उनका [[परिवार]] मूल रूप से गाजीपुर जिले के गोडउर गाँव का रहने वाला है। | ||
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'माई' उपन्यास का [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवार्ड' के लिए नामित अंतिम चार किताबों में शामिल था। 'खाली जगह' का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है। | 'माई' उपन्यास का [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवार्ड' के लिए नामित अंतिम चार किताबों में शामिल था। 'खाली जगह' का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है। |
11:12, 28 मई 2022 के समय का अवतरण
गीतांजलि श्री
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पूरा नाम | गीतांजलि श्री |
जन्म | 12 जून, 1957 |
जन्म भूमि | ज़िला मैनपुरी, उत्तर प्रदेश |
अभिभावक | पिता- मधुसूदन तिवारी
माता- लीलावती तिवारी |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कथा साहित्य |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी |
पुरस्कार-उपाधि | मैन बुकर पुरस्कार, 2022 |
प्रसिद्धि | कथाकार और उपन्यासकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | गीतांजलि श्री की पहली कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी दो और कहानियाँ एक के बाद एक 'हंस' में छपीं। |
अद्यतन | 16:42, 28 मई 2022 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
गीतांजलि श्री (अंग्रेज़ी: Geetanjali Shree, जन्म- 12 जून, 1957) हिन्दी की जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं। वह हिंदी की पहली ऐसी लेखिका हैं जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है। यह पुरस्कार उनके उपन्यास 'रेत समाधि' के अंग्रेज़ी अनुवाद 'टोम्ब ऑफ़ सैंड' के लिए दिया गया है। इसका अनुवाद प्रसिद्ध अनुवादक डेज़ी रॉकवाल ने किया है।
परिचय
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जनपद में जन्मी गीतांजलि श्री की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं। उनका परिवार मूल रूप से गाजीपुर जिले के गोडउर गाँव का रहने वाला है।
रचनाएँ
गीतांजलि श्री की पहली कहानी बेलपत्र 1987 में हंस में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद उनकी दो और कहानियाँ एक के बाद एक 'हंस' में छपीं। अब तक उनके पाँच उपन्यास- माई, हमारा शहर उस बरस, तिरोहित, खाली जगह, रेत-समाधि प्रकाशित हो चुके हैं। पाँच कहानी संग्रह- अनुगूंज, वैराग्य, मार्च, माँ और साकूरा, यहाँ हाथी रहते थे और प्रतिनिधि कहानियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
'माई' उपन्यास का अंग्रेज़ी अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवार्ड' के लिए नामित अंतिम चार किताबों में शामिल था। 'खाली जगह' का अनुवाद अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषा में हो चुका है। अपने लेखन में वैचारिक रूप से स्पष्ट और प्रौढ़ अभिव्यिक्ति के जरिए उन्होंने एक विशिष्ट स्थान बनाया है।
बुकर पुरस्कार
लंदन में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में गीतांजलि श्री को बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गीतांजलि श्री ने ये सम्मान डेजी रॉकवेल के साथ साझा किया। डेजी रॉकवेल ने ही गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेजी में 'टॉम्ब ऑफ सैंड' नाम से अनुवाद किया था। बुकर पुरस्कार ग्रहण करने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा कि कभी भी ये पुरस्कार जीतने का सपना नहीं देखा था। कभी नहीं सोचा था कि ये भी कर सकती हूं। ये कितना बड़ा सम्मान है।
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