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'''यशोधर पण्डित''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Yashodhar Pandit'', 11वीं-12वीं शताब्दी) [[जयपुर]] के राजा जयसिंह प्रथम के दरबार के प्रख्यात विद्वान थे जिन्होंने कामसूत्र की ‘जयमंगला’ नामक टीका ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होंने [[वात्स्यायन]] द्वारा उल्लिखित चित्रकर्म के छः अंगों (षडङ्ग) की विस्तृत व्याख्या की है।
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'''यशोधर पण्डित''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Yashodhar Pandit'', 11वीं-12वीं शताब्दी) [[जयपुर]] के राजा जयसिंह प्रथम के दरबार के प्रख्यात विद्वान थे जिन्होंने कामसूत्र की ‘जयमंगला’ नामक टीका ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होंने [[वात्स्यायन]] द्वारा उल्लिखित चित्रकर्म के छह अंगों (षडङ्ग) की विस्तृत व्याख्या की है।
  
 
रूपभेदः प्रमाणानि भावलावण्ययोजनम। <br />
 
रूपभेदः प्रमाणानि भावलावण्ययोजनम। <br />

11:22, 9 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

यशोधर पण्डित (अंग्रेज़ी: Yashodhar Pandit, 11वीं-12वीं शताब्दी) जयपुर के राजा जयसिंह प्रथम के दरबार के प्रख्यात विद्वान थे जिन्होंने कामसूत्र की ‘जयमंगला’ नामक टीका ग्रंथ की रचना की। इस ग्रन्थ में उन्होंने वात्स्यायन द्वारा उल्लिखित चित्रकर्म के छह अंगों (षडङ्ग) की विस्तृत व्याख्या की है।

रूपभेदः प्रमाणानि भावलावण्ययोजनम।
सादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्रं षडंगकम्॥

वात्स्यायन द्वारा रचित ‘कामसूत्र’ में वर्णित उपरोक्त श्लोक में आलेख्य (अर्थात चित्रकर्म) के छह अंग बताये गये हैं- रूपभेद, प्रमाण, भाव, लावण्ययोजना, सादृश्य और वर्णिकाभंग। ‘जयमंगला’ नामक ग्रंथ में यशोधर पण्डित ने चित्रकर्म के षडंग की विस्तृत विवेचना की है।

प्राचीन भारतीय चित्रकला में यह षडंग हमेशा ही महत्वपूर्ण और सर्वमान्य रहा है। आधुनिक चित्रकला पर पाश्चात्य प्रभाव पड़ने के बावजूद भी यह महत्वहीन नहीं हो सका। क्योंकि षडंग वास्तव में चित्र के सौन्दर्य का शाश्वत आधार है। इसलिए चित्रकला का सौंदर्यशास्त्रीय अध्ययन के लिए इसकी जानकारी आवश्यक है।


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