"गढ़वाली बोली" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('*गढ़वाली बोली का क्षेत्र प्रधान रूप से [[टिहरी गढ़वाल...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भाषा और लिपि}}
 
{{भाषा और लिपि}}
[[Category:भाषा_और_लिपि]]
+
[[Category:भाषा और लिपि]][[Category:भाषा कोश]]
 
[[Category:साहित्य_कोश]]
 
[[Category:साहित्य_कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

08:53, 14 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

  • गढ़वाली बोली का क्षेत्र प्रधान रूप से गढ़वाल में होने के कारण यह नाम पड़ा है।
  • पहले इस क्षेत्र के नाम केदारखंड, उत्तराखंड आदि थे।
  • यहाँ बहुत से गढ़ों के कारण, मध्ययुग में लोग इसे 'गढ़वाल' कहने लगे।
  • ग्रियर्सन के भाषा- सर्वेक्षण के अनुसार इसके बोलने वालों की संख्या 6,70,824 के लगभग थी।
  • यह गढ़वाल तथा उसके आसपास टेहरी, अल्मोड़ा, देहरादून उत्तरी भाग, सहारनपुर उत्तरी भाग), बिजनौर उत्तरी भाग तथा मुरादाबाद उत्तरी भाग आदि के कुछ भागों में बोली जाती है।
  • गढ़वाली की बहुत - सी उपबोलियाँ विकसित हो गई हैं, प्रमुख श्रीनगरिया, राठी, लोहब्या, बधानी, दसौलया, माँज- कुमैया, नागपुरिया, सलानी तथा टेहरी हैं।
  • 'श्रीनगरिया' 'गढ़वाली' का परिनिष्ठित रूप है। गढ़वाली में साहित्य प्राय: नहीं के बराबर है, किंतु लोक- साहित्य प्रचुर मात्रा में है। इसके लिए नागरी लिपि का प्रयोग होता है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी

संबंधित लेख